Simple Remedy for Vastu Dosha
सुखमय जीवन के लिए हम हमेशा प्रयासरत रहते हैं। कभी पूजा-पाठ करते हैं, तो कभी रत्न या पत्थर धारण करते हैं। पर कई बार वास्तु दोष की वजह से भी घर में नकारात्मक माहौल उत्पन्न हो जाता है। अगर हमारा आवास वास्तु दोष मुक्त रहेगा, तो हमारा जीवन सुखमय रहेगा। असल में हमारा घर वास्तु शिल्प के नियमों अनुसार तैयार होता है और गृह प्रवेश के समय वास्तु पूजन किया जाता है, तो वास्तु देवता जीवन पर्यन्त उस घर में रहने वाले लोगों के लिए कल्याणकारी बने रहते हैं। पर पहले ये जानना आवश्यक है कि किस वजह से घर में वास्तु दोष हो सकता है
अगर किसी व्यकि्त के जन्मांग में किसी भाव में या विशेष रूप से चतुर्थ में मंगल, राहु या शनि राहु की युति हो या अष्टम स्थान में क्रूर ग्रह जैसे सूर्य, शनि हों, तो व्यकि्त वास्तु दोष से पीड़ित होता है।
अगर आप नया घर ले रहे हैं, तो यह देख लें कि भूखंड के आस-पास का वातावरण सुंदर हो। आस-पास कबि्रस्तान, जंगल आदि न हों।
भवन में देव स्थान ईशान कोण में, रसोई घर आग्नेय कोण में, भंडारण कक्ष नैऋर्त्य कोण में, जल भंडारण या पानी की टंकी व बाथरूम उत्तर या पूर्व दिशा में न हो, तो वास्तु दोष की समस्या आती है।
घर के लिए पूर्व-उत्तर की ढलान शुभकारक, पश्चिम-दक्षिण में उत्थान शुभ माना जाता है। यदि स्थान पूर्व में ऊंचा हो, तो संतान दरिद्र व मंदबुद्धि, उत्तर में ऊंचा हो, तो मातृ सुख व सेवक सुख में न्यूनता और ब्रह्म स्थान अर्थात् गृह के मध्य में जल का भंडारण सर्वनाशक होता है।
रसोई घर आग्नेय में शुभ, किंतु ईशान में सर्वाधिक अशुभ, उत्तर में कलह, पश्चिम में आय से अधिक व्यय व पूर्व में रसोई होने से तनाव व अशांति होती है।
भवन में द्वार आमने-सामने व एक दरवाजे के ऊपर दूसरा दरवाजा नहीं होना चाहिए तथा सीढ़ियां हमेशा दाहिने हाथ की ओर ही घूमनी चाहिए।
शयन कक्ष में सिर दक्षिण-पूर्व में रखकर सोएं, यात्रा में पश्चिम में सिर करके सोना लाभकारक माना गया है। पर शयन कक्ष में भोजन करना अतिहानिकारक माना गया है।
दक्षिण-पश्चिम में रसोई, शौचालय या वर्षा का पानी एकत्र होने से घर के बुजुर्ग का स्वास्थ्य हमेशा असंतुलित रहता है।
वास्तु दोष से मुक्ति के सरल उपाय:
वास्तु दोष के निवारण के लिए घर में दक्षिणावर्ती शंख, पारद शिवलिंग, दक्षिणामुखी गणेश प्रतिमा व श्रीयंत्र स्थापित करें। साथ ही वास्तु दोष निवारक यंत्र की पूजा नित्य करनी चाहिए।
ग्रह दोष के निवारण के लिए हनुमान या भैरव की उपासना, नवचंडी पाठ, रामरक्षा स्तोत्र व श्रीसूक्त पाठ भी किया जा सकता है।
वास्तु शांति का अनुष्ठान गृह प्रवेश के समय किया जाता है, जिसमें पांच चक्रों नवग्रह, योगिनी, गृह वास्तु, क्षेत्रपाल एवं सर्वतोभद्र मंडल चक्र का निर्माण किया जाता है। नवग्रह चक्र ईशान कोण में, चौंसठ योगिनी चक्र आग्नेय कोण में, गृह वास्तु चक्र नैऋर्त्य कोण में, क्षेत्रपाल चक्र वायव्य कोण में और सर्वतोभद्र मंडल चक्र पूर्व दिशा में और योगिनी चक्र को मध्य में स्थापित कर पूजा की जाती है। यह पूजा एक, तीन, पांच, सात या ग्यारह दिनों में संपन्न की जाती है। पहले दिन शांति कलश स्थापन, चक्रों के पूजन से प्रारंभ होकर अंतिम दिन यज्ञ पूर्णाहुति और ब्रह्म भोज होता है।
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