एक मंत्र गीता से (Geeta Mantra)
अक्सर यह कहा जाता है कि किसी रोग या परेशानी से त्रस्त व्यक्ति को दवा और दुआ दोनों से लाभ हो सकता है। ऐसे में अगर वाकई दुआ लेनी हो, तो मंत्रों और श्लोकों से अधिक सहज रास्ता नहीं हो सकता है। ऐसा ही एक श्लोक है यो न ह्रष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङक्षति। शुभाशुभ परित्यागी भक्तिमान्य: स मे प्रिय:।
गीता में उल्लिखित इस श्लोक में कहा गया है कि जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न चिंता करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ संपूर्ण कार्यों का त्यागी है, वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है।
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