शनिदेव की कथा (Nature of Shani Dev)
शास्त्रों के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को हुआ है। सूर्य देव की दो पत्नियां संज्ञा और छाया हैं। शनि देव छाया के पुत्र हैं। जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले हैं। इन्हें महान पराक्रमी, योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाला बताया गया है। इसलिए इन्हें भृत्य अर्थात् सेवक भी कहा जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इनके समक्ष आठ ग्रह कहीं नहीं ठहरते। महापराक्रमी और न्यायाधीश होने के कारण ही सृष्टिकर्ता ने इन्हें मृत्युलोक का दंडाधिकारी नियुक्त किया है। चराचर जगत में इनके प्रभाव से कोई अछूता नहीं रहा है। स्वभाव से उग्र और हठी होने की वजह से इनके अपने पिता सूर्य से कभी संबंध ठीक नहीं रहे। इसलिए जब भी ये पिता की राशि सिंह से विचरण करते हैं, तो महामारक हो जाते हैं। पर आमजनों में एक गलत धारणा व्याप्त है कि शनि देव भक्तों को केवल परेशान ही करते हैं। सच तो यह है कि ये उन्हीं लोगों को कष्ट पहुंचाते हैं, जो धोखेबाज और अन्यायी होते हैं। और साथ ही यह भी माना जाता है कि शनि देव अगर किसी को कष्ट देते हैं, तो उसे पुरस्कार भी देते हैं। ये मेहनती और ईमानदार लोगों से प्रसन्न रहते हैं और अगर वह किसी पर मेहरबान हो जाएं, तो जातक आसमान की बुलंदियों पर पहुंच जाते हैं। इसलिए इनका रत्न नीलम भी अगर किसी के लिए सकारात्मक हो जाए, तो वह व्यक्ति सफलता की नई ऊंचाइयां छूता है।
सौरमंडल में शनि अपने पिता सूर्य से काफी अधिक दूरी पर हैं, जिससे इन्हें सूर्य की परिक्रमा करने में अत्यधिक समय लगता है। इसी वजह से इन्हें शनैश्चर अर्थात् धीमी गति से चलने वाला भी कहा जाता है। इनका सभी 12 राशियों में परिभ्रमण 29 वर्ष 5 माह और 5 घंटे में पूरा होता है। ये वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। ग्रह मंडल में इनके बुध और शुक्र मित्र ग्रह हैं और अन्य ग्रह शत्रु माने जाते हैं। इनकी तुला राशि उच्च तथा मेष राशि नीच राशि कहलाती है। कहा जाता है कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। हनुमान जी चूंकि सूर्य के शिष्य थे, इसलिए हनुमान जी अपने गुरु सूर्य देव के पुत्र शनि को समझाने निकले कि वह इतने क्रोधी क्यों रहते हैं और सबको दंडित क्यों करते रहते हैं? इसके अलावा शनि और रावण के संदर्भ में भी शनि देव को हनुमान जी द्वारा बचा लेने की कहानी प्रचलित हैं। इसलिए शनि देव हनुमान के उपासकों को सताते नहीं हैं।
शनि देव महिलाओं का आदर-सत्कार न करने वाले लोगों से क्रोधित रहते हैं। वह चोरी, डकैती और अपहरण जैसे बुरे कर्म करने वाले लोगों को परेशान करते हैं। इसके अलावा शनि का कोपभाजन का शिकार मांस, मदिरा का सेवन और धूम्रपान करने वाले लोग ही होते हैं। साथ ही धर्म के नाम पर ठगी करने वाले और शनि मंदिर के नाम से व्यापार चलाने वाले लोगों को भी शनि देव सताते हैं। अगर शनि देव को प्रसन्न करना हो, तो गरीबों व असहायों की हमेशा मदद करें। बुजुर्गों का सम्मान करें और हमेशा सद्कार्य करें। हर देवता की तरह शनि देव का भी अपना स्वभाव है। वे यूं ही भक्तों को परेशान नहीं करते। अगर व्यक्ति अच्छे मार्ग पर चले और असहायों की सहायता करे, तो उसे इनकी कृपा मिलती है
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