श्री हरि का प्रिय मास माघ (Magha Masa)
शास्त्रों में वर्णित सभी मासों में माघ मास का भी अत्यधिक महत्व है। श्री हरि को यह मास अत्यंत प्रिय है। वस्तुत: यह मास गंगा स्नान, पूजा-पाठ, जप-तप, अनुष्ठान, मंत्र सिद्धि, भगवद्भक्ति, कल्पवास, साधु-संतों के सत्संग और सानिध्य का, उनके प्रवचन, उनसे वेदों, उपनिषदों, पुराणों, धार्मिक ग्रंथों के सार तथा जीवन के वास्तविक मूल्यों को जानने-समझने, उसका अनुकरण, परिशीलन एवं चिंतन करके आत्मिक शांति और पुरुषार्थ पाने का उत्तम मास है। इस दौरान सूर्योपासना, गंगास्नान और श्रीहरि मधुसूदन की आराधना का विशेष महत्व है। माघ मास के महात्म्य के संदर्भ में श्रीहरि कहते हैं, ‘इस मास में साधु-संतों, महर्षियों द्वारा की गई बड़ी से बड़ी पूजा, यज्ञ, अनुष्ठान, वेद पाठ आदि से मेरा मन उतना प्रफुल्लित और आनंदित नहीं होता, जितना उनके द्वारा ब्रह्म वेला में स्नान करने तथा आरती करने से आनंदित होता है। जो प्राणी ब्रह्म वेला में गंगा स्नान करके मेरे नाम मंत्र
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" "ॐ अच्युताय नम:" "ॐ केशवाय नम:" "ॐ अनंताय नम:"
का जप, सूर्य नारायण को अर्घ्य देते हैं तथा गंगा जी की आरती पूजन करते हैं, उन्हें निश्चित ही मेरे चैतन्य, ब्रह्म, शांत तथा अदभुत विराट स्वरूप के दर्शन होते हैं। और अंत में मेरे अनुग्रह से मेरे परमात्म स्वरूप को प्राप्त कर परमानंद में निमग्न हो जाते हैं।’ माघ मास की विशिष्टता का वर्णन करते हुए महामुनि वशिष्ठ ने श्रीराम से कहा है, ‘जिस प्रकार चंद्रमा को देखकर कमलिनी तथा सूर्य को देखकर कमल प्रस्फुटित और पल्लवित होता है, उसी प्रकार माघ मास में साधु-संतों, महर्षियों के सानिध्य से मानव बुद्धि पुष्पित, पल्लवित और प्रफुल्लित होती है। यानी प्राणी को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।’
गंगा स्नान का महत्व
पौराणिक मान्यतानुसार इस पूरे मास में सभी देवी-देवगण, गंधर्व अप्सराएँ, यक्ष- यक्षिणीयाँ, किन्नर तथा समस्त दिव्य अलौकिक दृश्य-अदृश्य शक्तियां ब्रह्म बेला में गंगा स्नान करने आते हैं। उनके स्पर्श से उस समय गंगा का जल विशिष्ट ऊर्जा से संपन्न हो जाता है। इसलिए इस बेला में स्नान करना मनुष्यों के लिए परम हितकारी माना गया है। इस मास में सूर्य उत्तरायण होते हैं। उस समय उनकी दिव्य रश्मियों के प्रभाव से व वसंत ऋतु के आगमन से सारा वातावरण मनमोहक बन जाता है। यह मास पौष पूर्णिमा से शुरू होकर माघी पूर्णिमा तक चलता है। अगर इस मास के प्रारंभ के तीन और अंतिम तीन दिनों में भी स्नान किया जाए, तो पूरे मास स्नान करने के बराबर फल मिलता है। इस मास में काले तिल के दान, तिल मिश्रित जल से स्नान, तर्पण, तिल से हवन, आदि करने का विधान है। अप्सरा और यक्षिणी साधना के लिए भी यह मास उत्तम हैं। यदि आप देवो के प्रिय साधक बनना चाहते है तो आपको भी इस माह मे ब्रह्ममुहुर्त मे गंगास्नान अवश्य करना चाहिए।
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