Be Silent and Become Vaak Siddh
शास्त्रों में मौन रहना सदा ही लाभदायक बताया गया है। मौन रहने से आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है और शरीर में ऊर्जा संग्रहित होती है। भगवान श्रीकृष्ण जी ने भी श्रीमद्भगवद गीता में वाणी के संयम को प्रमुखता दी है और कहा है कि मौन व्रत से गंभीरता, आत्मशक्ति तथा वाकशक्ति (बाद मे वाक सिद्धि) में बढ़ोतरी होती है। मौन रहना सभी गुणों में सर्वोपरि है। ऐसा कहावत भी है कि ज्यादा बोलने वाले से ज्यादा सुनने वाला अच्छा होता है। मौन व्रत में किसी भी प्रकार के शब्दोच्चार या फुसफुसा कर बात करना भी वर्जित बताया गया है। संत कबीर भी बोलने और मौन में सामंजस्य बनाने का संदेश देते थे
अति का भला न बोलना अति की भली न चुप।
अति का भला न बरसना अति की भली न धूप॥
प्राचीन समय मे प्रत्येक स्त्री परुष के पास शाप और अभिशाप देने की ताकत होती थी उसके पीछे कारण मात्र मौन रहने का था। जो व्यक्ति जितना कम बोलता है वाक शक्ति पर उतना ही नियंत्रण रहता है और जब किसी को कुछ कहता है तो कही हुई घटना घटित होकर ही रहती है। यही शक्ति प्राचीन ऋषियो के पास प्रचुर मात्र मे जमा और सक्रिय रहा करती थी जिसके कारण वह किसी को भी मनचाहा वर या अभिशाप देने मे सक्षम थे। ब्रह्मा ने वाणी का निर्माण केवल अपनी भावना को कहने के लिए है परंतु हम सभी वाणी का बहुत ही दुरुपोग होता है। नही यकीन तो एक फिल्म या अपने ईद गिर्द या स्वयँ को देख सकते है। जो लोग अकसर खामोश रहते है जो भी यह समाज नही बक्शता, ऐसे लोगों को समाज घुन्ना या घमंडी कहकर सम्बोधित करता है और यहाँ तक कि कई बार उसे असमाजिक व्यक्ति भी करार कर दिया जाता है। जबकि ऐसे व्यक्ति अपनी वाणी का सही उपयोग कर रहे होते है। कबीर साहब ने कहा है कि ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे अपना और दूसरे दोनो का मन शीतल होए। यदि कोई व्यक्ति वाक सिद्ध होता है और जरुरत से अधिक बोलता है तो सारी प्राप्त हो सिद्ध एक आधा महीने मे ही नष्ट हो जाती है। किसी भी व्यक्ति को बुरा कहने की अपेक्षा चुप रहना ही बेहतर है इसका मतलब यह नही की हम किसी प्रकार का प्रताडना रहे। बुराई का तो सदा ही विरोध करना चाहिए। सदवाणी बोलने से गुरु ग्रह की कृपा प्राप्त होती है और बुरी वाणी बोलने से राहू की कृपा प्राप्त होती है।
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