प्रार्थना और ईश्वर
प्राय: ईश्वर की मूर्ति अथवा देवालय के सामने खड़े होकर हम प्रार्थना करते हैं, ‘हे भगवान, मेरी यह इच्छा पूरी कर दो। मैं आपका अभिषेक कराऊंगा, देवी जागरण कराऊंगा, भंडारा कराऊंगा आदि। प्रलोभन हम ईश्वर के समक्ष प्रस्तुत करते हैं और यह समझते हैं कि अब तो ईश्वर हमारा मनोरथ पूर्ण कर ही देगा।’ पर सच तो यह है कि ईश्वर निष्पक्ष एवं निर्विकार है। उन्हें इस तरह की सौदेबाजी पसंद नहीं आती और न ही वह इन बातों से प्रसन्न होते हैं। वह केवल पवित्र एवं सच्ची भावना से ही प्रसन्न होते हैं तथा अच्छे आचरण एवं कार्यों से हम पर अपनी कृपा बरसाते हैं। बार-बार मंदिर जाने वाले मनुष्य की प्रार्थनाओं को ईश्वर अगर मानते हैं, तो उनके पुरस्कार का सबसे अधिक हकदार पुजारी को होना चाहिए। पर ऐसा देखने में नहीं आता है। कई लोग ऐसे भी हैं, जो मंदिर नहीं जाते हैं, पर अच्छे कर्म करते हैं। उनके भगवान अनुदान एवं पुरस्कार देते हैं। ईश्वर सबसे अधिक बुद्धिमान है। अनेक भक्त बुरे कर्म करते हैं और नियमित रूप से मंदिर जाते हैं। ऐसे भक्तों से प्रभु खुश नहीं होते, वरन उनके कर्मों का दंड देते हैं।
Post a Comment