Remarriage in Kundali
ज्योतिष शास्त्र में पुनर्विवाह यानी दूसरे विवाह को अलग तरह
से बताया गया है। यदि लग्न, सप्तम और चंद्र यह तीनों द्विस्वभाव राशि में हों, तो जातक का पुनर्विवाह होता है। इसी तरह
लग्नेश, सप्तमेश आैर चंद्र या लग्नेश तथा शुक्र द्विस्वभाव में हो, तो जातक के जीवन में दो विवाह होते
हैं। यदि सप्तम और अष्टम भाव में पाप ग्रह
हों और मंगल 12वें भाव में हो, तो जातक के दो विवाह होते हैं। अगर सप्तम भाव
का स्वामी शुभ ग्रहों के साथ 6,8,12 भाव में स्थित हो, तो सप्तम भाव में पाप ग्रह स्थित
हो, तो जातक के दो विवाह होते हैं। अगर कुंडली में सप्तम
स्वामी या लाभेश दोनों एक साथ हों या इनकी एक-दूसरे पर दृष्टि हो, तो जातक के कई विवाह होते हैं। अगर सप्तम स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हों और उच्च
का हो या दशम स्वामी के साथ हो, तो जातक के कई विवाह होने की संभावनाएं
होती हैं। यदि कुंडली में सातवें भाव का कारक जो स्त्री की कुंडली में गुरु तथा पुरुष की
कुंडली में शुक्र होता है। यदि पाप ग्रह से युत हो या नीच नवांश या शत्रु नवांश
या अष्टगत ग्रह के नवांश में हो, तो जातक के जीवन में पुनर्विवाह का
योग बनता है।
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