Header Ads

ad

राहु और केतु - भाग्यवान योग


शनि की तरह राहु और केतु को भी शास्त्रों में अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया गया है। असल में इनका प्रभाव हर व्यक्ति की कुंडली में अशुभ ही नहीं होता है। और अगर किसी की कुंडली में ये ग्रह अशुभ स्थिति में हैं, तो उपाय के माध्यम से इन्हें प्रसन्न किया जा सकता है।

अगर मेष, वृष या कर्क लग्न की कुंडली में राहु नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में स्थित हो, तो अरिष्ट भंग योग बनता है और यह शुभ योग है।

लग्न में स्थित तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में स्थित राहु परिभाषा योग बनाता है। इस स्थिति में यदि राहू किसी शुभ ग्रह से देखा जाता हो, तो और भी अच्छा हो जाता है।

राहु छठे भाव में हो और गुरु भाव 1,4,7,10 में हो, तो अष्टलक्ष्मी योग का निर्माण होता है। इससे जातक अष्टलक्ष्मी युक्त होता है।

अगर कुंडली में केतु और शनि का योग है, तो फलदायक योग बनता है। यह योग जातक को हर कार्य में सफलता देता है।

वृश्चिक या मीन लग्न में पांचवें या आठवें भाव में पंचमेश या नवमेश चंद्र और राहु की युति हो, तो वृश्चिक-मीन योग बनता है। इस योग से जातक के जीवन में शुभ अवसर आते हैं।

अगर कुंडली में राहु व लग्नेश दसवें भाग में हो, तो भाग्यवान योग बनता है। इससे जातक के जीवन में सौभाग्य आता रहता है।

No comments

अगर आप अपनी समस्या की शीघ्र समाधान चाहते हैं तो ईमेल ही करें!!