Somvati Amavasya (सोमवती अमावस्या)
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पूजन एवं व्रत विधि : प्राय: अपने पति की दीर्घायु की प्राप्ति, अखंड सौभाग्य तथा सुख-शांति व समृद्धि के लिए यह व्रत विवाहित स्त्रियां रखती हैं। इस दिन प्रात: काल दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर ब्रह्म मुहूर्त में मौन धारण कर किसी पवित्र नदी अथवा घर पर ही स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर पीपल वृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर इस मंत्र से संकल्प लें
मम अखिल पाप प्रशमानार्थं धन-धान्य, ऐश्वर्य, कीर्ति, वृद्धयर्थं अखंड सौभाग्य प्राप्त्यर्थं
श्री हरि विष्णु प्रसन्नार्थं, सकल कामना सिद्धये च सोमवती अमावस्या व्रतं अहं करिष्
तत्पश्चात पीपल वृक्ष को सात बार कच्चे सूत से लपेटकर उसके मूल भाग में भगवान विष्णु की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित करके पीले वस्त्र, पीला अक्षत, चंदन, पीले पुष्प, धूप-दीप, दूध, दही नैवेद्यादि को समर्पित करते हुए विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस दिन गौरी-गणेश को भी स्थापित करके पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद किसी खाद्य सामग्री से 108 बार परिक्रमा करनी चाहिए और प्रदक्षिणा करते समय पीपल पर वास करने वाले सभी देवों का ध्यान कर अपने अंदर के काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि दुर्गुणों को दूर करने की कामना करते हुए निम्न मंत्र से प्रदक्षिणा करनी चाहिए। इस दौरान "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का भी जप करना चाहिए।
मंत्र
यानि कानि पापानि जन्मांतर वृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यंति प्रदक्षिणे पदे पदे।
प्रदक्षिणा करने के बाद खाद्य पदार्थों को दान में दे देना चाहिए। मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन से प्रारंभ कर जो व्यक्ति हर अमावस्या या सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करता है, वह चाहे किसी भी विकट परिस्थितियों से घिरा हो, उससे मुक्त होकर सुख, सौभाग्य तथा ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। रात्रि जागरण कर दूसरे दिन पीपल की समिधा, खीर, तिल से ऊं इंदं विष्णु मंत्र से हवन व पूर्णाहुति कर भगवान का ध्यान करना चाहिए।
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं। विश्वाधारं गगन सदृशं मेघ वर्णं शुभांगम्।
लक्ष्मीकातं कमल नयनं योगर्विद्यानगम्यम्। वंदे विष्णुं भव भय हरम् सर्व लोकैकनाथम्।
पुण्य प्रदायिनी सोमवती अमावस्य
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