श्रीमद्भगवद गीता (Role of Shrimad Bhagavad Gita)
गीता न केवल अध्यात्म में अपितु सांसारिक जीवन में भी सफलता का सफल मंत्र है। यह ग्रंथ हर युग में समस्याओं का समाधान बताने में सक्षम हैं। गीता ग्रंथ में अत्यधिक उदारता है। इसमें कैसी भी कोई संकीर्णता नहीं है। वर्तमान काल की सारी समस्याओं का हल इसमें है। इसीलिए हमने इसे अपने प्रवचन का माध्यम बनाया है। गीता ऐसी पुस्तक है, जिसमें व्यक्ति के कल्याण से संबंधित ऐसा कोई भी प्रश्न नहीं है, जिसका उत्तर इसमें निहित न हो। यह ग्रंथ तनाव रहित जीवन का अचूक साधन है। इसमें शांति प्राप्त करने हेतु युक्ति युक्त तर्क संगत साधन हैं। आज का बुद्धिजीवी वर्ग हर बात में क्यों और कैसे लगाता है। श्रीमद्भगवद् गीता में सारे प्रश्नों का उत्तर है। कहीं युक्ति तो कहीं द्रष्टांत के साथ। साथ ही इस ग्रंथ में व्यक्ति को उसके कर्तव्य का ज्ञान जिस ढंग से कराया गया है, वह अद्वितीय है। यह ग्रंथ आज समाज की परम आवश्यकता है। गीता भगवान श्रीकृष्ण की साक्षात् अमृतमयी वाणी है। इसके अध्ययन व श्रवण से हर तरह का पापी व्यक्ति भी तर जाता है। इसके सभी अध्याय प्रेरणा के स्रोत हैं। पर इसका बारहवां अध्याय ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण की उदारता प्रत्यक्ष दिखाई देती है। इस अध्याय में ऐसा लगता है कि भगवान जीव के उद्धार के लिए अत्यंत कटिबद्ध व उत्सुक हैं। इसमें वह यह भी कहते हैं, ‘...मन, बुद्धि मुझे अर्पण कर या अभ्यास योग का आश्रय ले अथवा संपूर्ण कर्म मुझे अर्पित कर दे। यह भी नहीं, तो मात्र फल इच्छा का त्याग कर दे। इतने मात्र से भी तेरा उद्धार हो जाएगा...।’ आज के वैज्ञानिक युग में विज्ञान ने यद्यपि हमें बहुत कुछ दिया है, लेकिन मानसिक तनाव, अशांति, भय, रोग, शोक, दुर्भावनाएं आदि दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। इनका निराकरण विज्ञान के पास भी नहीं है। परंतु गीता में इन सभी का निराकरण है। वस्तुत: श्रीमद्भगवद् गीता न केवल शाश्वत शांति का अमोघ साधन अपितु उसका अग्रदूत भी है। गीता में त्याग का जो उपदेश है, वह भारतवर्ष की सर्वप्रथम आवश्यकता है क्योंकि हमारा देश भ्रष्टाचार, लूट-मार, अनीति, अराजकता आदि समस्याओं से ग्रसित है। त्याग के उपदेश से शासन-परंपराओं में राष्ट्र के प्रति प्रेम व प्रजा के हित की भावना आ सकती है। आज देश में समता के नाम पर विषमता के बीज बोए जा रहे हैं। शांति के नाम पर अशांति की स्थितियां उत्पन्न की जा रही हैं। ऐसे में गीता में ऐसी अनेक प्रेरणाएं मिल जाएंगी, जो समता, एकता, अखंडता, शांति और सद्भावना आदि का सूत्रपात कर सकती हैं। भगवान श्रीकृष्ण इस ग्रंथ के उपदेष्टा हैं। उन्होंने गीता में युवाओं के लिए भी संदेश देते हुए कहा है कि अगर युवा वर्ग में ईश्वरीय कृपा को आधार मानकर अपने कर्तव्य पथ में सदैव अग्रसर होने की भावना बनी रहेगी, तो उसे नित नई प्रेरणा मिलेगी।
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