Guru Mahima
गुरु शब्द
बहुत ही छोटा सा और अर्थ ??? बहुत बडा। कबीर साहब और भगवान शंकर से ज्यादा इस शब्द की व्याखया कोई
नहीं कर सकता। कबीर साहब कहते हैं कि सारे संसार को यदि काग़ज मान लिया जाये व समुन्दर को स्याही
बना लिया जाये और सारी जिन्दगी लिखा जाये तो भी गुरु गुण को लिखा नहीं जा
सकता। एक दिन जगत माता देवी पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शंकर ने गुरु के महत्व की
व्याख्या की थी जोकि हम सब के बीच मे गुरु गीता के नाम से प्रसिद्ध हैं। गुरु
गीता बाजार और इंटरनेट पर सहजता से
उपलब्ध हैं।
पुराने समय
कि बात हैं, एक संत एक पुरुष को रोज़ काम करते
देखता था और कहता था भाई राम नाम (गुरु मंत्र) ले, तो वो इंसान कहता था कि बाबा अभी
शादी नहीं हुई। जब शादी हुई तो उसी संत
ने एक दिन फिर टोका, भाई अब तो राम नाम ले ले। उस आदमी ने सोचा, अभी तो सही से बीबी से मनोरंजन भी
नहीं हुआ और कहता है कि बाबा अभी बच्चे तो हुए
नहीं कुछ समय रुको। मैं संतान होने के बाद राम नाम ले लुंगा। ईश्वर की कृपा से उस आदमी को
स्ंतान भी प्राप्त हुई। फिर एक दिन
अचानक वही संत मिला गया, संत ने फिर कहा भाई बच्चे वच्चे
हुए या नहीं। उसने कहा, हाँ बाबा दो दो हैं। संत ने कहा अब
तो सही मोका है राम नाम ले लें।
नहीं बाबा अभी बच्चे छोटे हैं बडे होने जाने दो। एक दिन बच्चे भी बडे हो गये और बच्चो की शादी भी
हो गई तो फिर वही संत मिला। बोला भाई अब तो राम नाम ले ले। मैं तुझे कितने सालो से कह रहा हूँ
तो राम नाम क्यों नही लेता। उसनें कहा नहीं बाबा एक
बार पोता पोती हो जायें तो मैं राम नाम जरुर ले लुंगा। बाबा ने कहा ठीक है भाई तेरी मर्जी।
दो तीन साल बाद उसके पोती पोते
भी हो गये। बाबा फिर मिलते है और वो आदमी कहता है बाबा अब कोई जरुरी काम नहीं है अब आप मुझे राम
नाम दे दो। बाबा उससे कुछ नाराज थे कि जो उम्र राम नाम लेने की थी वो तो सारी निकल दी अब क्या
करेगा राम नाम का? परंतु संत तो दया का सागार होते है
इसलिए उस पर भी कृपा कर राम नाम (गुरु मंत्र) दे देते हैं और कहते है कि कभी भी आपको कोई
परेशानी हो तो हमे याद करना। अपने
साथ बैठा कर है उससे नाम जपने का अभ्यास करते हैं। फिर वो अपने घर लोट आता है और उसके बाद राम नाम
लेना भुला जाता है। अपने पोती पोते मे, पीने - खाने मे मस्त रहता हैं।
आखिए कब तक
जीना था, एक दिन मर जाता हैं। यमराज (यमराज शनिदेव के भाई है और सूर्य पुत्र है। जब तक प्राण
हैं तब तक कर्मो का हिसाब छाया व सूर्य पुत्र शनिदेव करते हैं। मरने के उपरांत, उस बहीखाते का हिसाब यमराज देखते हैं और पुनः जन्म होने पर फिर से
शनि जी हिसाब रखते है। अपनी साढेसाती मे वो किसी खास राशि के पाप और पुण्य कर्मो का हिसाब
करते हैं फिर कितना भी शनि पुजन
क्यों ना कर लो कोई नहीं बचा सकता) के दरबार मे उसके कर्मो का हिसाब होता हैं तो मालूम होता हैं
कि उसनें सारी जिन्दगी छ्ल कपट, चोरी, दूसरो को हक मारना, नाजयज सेक्स, ठगी, राजनीति, दूसरो का शोषण करने और दूसरो पर शासन करने मे ही निकल दी हैं और अच्छे कर्मो के
नाम पर कुछ दान, दोस्तो की सहायता, और उस संत की संगत थी। यमदूतो ने कहा कि पृथ्वी पर आपका सारा समय नरकीय
कार्यो में व्यतीत हुआ हैं और फिर
यमदूतो ने कहा कि आपको पहले स्वर्ग चाहिए या नरक? (उपर वाले की दुनिया मे हमें स्वर्ग या नरक पहले भोगने की आजादी
हैं पर जो हिसाब वो भोगना ही
पडता हैं) तो उस आत्मा के मन में प्रशन आया कि जब मैने सारे कार्य नरक पाने वाले ही करें हैं तो
स्वर्ग क्यों? उसने यमदूतो से कहा कि मुझे आप स्वर्ग क्यों प्रदान कर रहे
हैं। यमदूतो ने कहा कि आपने एक संत के साथ जीवन का कुछ समय व्यतीत किया हैं जोकि सतसंग कहलाता
है और उनसे दीक्षा कराई है। इन्हीं
दोनो कर्मो के कारण बहुत सा पुण्य उत्पन्न हुआ इसलिए आपका हक बनाता है स्वर्ग मे प्रवेश का और
स्वर्ग का आनन्द लेने का। उस आत्मा ने कहा कि ठीक हैं मै पहले स्वर्ग भोगना चाहता हूँ और उससे
भी पहले उस संत से मिलना चाहता हूँ जिनके कारण मुझे
स्वर्ग प्राप्त हो रहा हैं। नियम के तहत गुरु से मिलने के लिए यमदूत नहीं रोक सकते थे और
अनुमति प्रदान करी। फिर यमदूत ने उस
आत्मा को उसके गुरु से मिलवाया। उसी संत को अपने सामने खडा देखकर वो आत्मा बरबस रोती रही । वो
आत्मा गुरु चरणो मे गिरकर रोता रहा और कहा कि आपने मुझे जीवन भर समझाया परंतु मैनें आपकी एक
ना मानी, अब मुझे नरकीय यातानाँये सहनी पडेगी और
फूट-फूट कर रोनें लगा। उस संत ने उसे अपने ह्रदय से लगाया और कहा तुम चिंता मत करो मैं प्रभु से
बात करता हूँ। सदगुरु होने के
कारण परमपिता से वार्ता कर, उसके सारे पाप कर्मो को तत्काल्
नष्ट कर, उस आत्मा को परमपद दिलवा दिया। इस प्रकार उसके सभी
कर्म नष्ट होकर उसे मोक्ष की
प्रप्ति हुई। यह कहानी सत्य है मैं पात्रो के नाम नहीं खोलने के लिए वचनबद्ध् हूँ।
गुरु, गाईड, ज्ञान, सफलता की कुंजी, मार्ग दर्शक, टयुशन यह सभी एक ही चीजें हैं। जन्म के समय में माँ-बाप
हमारे गुरु होते हैं फिर स्कूल कालेज में हमारे गुरु होते हैं। लडकी शादी होने पर उसका पति
उसका गुरु होता हैं। कुछ स्पेशल गुरु
होते हैं जिनसे हम खास बाते सीखते हैं। कुछ तांत्रिक होते है जिनसे तंत्र सीखा जा सकता हैं। कुछ
सदगुरु होते है जो मोक्ष दिलाने मे सहायक होता हैं। इन सभी उदाहरण मे सर्वश्रेष्ठ सदगुरु
ही होते हैं। एक जीवन मे एक से
अधिक कितने भी गुरु हो सकते है लेकिन सदगुरु तो एक ही हो सकता है। जैसे कोई भी व्यक्ति एक ही
जीवन मे बहुत से विपरीत लिंगी से प्रेम कर सकता है लेकिन जब बात शादी की होती है तो सभी गम्भीर
हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार जब
हम सदगुरु का चयन करते है तो हमें गम्भीर होना चाहिए क्योंकि सवाल जिन्दगी और मौत दोनों का हैं।
हमें गुरु
की क्या आवश्यकता है? यह प्रशन बहुत ही गम्भीर हैं और
बहुत से लोगों के मन मे अकसर आता भी हैं।
अब मान लो आप एक अनजान शहर में किसी का पता तलाश कर रहे हैं तो आपको अकसर किसी ना किसी की
सहायता की जरुरत अवश्य पडी होगी और
आपने किसी अजनबी से पता पुछा होगा। आपने पता क्यों पुछा????? क्यों???? अखिर क्यों??? कहाँ गई आपकी ईगो???? आपके मेहनत करने का जजबा????? बस इन्ही सवालों में आपके प्रशन का
उत्तर छुपा हैं। एक कारण यह हो सकता है कि आप अपना टाईम नहीं नष्ट करना चाहते थे।
उस आदमी को आपके अपेक्षा उस स्थान की अधिक जानकारी
रही होगी इसलिए आप समय से सही जगह पहुचँ गये होगें। अब आप ही सोचो कि हम एक अजनबी पर कैसे
यकीन कर लेते हैं। यदि यकीन नहीं
करते तो क्या होता? यह आप सब भी जानते हैं। उस अजनबी
ने यहाँ गुरु की भुमिका ही निभाई हैं। जब
आप किसी क्षेत्र के चौराहे पर खडे होते है तो उस क्षेत्र का गुरु आपका समय नष्ट होने से बचता हैं
और समय ही धन है। एडिसन ने अपने जीवन मे बल्ब, मोटर, रेडियो वाल्व, चुम्बक, सुचना संचार, प्रकाश, उष्मा, शक्ति, केमरा आदि कितने सिद्धानत और
अविष्कार किये। आज हम जितने भी
उपकरण प्रयोग करते हैं उनमे ज्यादात्तर एडिसन के सिद्धानत पर ही चलते हैं। हम सहजता से बल्ब खरीद
हैं और प्रयोग करने लगते है। पंखा खरीदते है उस इस्तेमाल करने लगते हैं। हम तो यह तक नहीं
जानते कि इस का अविष्कार कौन है? आप चाहते तो अपने तरह के बल्ब को
बना कर इस्तेमाल कर सकते है अपने अविषकार कर सकते हैं। तब कहाँ जाती है आपकी ईगो या
मेहनत करने की क्षमता? मेरे कहना का मतलब इतनी ही है कोई चीज जब उपलब्ध
हैं तो कहानी वही से शुरु करनी चाहिए। जैसा कि हम करते भी हैं। इसलिए जो जिस क्षेत्र का
गुरु हैं उस शरण में जाना अच्छा होता हैं और हमारी क्षमता मे अधिक निखार लाता हैं।
कहते है कि यदि ईश्वर एक बार दर्शन दे और फिर नाराज हो जायें तो भी कोई बात नहीं, क्योंकि गुरु कोई ना कोई उपाय बता देंगें ईश्वर को मानने का। यदि गुरु नाराज हो जाये और ना माने तो ईश्वर भी कुछ नहीं कर सकता हैं। इसलिए गुरुजनों का दिल नहीं दुखाना चाहिए। वैसे गुरु जन कभी भी जल्दी नाराज नहीं होते यदि हो भी जायें जल्द मान जाते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि आप उनका दिल दुखाते रहे। वो जानते हैं कि हम मुर्ख हैं और ज्ञान की कमीं के कारण ऐसा हुआ। नहीं यकीन है तो अजमाईश के लिए आप किसी से, किसी विषय मे ज्ञान प्राप्त करें। जब आपको पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाये तो उससे झगडा कर उससे दूर हो जायें फिर मुझे उस क्षेत्र मे उच्चाई पर पहुचँ कर दिखाये। यदि उस गुरु ने झगडे के अंतिम समय मे ज्ञान भंग होने के लिए एक भी कथन कहा होगा तो आप उस क्षेत्र मे सफलता व्यक्ति की तरह नहीं जाने जाओगें बल्कि लोगों आपकी बुराई करेंगें। हाँ यह तो हो सकता है कि आप आगे भी उस क्षेत्र मे अपने ज्ञान मे वृद्धि तो कर ले लेकिन सफलता का नामोनिशान नहीं होगा।
त्मेव माता च पिता त्मेव, त्मेव बंधू च सखा त्मेव।
त्मेव विधा च द्रविदम त्मेव, त्मेव सर्वम मम: देवा देव॥
हमारे शास्त्र ने तो गुरु को ही सच्चा माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त, ज्ञान, पैसा, धन दोलत सब कुछ माना लिया हैं क्योंकि यदि हमें एक सच्चा मार्गदर्शक मिल जाये तो हम अपने जीवन मे कितनी बुराई करने से बच सकते है और समय का सही उपयोग कर सकते हैं। गुरु के
महत्व को हमारा इतिहास चीख चीख कर ब्यान करता हैं और हम सब के बीच मे ऐसे कितने ही उदाहरण मौजूद हैं। दुखः की बात यह है कि कलियुग की चकाचोन्द में हम गुरुओं के महत्व को भुलते जा रहे हैं। यह संसार हर गुरु को पाखंडी, चौर, ठग कहकर पुकारता है तो सच्चा गुरु कहाँ मिलेगा? अरे! जब तुम चोर उचके हो तो गुरु भी ऐसे ही मिलेगे और जो सच्चे गुरु होगे उनको आप पहचान नहीं पाओगें इसलिए अपना मन साफ कर गुरु की तलाश करो तो जल्दी ही आपकी तलाश समाप्त हो जायेगी। यह दुनिया तो चमत्कार को नमस्कार करती हैं। यदि आप हिन्दु धर्म और गुरु शिष्य के सम्बन्ध मे से गोपनीयता की शर्त निकल दे तो मैं दावें से कह सकता हूँ कि विश्व की सभी शक्तियाँ आपको इस धर्म में मौजूद मिल जायेगीं। इन शक्ति के सामने परमाणु बम्ब भी छोटा सा नजर आयेंगा। सिख धर्म में भी गुरु और गुरु सेवा पर बहुत ध्यान दिया जाता हैं और गुरुबानी मे भी राम नाम
लेने का बार बार जिक्र है। हिन्दु
धर्म में भी गुरु सेवा पर जोर दिया जाता हैं। हिन्दुस्तान मे ऐसे कितने ही गुरु हैं जो राम नाम (गुरु मंत्र) देने के लिए एक पैसा नहीं लेते और जिनके गुरु मंत्र को जपने मात्र से एक माह मे
गुरु के दिव्य स्वरुप के भी दर्शन
होते है और होते रहते हैं। मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता क्योंकि मैं किसी का प्रचार नहीं
करता हूँ।
तो क्या सोचा आपने अपने गुरु के बारें में?? यदि आपका गुरु नहीं है तो तलाश जारी रखो...... क्योंकि जैसे प्यास होने से पानी की प्रप्ति हो जाती है वैसे ही गुरु और सच्चे ज्ञान की प्रप्ति की कामना होने पर गुरु की प्रप्ति परमपिता जरुर कर देते हैं।
*SHIVA=GURU=KNOWLEDGE=SHIVA=GURU*
ReplyDeleteTHIS IS THE UNIVERSAL TRUTH AND IF YOU ASKS FOR GLASS OF WATER HE GIVES YOU OCEAN as i have experienced and experiencing in my life ~ I LOVE MY GURU ~
most valueble post....* SHIVA = GURU = KNOWLEDGE = SHIVA ( MAHESHWAR )
ReplyDeleteJAI GURUDEV
CHARANDAS