श्री हरि - मैं मार्गशीर्ष हूं
मार्गशीर्ष का माह भगवान श्री हरि का परम प्रिय है। इस माह की विशिष्टता के संदर्भमें श्री हरि विष्णु स्वयं ब्रह्मा जी से कहते हैं, ‘मासानां मार्गशीर्षो्हम’ अर्थात महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूं। मुझको वश में क रने वाला, मेरी कृपा और सान्निध्य दिलाने वाला यह दुर्लभ मास है। जो व्यक्ति प्रात: काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर भक्ति भाव से मेरे अनंत और विराट स्वरूप का पूजन अर्चन करता है, व्रत रखता है, यज्ञ हवन आदि करता है, वह मेरी विशिष्ट कृपा का पात्र बनता है। वह यदि पुत्र रहित है, तो पुत्रवान हो जाता है, निर्धन है, तो धनवान हो जाता है। मेरी अर्चना ब्रह्मतेज, धन-वैभव और देवत्व प्रदान करने वाली है। मुझको वश में करने वाली भक्ति सर्वथा दुर्लभ है, किंतु मार्गशीर्ष मास के महात्म्य का श्रवण करने और नियमों का पालन करने से वह प्राप्त हो जाती है।
पूजन विधि
श्री हरि कहते हैं कि जो प्राणी ब्रह्म मुहूर्तमें संपूर्ण शुद्धता के साथ मेरे ‘ॐ नमो नारायणाय नम:’ मंत्र का यथा शक्ति हजार या सौ बार जप मेरे समीप बैठ कर करता है, उसे तीर्थों में बैठकर जप करने से कई गुणा पुण्य की प्राप्ति होती है। जो लोग शंख में जल लेकर मुझे स्नान कराते हैं, वे समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। जो तुलसी दल, गंगा जल तथा आंवला मुझे अर्पित करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
दान :
मार्गशीर्ष के पूरे मास गुड़, नमक के दान की विशेष महिमा कही गई है। सूती वस्त्र तथा कपास का भी दान करना चाहिए।
दान मंत्र :
शरण्यं सर्वलोकानाम लज्जाया रक्षणं परम। देहालंघरणं वस्त्रमत: शांतिं प्रयच्छ मे।
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