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Rahu Kaal Time Table


राहुकाल समय का वो भाग है, जिसमें कोई भी शुभ कार्य करने पर असफलताएं हाथ लगती हैं। कार्य समय पर पूरे नहीं होते। इसलिए किसी भी नए काम की शुरुआत राहुकाल में नहीं करनी चाहिए। अगर कोई शुभ मांगलिक कार्य को राहुकाल के समय में करता है, तो उस किए गए कार्य का पूरा लाभ प्राप्त नहीं होता है।

दक्षिण भारत में लोग राहुकाल का विशेष खयाल रखते हैं। वे राहुकाल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं। मान्यता है कि राहुकाल के दौरान किए गए कार्य प्राय: असफल ही होते हैं और व्यक्ति की मनोकामनाएं अधूरी रह जाती है। अत: कोई भी नया व शुभ कार्य करते समय राहुकाल का अवश्य ध्यान रखें।

राहुकाल की गणना: राहुकाल सप्ताह के सातों दिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घंटे तक ही रहता है। राहु काल अलग-अलग स्थानों के लिए भिन्न होता है। क्योंकि प्रत्येक शहर में सूर्योदय का समय अलग-अलग होता है।सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को आठ भागों में बांटकर राहुकाल की गणना की जाती है।राहु काल इस प्रकार से समझना चाहिए।

सोमवार : प्रात : 7:30 से 9:00 बजे तक
मंगलवार : दोपहर 3:00 से 4 :30 बजे
बुधवार : दोपहर 12:00 से 1:30 बजे तक
गुरुवार : दोपहर 1:30 से 3:00 बजे तक
शुक्रवार : प्रात: 10:30 से 12 बजे तक
शनिवार : प्रात: 9:00 से 10:30 बजे तक
रविवार : सायं 4:30 से 06:00 बजे तक

वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ अंतर होता है। इसीलिए राहुकाल को जानने के लिए उस शहर के सूर्योदय और सूर्यास्त तक के समय को आठ भागों में बांटना चाहिए। अर्थात् बारह घंटे को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है। प्रत्येक भाग डेढ़ घंटे का होता है। सप्ताह के पहले दिन के पहले भाग में कोई राहु काल नहीं होता है। सोमवार को दूसरे भाग में होता है। शनिवार को तीसरे, शुक्रवार को चौथे, बुध को पांचवे, बृहस्पतिवार को छठे, मंगल को सातवें तथा रविवार को आठवें भाग में राहुकाल होता है। इस विधि से राहुकाल की गणना करने से गलती होने की संभावना नहीं के बराबर होती है। क्योंकि यह प्रत्येक सप्ताह के लिए स्थिर है। इस तरह राहुकाल का विचार कर किसी भी नए काम की शुरुआत करें। अगर कोई शुभ कार्य पहले से ही प्रारंभ है, तो राहुकाल का विचार नहीं करना चाहिए। परंतु जो काम इस समय से पहले शुरु हो चुका है, उसे राहु-काल के समय में बीच में नहीं छोड़ा जाता है। अन्यथा उस कार्य में व्यवधान आते रहते हैं।

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