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मायाजाल

होश संभालने के बाद जब बच्चा विद्यालय जाता है, तो अभिभावकों और बच्चों के इच्छाओं की गिनती शुरू हो जाती है। पढ़ाई के लिए तरह-तरह के सामान की इच्छा, तो कक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने की इच्छा। शिक्षा पूर्ण होने के बाद अच्छा जीवन यापन करने के लिए अच्छी कमाई की इच्छा। गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने के बाद पति-पत्नी दोनों की इच्छाएं मिलकर दोगुना बोझ पैदा कर देती हैं। यह चक्र फिर से शुरू हो जाता है। विद्वान ऋषियों ने समाज और सांसारिकता को मायाजाल की संज्ञा दी है। इस मायाजाल को छोड़कर जो प्राणी गृहस्थ और समाज से किनारा करके ईश्वर भक्ति में लीन हो जाते हैं, वे भी इच्छाओं के मायाजाल से मुक्त नहीं हो पाते। पर इनकी इच्छाएं लोभ, स्वार्थ, आदि से अलग धार्मिक होती है। 

इच्छाओं की पूर्ति सामान्य गृहस्थ जीवन में वास्तव में मायाजाल है। इसमें हम मुख्यत: तीन स्तरों के लोगों को देख सकते हैं। पहले वे जो प्रयास करने के बाद अपनी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाते। ऐसे लोग हिम्मत हारकर बैठ जाते हैं। अपने वातावरण, परिस्थितियों और यहां तक कि ईश्वर को भी दोष देने लगते हैं। अक्सर ऐसे लोग शारीरिक और मानसिक तौर पर डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो जाते हैं। दूसरे प्रकार के वे लोग हैं, जिनके जीवन में इच्छाओं की पूर्ति कभी हो जाती है और कभी नहीं होती। ऐसे लोग समाज में बहुत बड़ी संख्या में हैं, जिनके जीवन को यूं बयां किया जा सकता है। कभी खुशी, कभी गम। ऐसे लोग भी कभी खुशी की अधिकता होने से, तो कभी गमों की अधिकता होने से डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। तीसरे प्रकार के लोग वैसे लोग हैं, जिन्हें साधन, संपत्तियों और हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से संपन्न वातावरण मिला। ऐसे लोग थोड़े से प्रयास के बाद ही अपनी इच्छाओं को पूर्ण कर लेते हैं। परंतु इनका ध्यान हमेशा इस बात पर लगा रहता है कि ये सुख-सुविधाएं हमसे छिन न जाएं। एक लंबा समय बीतने के बाद वे भी डिप्रेशन की आशंका से बच नहीं पाते। 

यानी साफ है कि सामान्य गृहस्थ जीवन में व्यक्ति तो कभी भी किसी मोड़ पर डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। जो लोग निश्चित रूप से डिप्रेशन की आशंका के दायरे से बाहर रहते हैं, उनके मनोभावों को समझने और उनसे जुड़े प्रश्नों का सीधा और सटीक उत्तर दिया सांख्य दर्शन के सत्कार्यवाद सिद्धांत ने। यह सिद्धान्त कार्य-कारण का संबंध प्रकट करता है। प्रत्येक कार्य से पूर्व उस कार्य का कारण निश्चित तौर पर उपस्थित होता है। आज यदि हमारे सामने कोई घटना घटित होती है, जैसे - कड़ी मेहनत के बाद भी कोई युवा प्रतियोगिता में अपना स्थान नहीं बना पाया, तो वह लगन से की गई पढ़ाई, अपनी मेहनत का स्मरण करता है, तो उसे लगता है कि मैंने मेहनत तो पूरी की थी, परन्तु यह कैसे हुआ कि मैं प्रतियोगिता में पिछड़ गया। 

ऐसी स्थिति में हम केवल उन कारणों का अवलोकन कर पाते हैं, जो हमारे सामने उपस्थित हो पाए। कई अप्रत्यक्ष कारणों को तो कभी समझ भी नहीं पाते हैं। इसलिए हमारे डिप्रेशन और मानसिक छोटे-मोटे तनावों को दूर करने का सबसे उत्तम और यौगिक उपाय है, कार्य-कारण संबंध को गंभीरता से समझना। 

प्रत्यक्ष घटनाओं को तो हर कोई देख सकता है। परंतु अप्रत्यक्ष कारणों को भी समझने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रकार आज किसी कार्य से यदि कोई धोखाधड़ी या चोरी से अथवा झूठ बोलकर अपना कोई कार्य सिद्ध कर लेता है, तो ऐसे लोगों को भी सावधान हो जाना चाहिए कि देखने में तो उनका कार्य सिद्ध हो गया, परंतु बुराई का आधार कारण रूप में स्थापित हो चुका है, वह उनका इतिहास बन चुका है और उसी कारण का वास्तविक परिणाम भविष्य में किसी न किसी रूप में अवश्य सामने आएगा, क्योंकि हर कारण के बाद उसके अनुरूप कार्य का होना भी निश्चित है। अगली बार धोखे से अपना काम सिद्ध करने पर बहुत बड़ी खुशी नहीं होगी, क्योंकि धोखे का असली परिणाम भविष्य में कभी न कभी जरूर प्रकट होगा।

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