May I be a Politician? मुझे नेता बनना है।
हर व्यक्ति की कुंडली में उसकी नियति का ब्योरा रहता है। अगर उसकी कुंडली में शासकीय या प्रबंधकीय क्षेत्र में जाने का योग है, तो उक्त व्यक्ति का उसी क्षेत्र में कैरियर बनाना उचित माना जाता है। इसी प्रकार हर चुनाव के इस माहौल में प्रत्याशी तो बहुत हैं, पर क्या उनकी कुंडली में ऐसे ग्रह मौजूद हैं, जो उन्हें राजनीति में सफलता दिला सकते हैं। ज्योतिष की मानें, तो यदि व्यक्ति की कुंडली में कुछ ग्रह सबल हैं, तो वह राजनीति में यश व अच्छा पद पा सकता है।
किसी भी जातक की कुंडली के दसवें घर को राजनीति का घर कहा जाता है। यानी कुशल राजनीतिज्ञ बनने के लिए उसकी कुंडली में दसवें घर के स्वामी अर्थात् दशमेश या दशम भाव में उच्च का ग्रह बैठा होना चाहिए और गुरु नवम घर में शुभ प्रभाव में स्थित होने चाहिए या दशम घर या दशमेश का संबध सप्तम घर से होना चाहिए।
जन्म कुंडली के छठे घर को सेवा का घर कहा जाता है। इसलिए किसी जातक की कुंडली में इस घर से दशम, दशमेश का संबंध होना चाहिए।
राहु को सभी ग्रहों में नीतिकारक ग्रह का दर्जा दिया गया है। सफल राजनेताओं की कुंडली में राहु का संबंध तीसरे, छठे व ग्यारहवें घर से देखा गया है।
सूर्य को भी राज्य कारक ग्रह की उपाधि दी गई है। सूर्य का दशम घर में स्वराशि या उच्च राशि में होकर स्थित हो व राहु का शुभ होना राजनीति में सफलता दिलाने की प्रबल संभावनाएं बनाता है। राहु या सूर्य के अमात्यकारक बनने से व्यक्ति के रुचि लेने पर उसके राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने की संभावना भी होती है।
यदि सूर्य अमात्यकारक हो, तो व्यक्ति को समाज में उच्च पद की प्राप्ति का संकेत है। सूर्य लग्न, चतुर्थ, नवम या दशम में हो, तो व्यक्ति राजनीति के क्षेत्र में उच्च पद को आसीन होता है। राजनीतिक पटल पर उभरता है और लोगों के दिल पर राज करता है।
अच्छा राजनेता बनने में गुरु का प्रबल होना भी सहायक होता है। यदि गुरु उच्च का होकर दशम से संबंध रखे या दशम को देखे, तो व्यक्ति बुद्धि के बल पर अपना स्थान बनाता है। ऐसे जातक जनसाधारण के दिल में जगह बना लेते हैं। ये तर्कशील और सत्य प्रधान राजनीति करते हैं।
बुध के प्रबल होने पर दशम से संबंध रखने पर व्यक्ति अच्छा वक्ता होता है। बुध-गुरु दोनों प्रबल होने पर वाणी में ओज व विद्वत्ता का समन्वय होता है। अगर जन्मांग में मंगल ‘योगकारक’ होकर बलवान हो, तो व्यक्तिको चुनाव लड़ने की पूर्ण ऊर्जा प्राप्त होती है। कर्क एवं सिंह लग्नों के लिए मंगल केंद्र और त्रिकोण दोनों का स्वामी होकर योगकारक कहलाता है।
चंद्रमा को भी सूर्य की तरह राजसी पद प्राप्त है। इसलिए सूर्य-चंद्र का बलवान होना चुनाव प्रत्याशी के लिए मददगार सिद्ध होता है।
अगर कुंडली में अधिकांश योग चुनाव प्रत्याशी के जन्मांग में उपस्थित हों और केमद्रुम, कालसर्प, ज्वालामुखी, राजभंग या अशुभ योगों की संख्या कम हो, तो जातक राजनीति में सफलता प्राप्त कर सकता है।
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