भैरव पुजा करें पाये वरदान
भगवान शंकर के दो रूपों का वर्णन शास्त्रों में उल्लिखित है। एक रूप भक्तों को अभयदान देने वाला विश्वेश्वर स्वरूप और दूसरा दुष्टों को दंड देने वाला काल भैरव रूप। विश्वेश्वर रूप अत्यंत शांत है, वही कालभैरव स्वरूप रौद्र, विकराल, भयानक और प्रचंड है। शिव का रुद्र रूप होने के कारण इनकी प्रकृति अत्यंत उग्र है। इनका वर्ण श्याम, वाहन श्वान तथा शस्त्र दण्ड है। उन्हें समाज साक्षात शिव ही मानता है:
भैरव: पूर्णरूपो हि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तं वै न जानन्ति मोहिताश्शिवमायया:।
कालभैरव अपनी चारों भुजाओं में त्रिशूल, खड्ग-खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए शोभायमान होते हैं। ये भूत प्रेत डाकिनी, शाकिनी, योगिनियों के अधिपति हैं। राहु ग्रह की शांति तथा किसी भी प्रकार की विघ्न बाधाओं या मंगल कार्यों में बाधाओं के निवाराणार्थ भैरव उपासना का विशेष महत्व है। इनके विविध स्वरूप हैं, जिनमें से बटुक भैरव सबसे सौम्य स्वरूप हैं। महाकाल भैरव मृत्यु के देवता हैं। स्वर्णाकर्षण भैरव को सुख-शांति, धन-धान्य, समृद्धि का अधिष्ठाता कहा गया है। वहीं बाल भैरव की उपासना बाल रूप में की जाती है। इनकी पूजा के लिए मंगलवार तथा रविवार सर्वश्रेष्ठ दिन हैं। जो साधक भैरव जयंती के दिन अथवा किसी भी माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को व्रत रखकर विधिवत भैरव जी का पूजन अर्चन, चिंतन पितृ तर्पण तथा श्राद्धतर्पण करते हैं, वह नाना प्रकार के कष्टों से तथा मृत्यु के भय से मुक्त हो जाते हैं। इस दिन शिव की आराधना पूजन करने से भी भैरव जी की असीम कृपा प्राप्त होती है, क्योंकि भगवान शिव भैरव जी के आराध्य देव और गुरु हैं।
भैरव उपासना का महत्व: भैरव उपासना के संदर्भ में स्वयं भगवान शंकर जी पार्वती जी से कहते हैं, ‘हे देवी! मैंने प्राणियों को सभी प्रकार का सुख देने वाले बटुक भैरव का रूप धारण किया है। अन्य देवता तो देर से कृपा करते हैं, परंतु भैरव शीघ्र ही साधक की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इसलिए इनकी उपासना परम पुण्य दायिनी है। यदि प्राणियों को विपदाओं से मुक्ति का मार्ग न दिखे, तो भैरव अष्टमी के दिन इनकी शरण में जाकर पूजा अर्चना तथा उनके 108 नामों का जप करके विशेष कृपा प्राप्त करनी चाहिए। इनकी पूजा से दुर्भाग्य, अकाल मृत्यु तथा विपदाओं का नाश होता है।’
प्रार्थना मंत्र
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नम:।
भवे भवेतानि भवं भवस्य मा भवभ्दवाय॥
व्रत विधान: प्रात: काल स्नानादि से निवृत्त होने के बाद भैरव मंदिर जाकर भगवान भैरव जी की उनके वाहन सहित पूजा का विधान शास्त्रों में वर्णित है। सर्वप्रथम सिंदूर से त्रिकोण बनाकर मध्य में आधार बिंदु बनाकर उस पर आसनाभिमुख बैठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात विविध पूजन सामग्री रोली, अक्षत, सिंदूर, लाल चंदन, लाल पुष्प, धूप दीप, नैवेद्य में गुड़ गुलगुला इमरती, बूंदी, लड्डू नमकीन, भुने चने, उड़द के बड़े, धान का लावा, भूरा काला वस्त्र, कच्चा दूध, ईख का रस, तिल या सरसों के तेल के दीप आदि से विधिवत पूजन अर्चन आरती करने के पश्चात भगवान शिव का पूजन, उनकी कथा, उनके नाम, मंत्रों का जाप तथा भैरव जी की कथा श्रवण करना चाहिए। पूजन के पश्चात उनके वाहन (कुत्ता) को भी दही मिष्ठान्न खिलाने चाहिए। तत्पश्चात एक त्रिकोण बनाकर उस पर दीप जलाकर दस दिक्पालों सहित अष्ट भैरवों को दीपदान करें।
जिनकी कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि अशुभ स्थिति में हों, उन्हें भैरव अष्टमी या किसी भी माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी, जिस दिन रविवार या मंगल वार पड़े, उस दिन भैरव मंदिर जाकर या घर पर ही बटुक भैरव का ध्यान करके उनकी एक माला जप 40 दिन तक रुद्राक्ष की माला से करने से शुभता की प्राप्ति होती है।
मूल मंत्र
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं।
------------------------------------दुसरा विधान ------------------------------------
स्नानादि करके व्रत का संकल्प लें। चूंकि काल भैरव जी का जन्म दोपहर में हुआ था, इसलिए उनकी पूजा दोपहर में करनी चाहिए। पूजन के समय मानसिक रूप से "ॐ भैरवाय नम:" मंत्र का जाप करते रहें। कुत्ते को मिठाई खिलाएं। रात के समय मीठा भोजन करें। भैरव जी काशी के कोतवाल भी कहे जाते हैं। काशी में भैरव जी के कई मंदिर हैं, जैसे कि काल भैरव, बटुक भैरव, आनंद भैरव आदि। कालभैरव का उपवास करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इस दिन व्रत करने से भैरव जी भक्त से प्रसन्न होकर उसे मृत्यु समान कष्टों से बचाते हैं। उनका व्रत करने से मत्यु जैसे महादुखों से भी मुक्ति मिलती है और शुभ फल प्राप्त होता है।
प्रणाम
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