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Why Shiva Raatri Pujan Is Unique

भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि वे देवों के भी देव महादेव हैं। अगर सार्वभौमिक रूप से भी देखा जाए, तो जितनी पूजा और मंदिर भगवान शिव के हैं, उतना किसी भी देवी-देवता के नहीं हैं। शिव और शिवालय की महिमा का गुणगान मनुष्य से लेकर देवी-देवताओं तक सभी ने किया है। 

शिव की पूजा सबसे अलग है।

अगर हम पूजा की विधि-विधान पर नजर डालें, तो उसमें भी यह अन्य त्योहारों और अन्य देवी-देवताओं की पूजा सामग्री से बिल्कुल भिन्न हैं। शिवजी पर चढ़ाई गई पूजा सामग्री में आक का फूल, जो कभी सुगंध नहीं देता, जिसको कोई भी पसंद नहीं करता, का उपयोग होता है। बेलपत्र जो सामान्यतौर कर्मेंद्रियों को शीतल बनाने में इसका उपयोग होता है, प्रमुख माना जाता है। इसके साथ ही चुभने वाली कुश जैसी चीजें, जो किसी भी हाल में देवताओं को अर्पण नहीं की जाती, भगवान शिव को प्रिय हैं। जहां अन्य देवी-देवताओं को खूब पकवान, फल-फूल तथा अन्य शुद्ध और पवित्र चीजें ही चढ़ाते हैं, वहीं शिवजी को ये सब चीजें क्‍यों? गहरे चिंतन का विषय है, खासकर आज के समय में। अगर हम इसके गहरे तथ्यों में जाए, तो आज के मनुष्यों के अंदर कांटे और कुश समान हर बात दुख और अशांति प्रदान करने वाली है। आज मनुष्य की कर्मेंद्रियों इतनी चंचल है कि उसका अपने ऊपर ही नियंत्रण नहीं है। विकार और बुराइयां स्वयं को दुखी तो करती ही है, परंतु दूसरों को भी दुख देती हैं। इसलिए जब मनुष्य इन सभी बुराइयों से ग्रसित हो जाता है, समाज में अज्ञान का अंधकार हो जाता है, मानवता का दीपक बुझने लगता है। ऐसे अंधकार युग से निकाल परमात्मा प्रकाशमयी दुनिया अर्थात् श्रेष्ठ युग की ओर ले जाते हैं। मनुष्य के अंदर व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए परमात्मा में खोये रहने का मंत्र देते हैं। जिससे मनुष्य के अंदर पवित्रता, सुख, शांति का संचार होने लगता है। फिर मनुष्य देवत्व की ओर अग्रसर होता है। 

शिवलिंग की पूजा क्यों: शिव का अर्थ होता है कल्याणकारी और लिंग का अर्थ होता है चिन्ह अर्थात् साकार रूप में भावनाओं को प्रकट करने का प्रतीकात्मक रूप हैं। ज्‍योति स्वरूप ऐसे परमात्मा को कैसे पूजा या अर्चना की जाए। इसलिए लोगों ने परमात्मा के नाम रूप के आधार पर उसके चिन्ह का निर्माण किया और उसपर अपनी भावनायें अर्पित करते हैं। 

लड़कियां क्‍यों करती हैं व्रतः शिवरात्रि पर्व के बारे में यह मान्यता है कि महिलाएं और उसमें भी खासकर कुंवारी कन्याएं शिवजी का ज्‍यादा व्रत करती हैं और अच्‍छे वर की कामना करती है। इसका यही अर्थ है कि कन्याएं शादी से पूर्व पवित्र होती हैं और उस पवित्रता के कारण उनके अंदर सुख और शांति का स्रोत होता है। इसलिए वे परमात्मा शिव से यही मन्नतें मांगती हैं कि जो वर मिले वे उन्हें उसी तरह की पवित्रता पूर्ण व्यवहार करें॥

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