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कामदा एकादशी Kaamda Ekadashi


श्रावण कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। इस व्रत का वर्णन महर्षि नारद से करते हुए भीष्म पितामह ने बताया है, ‘हे महर्षि, इस एकादशी की कथा श्रवण मात्र से बाजपेय यज्ञ के समान उत्तम फल की प्राप्ति होती है। यह एकादशी करने वाले उपासकों को ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति मिलती है और वह निर्मल निर्विकार निरहंकार चित्त वाले होते हैं। अंत में वह श्रीहरि की कृपा से विष्णुलोक में विश्रांति पाते हैं। इस एकादशी का व्रत धारण कर विधिवत निष्काम भाव से श्रीहरि का पूजन करने से मनुष्यों को सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण के समय केदारनाथ तथा कुरुक्षेत्र में गंगा स्नान करने के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। जिस प्र्रकार का फल गंडक नदी में स्नान करने, व्यतिपात योग में पवित्र स्थल पर पवित्र नदी में स्नान करने, आभूषण युक्त बछड़े सहित गौ दान करने, समुद्र तथा वन सहित पृथ्वी दान करने से प्राप्त होता है। वह फल श्रावण मास की कामदा एकादशी का व्रत पालन करने से प्राप्त होता है। इस मास में एकादशी व्रत रखकर सुदर्शन चक्रधारी भगवान विष्णु का पूजन करने से देव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, पितर, नाग सभी की पूजा हो जाती है।’ श्रीहरि इस व्रत की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं, ‘संसार सागर में फंसे हुए कष्टों से बाहर निकालने वाले व्रतों में यह व्रत सर्वोपरि है। इस व्रत को करने से मनुष्यों को नरक जाने से मुक्ति मिलती है और रात्रि जागरण कर हरि कीर्तन करने से कुयोनि से भी भक्त बचते हैं। जो व्यक्ति इस दिन तुलसी दल अर्पित कर मेरा पूजन करते हैं, वह संसार सागर में रहते हुए भी कमल की तरह जल में रहते हुए जल से अलग प्रतीत होते हैं। तुलसी दल अर्पित करने वाले मनुष्यों के पाप तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं। उन्हें यम का भी भय नहीं रहता। इस दिन दीपदान करने से भी भक्तों को पुण्य मिलता है।’

पूजन विधि
प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर कुशासन पर पूर्वाभिमुख बैठकर अपने सामने एक चौकी पर चतुर्भुजधारी भगवान विष्णु का चित्र स्थापित कर दीप प्रज्जवलित कर संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान का पुष्प, धूप-दीप, कदली फल, तुलसी दल, चरणामृत आदि से अभिषेक कर विधिपूर्वक भगवान का पूजन करना चाहिए।

"ॐ नमो: नारायणाय "

शांताकारम् भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं। विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णम् शुभांगम्।
लक्ष्मीकातं कमलनयनं योगभिर्ध्यानगम्यं। वंदे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकै कनाथम्

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