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Mudra Vigyan (मुद्रा कैसे बनाए)

भारतीय अध्यात्म विज्ञान के महत्वपूर्ण भागों में एक है योग, जिसका एक उपांग है मुद्रा विज्ञान। योग में मुद्राओं का महत्व काफी अधिक है। प्राचीन योगियों ने बताया है कि हाथ की पांचों उंगलियां अलग-अलग पांच तत्वों की प्रतिनिधि हैं। यानी अंगूठा-अग्नि, तर्जनी-वायु, मध्यमा-आकाश, अनामिका-पृथ्वी और कनिष्ठा-जल का प्रतिनिधित्व करती हैं। अगर योग मुद्राओं का अभ्यास प्रतिदिन किया जाए, तो किसी भी उम्र का व्यक्ति रोग विकारों को समूल नष्ट कर सकता है। इन मुद्राओं का अभ्यास फर्श पर आसन बिछाकर या सुखासन में बैठकर दोनों हाथों से किया जाता है। इन्हें चलते-फिरते या किसी भी जगह बैठकर किया जा सकता है। प्रतिदिन कम से कम 40 मिनट तक योग मुद्रा का अभ्यास करना स्वास्थ्यकर माना गया है। अगर आपका शरीर असाध्य रोग से पीड़ित हो, तो इन मुद्राओं को करते समय सर्वरोग निवारक मंत्र ॐ अच्युतानंद गोविंद का मन ही मन जाप करना चाहिए। किसी शांत और शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल आदि बिछाकर पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। अब किसी मुद्रा का अभ्यास करे।



ज्ञान मुद्रा:
 जब तर्जनी उंगली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्श कर 
हल्का सा दबाव दिया
जाता है, तब ज्ञान मुद्रा बनती है। 
हाथ की बाकी की तीनों उंगलियां बिल्कुल एक साथ लगी हुई और सीधी रहनी चाहिए। 
इसके नियमित अभ्यास से मस्तिष्क के समस्त विकारों से मुक्ति मिलती है और स्मरण शक्ति तेज होती है। इसके अलावा क्रोध, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा व तनाव आदि से भी मुक्ति मिलती है। ध्यान एकाग्र करने के लिए यह मुद्रा रामबाण मानी जाती है। 



प्राण मुद्रा: जब कनिष्ठा व अनामिका दोनों उंगलियों को एक साथ मिलाकर उनके अग्रभाग से अंगूठे के अग्रभाग को स्पर्श कराया जाता है, तब प्राण मुद्रा बनती है। इस मुद्रा के प्रतिदिन अभ्यास से प्राण शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। आंखों में कैसे भी विकार या संक्रामक रोग हों, यह मुद्रा हर विकार में लाभप्रद है। शरीर में ऊर्जा शक्ति के विकास के लिए इसे आजीवन किया जा सकता है। 



अपान मुद्रा: जब मध्यमा एवं अनामिका उंगलियों के अग्रभागों को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाया जाता है, तब अपान मुद्रा बनती है। इसके प्रतिदिन अभ्यास से शरीर में एकत्रित विजातीय द्रव्य शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इससे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कब्ज, दस्त, दांतों की बीमारी, पेट संबंधी समस्या आदि में लाभ मिलता है। यह मुद्रा भूख और पाचन शक्ति भी बढ़ाती है। 


पृथ्वी मुद्रा: जब अनामिका उंगली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाया जाता है, तब पृथ्वी मुद्रा बनती है। इसके नियमित अभ्यास से शरीरिक दुर्बलता दूर होती है। हृदय और मन की दुर्बलता को दूर करने में भी यह मुद्रा उपयोगी मानी जाती है। इससे शरीर कांतिमय हो जाता है और मन में नई ताजगी, स्फूर्ति आती है। कमजोर हृदय वालों के लिए यह मुद्रा अतिउपयोगी है। 



वरुण मुद्रा: जब कनिष्ठा को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाया जाता है, तब वरुण मुद्रा बनती है। इस मुद्रा के प्रतिदिन अभ्यास से समस्त प्रकार के चर्म रोग, रक्त विकार दूर होते हैं। इस मुद्रा को करने से शरीर में जल तत्व की कमी से उत्पन्न रोग भी दूर हो जाते हैं। 



आकाश मुद्रा: जब मध्यमा उंगली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाया जाता है, तब आकाश मुद्रा बनती है। इस मुद्रा के अभ्यास से हड्डी, कान संबंधी रोग, जबड़े के रोग दूर होते हैं। 


योग मुद्राओं का प्रतिदिन अभ्यास किया जाए, तो पंचतत्वों से बना शरीर कई बीमारियों से मुक्त रहेगा और हमेशा निरोग बना रहेगा

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