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Urvashi Apsara: My Experience with an Apsara



उर्वशी अप्सरा साधना मेरा अनुभव

मैं भी आप लोग की तरह अप्सरा के किस्से सुनकर रोमांचित हो जाता था और मेरे मन मे अप्सराओं को लेकर बहुत सारे प्रशन आते थे। जैसे कि क्या सच में उर्वशी, रम्भा, मेनका आदि अप्सराएँ होती है? यदि अप्सराएँ होती है तो क्या आती भी है? आती है तो क्या सच मे अपने साधक को प्रेम करती है? क्या सच में वरदान देती हैं? ना जाने कितने ही प्रशन से भरा था मेरा मन। पर जबाब कहाँ मिलता? तो सोचा कि भगवान के बाद यदि कोई सहायता कर सकता है तो वो हैं गुगल बाबा, इंटरनेट की मदद क्यों ना ली जाये। इंटरनेट पर जो मिला उससे मुझे केवल निराशा ही हाथ लगी क्योंकि मुझे केवल और केवल व्यावहारिक ज्ञान चाहिए, किताबी ज्ञान का क्या? आधी-अधुरी कहानी। तो मैने सोचा कि किसी व्यक्ति की तलाश करी जाये जिसने स्वयँ अप्सराएँ साधनाएँ करी हैं और ना केवल करी हो बल्कि पूर्ण सफलता भी पाई हो। उस परमपिता की इच्छा से मेरी तलाश तो शुरु हो गई लेकिन ज्यादा कुछ मिला नहीं। इस दौरान एक साधक से मुलाकात हुई जिसने मुझे कांचनमाला अप्सरा की साधना को करने का सुझाव दिया और सारी विधि बता दी। मैनें कांचनमाला अप्सरा का यंत्र और एक स्फाटिका की माला का जुगाड भी कर लिया। अब प्राण प्रतिष्ठा तो मैं जानता नही था तो मैंनें किसी पंडित की सहायता ली। फिर मैनें शुक्रवार को एक शुभ मुहुर्त मे साधना को शुरु कर दिया तो पहले दिन गुरु आदि का पुजन करके कांचनमाला अप्सरा का पुजन किया तो मैं केवल 21 माला मंत्र ही जप पाया था। इसके बाद मैने साधना को विराम दिया। साधना के दौरान मुझे कोई अनुभूति ना हुई। जिस कारण मैं थोडा सा निराश था पर कोई बात नही। यह तो साधना का पहला दिन ही था इसलिए कोई ज्यादा चिंता ना हुई। इसके बाद दुसरे दिन..........पाँचवे दिन.......... ग्यारह दिन बीत गये............. तो कोई अनुभव नहीं हुआ। मेरे मन मे आया कहीं ना कहीं साधना मे कुछ गडबड है, तो इसका समाधान करने के लिए मै उसी साधक से मिला तो, उसने आगे करते रहने की सलाह दी लेकिन मैं अपनी जोब के चक्कर मे इस साधना को जारी ना रख पाया। मेरी जोब कई बार नाईट सिफ्ट मे भी होती थी। वैसे भी मैं जीवन मे पहली बार किसी साधना को कर रहा था इसलिए मैंने ज्यादा परवाह ना करी और साधना को बन्द कर दिया। इस प्रकार मेरी यह साधना बिना किसी अनुभव के समाप्त हो गई। इसका मतलब यह नही कि मै हार मान बैठा था क्योंकि मैं जानता हूँ कि पत्थर तो आखिर चोट से ही टुटता है बस मुझे चोट मारते रहनी हैं। एक अप्सरा को पाने के लिए आखिर मैनें किया ही क्या था? बस 21 माला 11 दिन जपने से कोई अप्सरा मिल जाती तो हर किसी के पास अप्सराएँ होती और स्वर्ग खाली पडा होता............ (LOL)…….। मैं बस यही जानता था कि कोई तो कमी हैं। दिल मे एक तडप थी कि अब तो अप्सराओ से मिलना ही चाहे कुछ भी क्यों ना हो जाये!

समय के साथ तलाश जारी रही फिर एक दिन ऐसा आ ही गया जब मेरी मुलाकात एक अप्सरा साधना के जानकर से हो गई। उन्होनें कहा मेरे पास समय का बहुत ही अभाव रहता हैं और मैं आपको बस एक ही साधना, अप्सरा उर्वशी की साधना करा देता हूँ। मैंने कहा मेरा सौभाग्य, आप एक भी ना सीखये तो मैं क्या कर सकता हूँ। तो उन्होने उर्वशी अप्सरा यंत्र औए माला को शुद्ध करने का तरीका बताया। इसके अलावा उन्होने मुझे बहुत ही जरुरी अप्सरा मुद्राएँ, न्यासो, उत्कीलन और कुछ विशेष वशीकरण क्रिया का ज्ञान दिया और कहा कि रोज कम से कम दो माला विशेष प्रकार की सामग्री से करना बहुत ही जरुरी हैं। उन्होने कहा कि इन सबके बिना कोई भी अप्सरा नियंत्रण मे नहीं हो सकती। दर्शन तो दुर की बात सुंगन्ध तक नहीं आती। मैंने प्रशन किया कि यदि इन सबसे वो ना आये तो क्या होगा? उन्होने सहज भाव से कहा बस साधना को दोबारा करने की अवश्यकता हैं। मैने कहा इन सब चीजो के अलावा मैंने नेट पर बहुत ही बडी बडी चीजो के नाम सुने है जोकि उर्वशी साधना जुडे हैं। क्या उन सब चीजो की भी अवश्यकता होती है तो उन्होने सपष्ट किया, क्या मुझ पर यकीन नहीं हैं और इन सब चीजो के अलावा यदि किसी चीज की अवश्यकता हैं तो वो हैं आत्मविश्वास, बस। मैंनें कहा, वो मैंने कहीं पर पढा हैं कि कुछ विशेष जडी बुटी होती है कि जिनके इस्तेमाल से उर्वशी जरुर आती है? तो उन्होनें कुछ गुस्से मे कहा, क्यों परेशान हैं? अभी तुने कुछ किया हैं? जो बकवास करे जा रहा हैं। पहले कुछ कर ले फिर बताना। दरअसल मैं अपनी सफलता और असफलता को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित था इसलिए ऐसा दुस्सहास करने भी नहीं चुका। उन्होनें कुछ कडवे स्वर मे कहा कि बस अपनी साधना को शुरु कर और इसी शुक्रवार से साधना शुरु करनी हैं। मुझे जाने के लिए कहा। 
     

इन सब को प्राप्त करने के बाद मैने अप्सरा साधना शुरु करी। जैसा कि आप जानते हैं कि उर्वशी अप्सराओं की रानी हैं तो मुझे लग रहा था कि वो जल्दी नहीं आयेगी। मैनें साधना को शुक्रवार से शुरु किया था। सबसे पहले हर साधना के शुरु मे गुरु गणपति की पुजा करनी होती है तो मैने भी इस क्रम का पालन किया। साधना शुरु करने से पहले ही मैने अपना पुरा कमरा शुद्ध कर लिया था, इत्र का छिडक दिया था, न्यास आदि करने के बाद, उर्वशी अप्सरा के यंत्र की स्थापना एक लकडी की चौकी पर पीला कपडा बिछाकर कर दी। यंत्र को पंचोपचार पुजन किया और साथ ही साथ अवश्य मुद्राओ को भी बनाते रहे। इसके बाद उत्कीलन और सम्मोहन क्रिया को भी समप्न्न किया। इसके बाद मैने पुरी 21 माला उर्वशी मंत्र की जप करी जोकि ॐ श्रीं उर्वशी .......... से शुरु होता था। मै यहाँ मंत्र इसलिए नही बता सकता क्योंकि गुरु जी बताने से मना किया था। बाद मैं मैने अग्नि देवता को नमस्कार कर हवन आदि कार्य की शुरु कर दिया केवल दो माला हवन किया गया। इसके बाद मे ॐ शान्ति कह दिया और आसन को नमस्कार कर उठ गया। सच कहुँ तो आज भी कोई अनुभव नहीं हुआ था और कुछ गुस्सा भी आ रहा था कि आखिर कुछ तो अनुभव होता। चलो कोई बात नही। मैं साधना को नहीं छोड सकता था क्योंकि संकलप मैने सपष्ट ही लिया था कि उर्वशी अप्सरा की प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए 11 दिन साधना करुगाँ। मैने साधना के नियम को पालन करते हुए अगले दिन उर्वशी अप्सरा की फिर साधना करी। दुसरे दिन जब मैं छ्ठ्ठी माला जप कर रहा था तो मुझे अभास हुआ जैसे कोई मेरे आसपास हैं पर मुझे लगा कि यह मेरा भ्रम हैं। इसके बाद मैने और भी सख्त होकर साधना को आगे किया तो लगभग ग्यारहवी माला के दौरान मुझे अचानक गुलाब के फुलो की खुशबू का बहुत ही तेज अहसास हुआ। यह गन्ध बहुत ही तेज थी। मुझे लगा कि यह मेरा भ्रम भी तो हो सकता है, क्योंकि जब मैने इतना इत्र इस्तेमाल किया हैं तो खुशबू आना स्वाभिक ही हैं। मुझे यकीन ना था कि यह खुशबू किसी देवी के आने का अहसास करा रही हैं।

जब मैं अगले दिन अप्सरा साधना कर रहा था तो हुआ यह कि तीसरे दिन भी मुझे मंत्र जप के दौरान कुछ खुशबू का अहसास तो होता रहा लेकिन दिल यह मानने को तैयार नहीं था कि देवी उर्वशी मेरे आसपास ही हैं। इसके बाद मैने हवन को चालू किया था तो मैने मुश्किल से 12-15 मंत्र ही जपे होगे कि बहुत ही तेजी से हजारो घुंघुरु खनकने की आवाज आई। मेरा दिल तो सहम ही गया और एक दिल करने लगा कि साधना को इसी समय बन्द कर दे और भाग जा, पता नहीं कौन होगी? कैसी होगा? इतने सारे घुंघुरु का आवाज मैनें कभी नहीं सुनी थी, मैंने तो सब औरते जो पाजेब पहनी रहती हैं बस उसकी आवाज सुनी थी। यह आवाज मेरे चारो और से आ रही है। फिर थोडी देर बाद मुझे उर्वशी के पैर भी दिखने लगे। बस इतना दिख रहा था कि सफेद गुलाबी पैरों मे बहुत से घुंघुरु और गोल गोल घुमते हुए लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी उससे उपर नजर करने की। मन मे डर था कि कहीं डरावना चहेरा तो नहीं बना कर आई होगी? मैनें हवन आदि कार्य को चालू रखा और धीरे धीरे थोडा सहज होने लगा तो हिम्मत कर उसका चहेरा देखने का प्रयास किया। सच मे वो बहुत ही सुन्दर थी, उस सुन्दरता ने सारा डर एक ही झटके मे दुर कर दिया और दिल जोरो से धडकने लगा। मैनें मन ही मन यह संकलप कर लिया था कि अब चाहे कुछ भी हो जाए मैं साधना बन्द करने वाला नहीं हूँ। आज मुझे यह अहसास हो रहा था कि किस प्रकार उर्वशी ने हमारे ऋषि मुनियों की साधना भंग करी होगी। अरे भाई जब ऐसी सुन्दरी सामने हो और इतने घुंघुरु की आवाज हो तो किसका मन साधना मे लगने वाला है? मैनें भी जैसे तैसे साधना समप्न्न करी। उर्वशी सफेद रंग के वस्त्रो मे दिखाई दी थी। बस इससे आगे कुछ ना हुआ, मैने साधना स्थान पर सो गया। सारी रात मुझे उर्वशी के पास होने के अहसास होता रहा। चौथे दिन कुछ ना हुआ केवल कुछ खुशबू का अहसास होता रहा। मैं बहुत ही डरता रहा कि आज भी हवन के समय वो आयेगी और धुम-धडाका करेगी तो क्या होगा? बच गया, मैं बच गया, क्योंकि आज वो नहीं आई थी। पाँचवे दिन साधना को करने के दौरान जो हुआ बताता हूँ... हुआ यह कि जब 12 माला जप रहा था तो अचानक से फिर उसके आने की आवाज महसूस हुई और वो मेरे आसपास घुमने लगी। धीरे धीरे जैसे रेम पर मोडलस चलती है। इस प्रकार वो पुरे कमरे मे विचरण करने लगी। फिर बीच बीच मे उसमें करंट सा आ जाता तो नचाने लग जाती। मुझे उसके नाचने से बहुत दिक्कत होती थी दिक्कत की वजह उसके घुंघुरु थे पर मै क्या कर सकता था। मुझे तो अपनी साधना को आगे बढना था। जैसे तैसे हवन किया।

छ्ठे दिन कुछ खास नही रहा....वो ना आई और ना ही खुशबू...........। सातवे दिन भी ऐसा ही हुआ...........। मुझे लगा कि मुझसे कोई भुल तो नहीं हो गई, जिसकी वजह से वो नाराज हो गई। मैं दिन भर उसकी सोच मे डुबा रहता था कि आज रात क्या होगा? दिनभर अपने गुरु के चिंतन मे लगा रहता था कि जो भी होगा सब ठीक ही होगा। आठवे दिन भी ऐसे ही बीत गया......। अब तो मुझे सच मे डर लगने लगा कि कहीं मैनें उर्वशी को नाराज तो नहीं कर दिया।............पर नोंवे दिन यह भ्रम टुट गया। वो आज बहुत ही ज्यादा सजी हुई और लाल रंग के परिधान में थी... आज घुंघुरु की आवाज बहुत ही कम थी और वो कुछ शांत से बैठी थी। ठीक मेरी चौकी के सामने दोनो पैरो को मोडकर पालती मारकर बैठी थी और मुझे घुर रही थी। उसकी कटार जैसे नजरो से बचने के लिए मैं बीच बीच मे अपनी आँखे बन्द करके ही मंत्र जपने लगता था, गला भी सुखा सुखा लगता था और बीच बीच मे आँखे खोलकर देखता था कि कहीं चली तो नहीं गई लेकिन आज पुरा समय वो वहीं आराम से बैठी रही। मुझे तो समझ नहीं आ रहा था कि आज इसको क्या हो गया बिल्कुल चुपचाप। (मन मे सोचा कि क्या आज इन्द्र देव से दाट खा कर आई हो)। मैं भी चुपचाप अपनी साधना को आगे करता रहा.................आज एक अजीब बात हुई कि पुरी रात मुझे नीन्द नही आई क्यों आज वो वापिस नहीं गई थी। मैं यदि सोने की कोशिश करता भी तो वो पायल को छ्नककर पुरी नीन्द उड देती। सूर्य देव के आने के एक घंटे पहले वो मुस्कुराती हुई चली गई। मैं तो नीन्द का मरा था सारी रात सोने को तरश गया। जैसा कि मुझे सुबह डुयूटी जाना था। तो सोचा कि आज छुठ्ठी ले लेता हूँ। फिर मैं सो गया.............और अब बात करते हैं अंतिम दिन, तो रोज की तरह साधना पूर्ण करने के बाद, मैं अपने आसन पर खडा हो गया और प्रसन्न होने की मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए उसको अर्ध्य दिया, तो मेरे करीब आ गई थी। मैनें कुछ इत्र उस पर छिडका, और नैवेध को पुनः अर्पित किया, उसने स्वीकार किया, फिर मैनें उसको फूलो की माला दी जोकि मैं पहले से तीन चार दिन से लाकर रख लिया करता था। उसने माला स्वीकार करी और पुनः उसी माला को उतार कर मेरे गले में पहना दी। मुस्कुराने लगी और मेरे कन्धे पर सिर रखकर खडी हो गई, मैनें फिर दबी हुई आवाज में कहा हे उर्वशी अप्सरायैं नमस्तुभयं प्रसन्नं भव मम सकल मनोकामनां पूर्णं करोति, मम प्रेमिका भवति............ तो देवी ने तथाअस्तु कहा और कुछ देर मे ही चली गई।

साधको यह तो मेरी साधना का अनुभव हैं। आप सब मूक क्यों हो, आप भी अपनी साधनाओं के अनुभव स्वयँ के ब्लोग पर या किसी अन्य के ब्लोग पर पोस्ट होने को क्यों नही देते?। मेरा नाम मनोज हैं। मैं हरिद्वार का रहना वाला हूँ। यदि आप लोग का कुछ भी भ्रम दुर सकें तो मेरा प्रयास सफल होगा। मैं कोई बचपन से साधना नहीं करता था। मुझे तो दुसरी बार मे ही सफलता मिल गई। अब कुछ लोग इसे मेरा प्राराब्ध कहेंगे और कुछ लोग मेहनत भी कह सकते हैं। कुछ गुरु कृपा भी कह सकते हैं। साधको चाहे कुछ भी कहो इससे क्या फर्क पडता है। समझने की बात तो यह है कि इस प्रकार की साधनाएँ आज भी कलियुग मे जीवित है और काम करती हैं। मैं अपना नम्बर अभी यहाँ प्रकाशित नहीं करना चाहता क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे पास बहुत सारे साधको के कालस आने लगेगे। मैं अभी एक एम.एन.सी कम्पनी मे कार्यरत हूँ, मैं शादी शुदा भी हूँ और मेरी पहले से बहुत अधिक जिम्मेवारी भी हैं। वैसे भी मैं किसी की सहायता करने के योग्य नहीं हूँ और जितनी सहायता इस पत्र को लिखकर कर सकता था मैनें कर दी। कृपा कर मेरे इस पत्र को ...........।  

(मैं इसके बाद भी समय समय पर कुछ अन्य लोगो के अनुभवो को पोस्ट करुँगा ताकि आपको जो भी, जितनी भी जानकारी उपलब्ध हो सके और आपके कुछ काम आ सकूँ तो यह मेरे जीवन का सौभाग्य ही होगा।)


6 comments:

  1. Dhanyawad,
    apne apke anubhav hamare saath share kiye.

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  2. apke amulya anubhav share karne ke liye dhanyvad.

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  3. This comment has been removed by a blog administrator.

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  4. Ye kafhi romanch bhara anubhav hai....aachha laga ... ye sab batane ke liye dhanyavad.... ghungru vali bat agar mere sath hoti to mai shayad behosh hi ho gaya hota.... mujhe bhi is prakar ki sadhnaye karni hai...dhanyavad aapka anubhav hame batane ke liye...Sadhna mai aasani hogi....

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  5. kirpiya aur apsara sadhna ke anubhav batane kee kirpa kare dhanyavad

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  6. AS PER GURU'S GRACE THE SON OF LORD KRISHNA " SAMBA " HAS RECEIVED ONE SET OF MANTRAS FALLEN FROM ADITYA MANDAL(THESE MANTRAS ARE VERY POWERFULL WHICH IS EQUAL TO SRI RUDRAM AS PER UPANISHAD)

    IN THAT ONE MANTRA IS :-

    " AADITYAI RAPSAROBHIRMUNIBHIRAHIVARAIRGRAAMANEE YAATHU DHAANAIHI "
    KRUTHASTHALA , PUNJIKASTHALA , RAMBHA , MENAKA , URVASHI , TILOTTAMA ,SAHAJANYA , SHUCHISMITHA , GHRUTHACHI , VISHWACHI , PRAMLOCHANTHI , PURVACHITTHI are the 12 apsaras who has great importance as per 12 months and explained the same to LORD RAMA BY VISHWAMITRA IN SRI RAMAYAN ALSO.EVEN IN MEDHA SUKTHAM ALSO STATES SOME APSARAS ARE ATTENDANTS OF MAA SARASWATI.

    so,apsaras are not lustfull women they have their unique importance in puranic scriptures.hope everybudy atleast once in their life do sadhana of goddess APSARA

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