श्री गणेश का पुजन (Ganesh Pujan)
हिंदुओं के प्रथम पूज्य देव श्री गणेश का पुजन किसी भी चतुर्थी को किया जा सकत है। यदि इस प्रकार के गणेश पुजन को किया जाये और नित्य गणेश पुजन किया जाये तो निश्चय ही गणपति जी छः महीने मे अपने दिव्य रुप के दर्शन भी करते है। इस दिन व्रत रखकर विघ्नहर्ता श्रीगणेश जी की सविधि पूजा का शास्त्रों में वर्णित है। यह व्रत समस्त अमंगलों संकटों विघ्न-बाधाओं का नाशक तथा संतान के सुख-सौभाग्य का रक्षक माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति नियम व श्रद्धापूर्वक इस व्रत को धारण कर भगवान गणपति की विधिवत पंचोपचार अथवा षोड्शोपचार पूजन-अर्चन करता है, उसके त्रिविध ताप, कष्ट जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं तथा वह निर्विघ्न जीवन यापन करता है। इसलिए प्रत्येक गृहस्थ के लिए यह व्रत शांतिदायक माना गया है।
इस बारे में वर्णित कथा के अनुसार स्वयं भगवान शंकर ने गणपति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि इस दिन चंद्रमा उनके मस्तक से उतरकर गणेश जी पर शोभायमान रहेंगे। यानी इस दिन गणपति की उपासना त्रिविध तापों की नाशक तथा मनोवांछित फल प्रदाता होगी।
व्रत एवं पूजन विधि
प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेकर श्रीगणेश के बीज मंत्र "ॐ गं गणपतये नम:"का जप करना चाहिए। सायंकाल में चंद्रोदय होने पर शुद्ध पीले अथवा नए वस्त्र धारण कर पूजन स्थल या ईशान में स्थित कमरे में पूर्वाभिमुख पीले आसन पर बैठकर लकड़ी के पाटे पर पीत वस्त्र बिछाकर गंगाजल से स्थल को पवित्र कर गणपति की मूर्ति अथवा चित्र तथा संकट हरण या सिद्ध गणेश यंत्र को थाली में केसर से स्वस्तिक बनाकर उस पर स्थापित कर ज्योति प्रज्जवलित करके हाथ में अखंड अक्षत लेकर भगवान श्रीगणेश का निम्न मंत्र से आह्वान तथा आराधना करनी चाहिए।
मंत्र : ॐ गं गणपतये नम: सआयुध सवाहन इहागच्छ इहतिष्ठ।
इसके बाद श्रीगणेश पर चावल अर्पित कर दें।
ध्यान मंत्र
ॐ नमस्ते गणनायाय गणानांपतये नम:। भक्ति प्रियाय देवेश भक्तेभ्य: सुखदायक:।
तत्पश्चात विविध पूजन सामग्री से प्राण-प्रतिष्ठा करके उनके 12 नामों का जप करते हुए षोड्शोपचार पूजन करना चाहिए तथा संकष्ट मंत्र का भी जप करना चाहिए।
संकट हरण मंत्र
ॐ गं गौरी सुताय संकट हरणाय नम: फट।
यह मंत्र कम से 4 माला जप करना श्रेयस्कर है।
पूजन सामग्री
फूल, माला, अक्षत, लाल चंदन, सिंदूर, रोली, दूर्वा, जनेऊ, इत्र, लाल वस्त्र, धूप-दीप, नारियल, पान, सुपारी, इलायची, जायफल, सभी ऋतुफल 4 की संख्या में, नैवेद्य में मोदक तथा तिल के लड्डू अर्पित करके पूजनोपरांत हवन तथा चंद्र देव एवं गणेश जी को अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।
Post a Comment