त्रिपुर सुंदरी आराधना
श्रावण मास में शिव कृपा पाने के लिए भक्त कई तरह की पूजा करते हैं। इस दौरान यदि माता त्रिपुर सुंदरी की आराधना की जाए, तो भक्त कई परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं। मां त्रिपुर सुंदरी पार्वती का ही रूप हैं और इन्हें प्रसन्न करने का अर्थ है, शिव कृपा की प्राप्ति। यह मास पूजा-पाठ एवं शिव आराधना का महीना है। इस दौरान शिव जी की स्तुति करने से भक्तों के जीवन में खुशहाली आती है और उनके राह की बाधाएं भी दूर होती हैं। इस मास में शिव आराधना का काफी अधिक महत्व है।
दरअसल हमार जीवन एवं शरीर नौ ग्रहों से प्रेरित होता है। इन ग्रहों में चंद्रमा पृथ्वी के निकटस्थ होने की वजह से हमारे शरीर पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है। चंद्रमा के स्वामी हैं, शिव। श्रावण ऐसा मास है, जिसमें वातावरण में अत्यधिक नमी होती है। यह सब चंद्रमा के प्रभाव की वजह से होता है। इसलिए इस मास में शिव को प्रसन्न करने का उपाय किया जाता है, ताकि उनकी कृपा से शिव कृपा से भी भक्त लाभान्वित हो जाएं। अगर चंद्रमा की कृपा भक्तों पर हो जाए, तो हमें राजसी सुख मिल सकते हैं और यश भी मिलता है। अगर व्यापारिक क्षेत्रों में तरक्की चाहते हों, तो वे इस मास में किसी भी सप्ताह यह साधना कर सकते हैं। दस महाविधाओं में से एक महाविद्या त्रिपुर सुंदरी, राज राजेश्वरी, षोड्षी, पार्वती जी की सूक्ष्म साधना भी लाभप्रद साबित हो सकती है।
इस मास के लिए किसी भी सोमवार से अगले सोमवार तक साधना की जा सकती है। प्रात: से लेकर रात्रि तक जो भी समय सुविधापूर्ण लगे, उसमें साधना की जा सकती है। साधना काल के सप्ताह में मांस, मदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थों के सेवन से परहेज करना चाहिए। साथ ही अनैतिक कृत्यों से भी बचना चाहिए।
साधना आरंभ करने से पहले स्नान आदि कर शुद्ध होकर सफेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद रेशमी या सफेद रंग के वस्त्र का आसन लें। एक सुपारी को कलावे से अच्छी तरह लपेटकर उसे एक थाली में सफेद वस्त्र के ऊपर रखें। अब देवी पार्वती का ध्यान करते हुए उनसे प्रार्थना करते हुए उनसे उस सुपारी में अपना अंश प्रदान करने की प्रार्थना करें। यह क्रिया ग्यारह बार करें। अब देवी का ध्यान, आवाहन मंत्र जपे।
ध्यान मंत्र
बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों।
नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।।
हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती।
श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।
आवाहन मंत्र
ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि।
इसके बाद देवी को सुपारी में प्रतिष्ठित कर दें। इसे तिलक करें और धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ पंचोपचार विधि से पूजन पूर्ण करें अब कमल गट्टे की माला लेकर करीब 108 बार नीचे लिखे मंत्र का जप करें
ऊं ह्रीं कं ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं।
जब मंत्र जप पूर्ण हो जाए, तो देवी जी से आज्ञा लेकर अपने द्वारा की गई गलतियों की क्षमा मांगकर पूजन कार्य समाप्त करें। यह प्रक्रिया लगातार सात दिनों तक करें। आठवें दिन खील, सफेद तिल, बताशे, बूरा, चीनी और गुलाब के फूल, बेल पत्र को एक साथ मिलाकर 108 आहूतियों से हवन करें। हवन के लिए मंत्र के आगे ऊं नम: स्वाहा: जोड़कर मंत्रोच्चार करें।
साधना आरंभ करने से पहले यह संकल्प जरूर लें कि साधना का उद्देश्य क्या है और यथाशक्ति दान क्या होगा? इस साधना से आपकी कामना पूरी होगी और शिव कृपा भी मिलेगी। पूजा के बाद पूजन सामग्री को एक जगह इकट्ठा कीजिए और देवी से प्रार्थना करें कि वे अब अपने स्थान पर वापस जा सकती हैं। उन्हें धन्यवाद देते हुए साधना का विसर्जन करें। इसके बाद सारी पूजन सामग्री की माला देवी प्रतिष्ठित सुपारी को आदरपूर्वक नदी में विसर्जित करें।
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