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ॐ की महिमा

ॐ ब्रह्म स्वरूप है और स्वत: सिद्ध शब्द है, जिसके स्मरण, जप, ध्यान और आवास में विधिपूर्वक पूजन सहित इसके अंकन से मानव को सुख-शांति और धन-वैभव के साथ-साथ आवागमन से भी मुक्ति मिलती है। हमारे उपनिषदों में ओंकार को परमात्मा का श्रेष्ठ प्रतीक बताया गया है और ॐ नाम से आत्मा का ध्यान करने का निर्देश दिया गया है। ओंकार ब्रह्मनाद है और इस शब्द के स्मरण, उच्चारण एवं ध्यान से आत्मा का ब्रह्म से तादात्म्य स्थापित होता है। यह परम पावन शब्द है।
गीता के आठवें अध्याय के तीसरे श्लोक में अक्षरं ब्रह्म परमं कहा गया है, यानी यह साक्षात् ईश्वर का रूप है। यह प्रणव मंत्र है, जिसकी उपासना करने से मनुष्य के जीवन के सारे कष्ट-संताप मिट जाते हैं। इसका जप-उच्चारण एवं आवास गृह में इसके अंकन से परम् सौभाग्य तथा धन, बल, बुद्धि व वैभव की प्राप्ति होती है। यह अकेला शब्द अत्यंत ही शक्तिशाली प्रतीक चिह्न है और अन्य सभी मांगलिक चिह्नों से ऊपर है।

परमात्मा के एकाक्षर नाम ॐ के उच्चारण के बिना न तो कोई जप, न तप और न ही दान संपूर्ण हो पाता है। कोई अनुष्ठान भी इसके बगैर नहीं संपन्न होता है। इसकी वजह यह है कि इस शब्द में ब्रह्म स्वयं साक्षात् रूप में विराजते हैं तथा इस प्रतीक में अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष एवं आनंदमय कोष, सभी सन्निहित हैं। भारतीय ऋषियों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य के शरीर में ब्रह्म प्रकाश स्थित है। उसी से वह क्रियाशील होता है और यह ब्रह्मत्व उपरोक्त पांच कोषों से निर्मित है। अत: ॐ केवल ब्रह्म स्वरूप ही नहीं है, बल्कि यह हमारा आत्म स्वरूप भी है।

ॐ की अपार शक्ति का गुणगाण करना आसान नहीं है।यह अपरिमित शक्ति व संपन्नता का द्योतक है। यह सर्व अनिष्ट निवारक है, जिससे समस्त बाधाएं दूर होती हैं। वास्तु दोषों के अनिष्ट प्रभाव से राहत पाने के लिए भी ॐ का इस्तेमाल किया जाता है। इसका अंकन करना और विधिपूर्वक इसका पूजन करना मंगलकारी व सुखदायक है। इससे वास्तु के दोषों का दमन स्वत: ही हो जाता है, क्योंकि बृहन्नारदीय में ‘अ’ कार को ब्रह्मा, ‘ड’ कार को विष्णु तथा ‘म’ कार को शिव का रूप माना जाता है :

अकारं ब्रह्मणो रूप, मुकारं विष्णु रूपवत्।
म कारं रुद्र रूपं स्यादर्ध मात्रं परात्माकम्।

ॐ’... इस एक शब्द में तीन अक्षरों का संयोग होने से इसमें तीनों देवों की साक्षात् उपस्थिति है। इसलिए यह परम पूज्य व उपास्य है। इस ब्रह्म शब्द के द्वारा तीनों देवों की तुष्टि संभव है। इसलिए आवास में इसकी स्थापना और पूजा से सारे दोष दूर होते हैं और सुख-शांति का आगमन होता है। ओंकार की पहचान परमात्मा के श्रेष्ठ प्रतीक के रूप में है। हिन्दू धर्म ग्रंथों और विधि-विधानों में ॐ शब्द को बेहद पवित्र माना गया है। यह शब्द सर्व अनिष्ट निवारक और सुख-समृद्धिदायक है

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