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यमुना यम की बहन हैं


आश्विन शुक्ल की पूर्णिमा के बाद से पवित्र माह कार्तिक का शुभारंभ हो जाता है, जो कार्तिक पूर्णिमा तक रहता है। इस दौरान लोग पूजा-पाठ में लीन हो जाते हैं और शास्त्रों में वर्णित सद्कार्य करने की बातों से प्रेरणा लेते हैं। कार्तिक मास में कई देवी-देवताओं का महत्व वेदों व पुराणों में बताया गया है। साथ ही इस दौरान कई त्योहार भी आते हैं। इसी माह में दीपावली का पर्व आता है, जिसमें भक्त धन की देवी लक्ष्मी का आह्वान करते हैं। साथ ही महिलाएं तुलसी व भगवान विष्णु की आराधना भी करती हैं।

इस माह में यमुना नदी का महत्व भी काफी अधिक हो जाता है। विशेषकर यमुना नदी के किनारे दीपदान करने का अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है। असल में यमुना सूर्य की पुत्री हैं और यम की बहन हैं। इस वजह से कार्तिक मास में इनका महत्व और अधिक हो जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि अगर कोई प्रतिदिन यमुना के जल में स्नान करता है, तो उसे यम का भय नहीं सताता है।

महाभारत काल में भी यमुना नदी की चर्चा हुई है। प्रथम बार जब श्रीकृष्ण को उनके पिता वासुदेव जेल से अपने मित्र के घर पहुंचाने जाते हैं, तो वह यमुना नदी को पार करके ही वहां पहुंचते हैं और इसके बाद श्रीकृष्ण के समस्त बाल्यकाल के वर्णन में यमुना का जिक्र आता है। यमुना के अतिरिक्त कार्तिक मास के बारे में ज्योतिष शास्त्र में भी अलग तरह से बताया गया है।

इसके अनुसार इस माह में सूर्य नीच की तुला राशि में रहता है। इसलिए धारणा यह है कि नीच का सूर्य विकृत प्रभाव वाला होता है और नीच के सूर्य के दुष्प्रभाव से शरीर रोगजन्य स्थिति में न पहुंचे। इसके लिए कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए, जिससे उपासक निरोग बना रहे। जब शरद पूर्णिमा आती है, तो उसी समय से सूर्य की ऊर्जा भी मंद पड़ जाती है, जिससे चंद्रमा का महत्व बढ़ जाता है। वैसे यह एक खगोलीय घटना भी है, पर शास्त्रों में इस घटना को उपासकों के लिए शुभ-अशुभ के अनुसार बताया गया है।

एक ओर शरद पूर्णिमा भगवान कृष्ण के रासलीला रचाने की रात्रि मानी जाती है, वही लक्ष्मी पूजन के कारण इस दिन का महत्व और अधिक हो जाता है। ऐसे में दीपदान और अन्य पुण्य कर्म करने से उपासकों के जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। ऐसा माना जाता है कि आकाश को दीप दिखाना, सूर्य और चंद्रमा के साथ ही भगवान विष्णु की भी आराधना है। कार्तिक माह के अनुसार कोई माह नहीं है। लिहाजा इस मास में व्रत-उपवास रखने और नियमित रूप से भगवान की पूजा करने से उपासकों को पुण्य का पूर्ण फल मिलता है। इस मास में तुलसी को प्रतिदिन दीप जलाने का भी विधान शास्त्रों में बताया गया है।

साथ ही भगवान विष्णु को तुलसी पत्र व मंजरी अर्पित करके भी व्यक्ति रोगमुक्त रहने की कामना कर सकते हैं। इस माह में विशेष लाभ के लिए स्नान के दौरान इस मंत्र का उच्चारण लाभदायी होता है।

कार्तिकेहं करिष्यामि प्रात: स्नानं जनार्दन। 
प्राप्त्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह।।

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