Birthday of Lord Krishna (कृष्ण जी का जन्मदिन)
किसी के लिए अवतार हैं, तो किसी के लिए गीता का उपदेश देने वाले ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु हैं। एक ही कृष्ण की इतनी सारी परिभाषाएं, इतने स्वरूप और इतने चरित्र हैं कि जनमानस तो बस इतना ही कह सका कि हे कृष्ण! तुम सोलह कला संपूर्ण हो। इससे अधिक हम कुछ और नहीं कह सकते। कृष्ण शब्द का अर्थ है, जो आकर्षित करने की शक्ति रखता है। जिसके भीतर चेतनता पूरे शिखर पर है। कृष्ण पूर्ण पुरुष हैं। जो भी काम करते हैं, पूरा करते हैं। कृष्ण ने सवा सौ साल तक इस धरती पर लीला की, लेकिन एक बार वृंदावन छोड़ दिया, तो फिर वापस पलटकर देखा भी नहीं। जो गया, सो गया। किसी का पति, मां, भाई या मित्र होने की, या जो भी कोई भूमिका तुमको मिली है, उसे पूरी तरह निभाते हुए भीतर से यह याद रखना कि कुछ भी मेरा नहीं है, यह तो महज नाटक है, यह देह भी मैं नहीं हूं। हम जन्माष्टमी का दिन इसीलिए मनाते हैं कि हम इस महापुरुष को, इस लीलाधारी को याद कर सकें। कृष्ण के जीवन से एक और बात हमें मिलती है कि आप कितने ही ज्ञानी और ब्रह्मनिष्ठ क्यों न हो जाएं, आपके आचरण में ज्ञान का पाखंड कभी भी न दिखे। ऐसे जीओ जैसे एक साधारण व्यक्ति जीता है। कृष्ण पूर्ण पुरुष हैं, पूर्ण ज्ञानी हैं, फिर भी वे अपना मुंह ज्ञान का उपदेश देने के लिए तब तक नहीं खोलते, जब तक अर्जुन हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना नहीं करता कि
‘शिष्यस्ते अहं शाधिमांत्वो प्रपन्नम्’
मैं आपका शिष्य हुआ, अब मेरे गुरु बनकर मेरे उद्धार का मार्ग बताइए। उनका ज्ञान वह चमत्कार है, जिसने मोहग्रस्त अर्जुन को मात्र सवा घंटे के वार्तालाप में उस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया, जहां अर्जुन कहने लगा, ‘कहां है मोह? कैसा शोक? किस मृत्यु का भय? किस जन्म की चिंता?’ गुरु बनकर कृष्ण ऐसा उपदेश देते हैं, जिसे सुनते ही अर्जुन के चित्त का अंधकार दूर हो जाता है।
ख्याल करना, वह गुरु कभी पूरा गुरु नहीं बन सकता, जो कभी पूरा शिष्य न हुआ हो। जिस दिन शिष्य में शिष्यत्व पूरा हो जाता है, उसी दिन वह गुरु पदवी पर सहजता से आ जाता है। जिस दिन शिष्य का शिष्यत्व चरम शिखर छू लेता है, उस दिन शिष्यत्व की मौत हो जाती है और गुरु का जन्म हो जाता है। तुम भी अगर आज प्रेम से पुकारोगे, तो तुम्हारे शरीर में उनके प्रेम की तरंगे स्पंदित होने लगेंगी क्योंकि कृष्ण किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं है। जिस व्यक्ति का तुम जन्मोत्सव मनाते हो, वह व्यक्ति खुद अपने मुख से कहता रहा कि मैं देहधारी व्यक्ति नहीं हूं, मैं अव्यक्त हूं। एक बात तो तय है कि हमारे अंदर कृष्ण-चेतना का जन्म जब होगा, तब होगा। पर आज के दिन उनकी बांसुरी की धुन के साथ, उनकी मस्ती में हम मस्त भी हो ही सकते हैं। हम खुद ज्ञानी-ध्यानी जब होंगे, तब होंगे, पर आज के दिन कृष्ण के संग डोला तो जा ही सकता है। सच तो यह है कि इसी तरह से कृष्ण के संग डोलते-डोलते, सद्गुरु के संग मस्त होते-होते यह हमारे भीतर की जन्माष्टमी भी हो जाएगी।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कल है। यह केवल कृष्ण का जन्मदिन ही नहीं, बल्कि उन्हें उनके गुणों की वजह से याद करने का भी दिन होता है।
Post a Comment