Header Ads

ad

God of Each Directions


ऐसा कहा जाता है कि भगवान सभी दिशाओं में है। यह सही भी है क्योंकि शास्त्रों में जिन दस दिशाओं या आकाश एवं पाताल की चर्चा की गई है, हर जगह भगवान अपने किसी न किसी स्वरूप के साथ मौजूद हैं। मसलन पूर्व दिशा में संसार को प्रकाशमान करने वाले भगवान सूर्य हमारे स्वामी हैं। इनकी स्तुति करने से भक्तों का लाभ होता है और जीवन के हर क्षण में खुशी मिलती है। इनकी स्तुति इस श्लोक से की जा सकती है,

ॐ प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषव:। 
तेभ्यो नमोअधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम: इषुभ्यो नम: एभ्यो अस्तु। 
योअस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जंभे दध्म:।

इस मंत्र में सर्वप्रथम दिशा का नाम लेकर उस दिशा का अधिपति, उस दिशा का रक्षक तथा इषु यानी सूर्य का स्मरण करने के बाद इन्हें नमस्कार किया गया है तथा समाज में उत्पन्न विवादों को इन दैविक शक्तियों के हवाले करने का संकल्प किया गया है।

इसी प्रकार दक्षिण दिशा में हमारे स्वामी देवराज इंद्र माने गए हैं। जिनकी स्तुति इस मंत्र

दक्षिणा दिगिन्द्रोअधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषव:। 
तेभ्यो नमोअधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु। 
योस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं

इस मंत्र में कहा गया है कि दक्षिण दिशा में अर्थात दाहिने हाथ की तरफ सर्वशक्तिमान इंद्र हमारे अधिपति है। हम प्रार्थना करते है कि उनके मार्ग दर्शन से हमारा जीवन सुव्यवस्थित रूप में चले।

पश्चिम दिशा में शासन करने वाले वरुण हमारे स्वामी हैं। इनकी स्तुति के मंत्र

प्रतीची दिग्वरुणोअधिपति: पृदाकृ रक्षितान्नमिषव:। 
तेभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम: इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु। 
योअस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं व

यानी वरुण ऐसे देवता हैं, जो हम पर पीछे से शासन करते हैं। वह हमें अपनी व्यवस्था में चलाते हैं। इस दिशा में अन्न अर्थात भोजन के उत्तम होने की प्रार्थना जब हम करते हैं, तो इसका आशय यह होता है कि मेरी पीठ के पीछे मेरे परिवार के लिए साधन सामग्री की कमी न हो।

उत्तर दिशा में दयालु सोम हमारे स्वामी हैं, जिनकी स्तुति इस मंत्र से की जा सकती है

उदीची दिग्सोमोअधिपति: स्वजो रक्षिताशनिरिषव:। 
तेभ्यो नमोअधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम: एभ्यो अस्तु। 
योअस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं व

इस दिशा में ‘अशनि’ अर्थात बिजली जो वर्षा की हेतु है, उसे इषु कहा गया है। वर्षा भी हमारे समाज के जीवन का प्रमुख साधन है। अशनि का अर्थ शक्ति है, पर देखा जाए तो शांति के लिए शक्ति भी जरूरी है।

नीचे दिशा में आश्रयदाता विष्णु हमारे स्वामी हैं जिनकी स्तुति इस मंत्र से की जा सकती है

धरुवा दिग्विष्णुरधिपति: कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषव:। 
तेभ्यो नमोअधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम: एभ्यो अस्तु। 
योअस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो

यानी नीचे की दिशा में विष्णु अर्थात् संपूर्ण जगत का आश्रय हैं। इस दिशा में ‘वीरुधे’’ अर्थात वनस्पतियां हमारे समाज के जीवन का इषु अर्थात साधन है। कल्माषग्रीव अर्थात नीले कण्ठ वाला जिसका अर्थ निर्दोषों को निगल जाने वाला भी होता है अर्थात स्वार्थी व्यक्ति भी सुधर कर हमारा रक्षिता बनें।

ऊपर दिशा में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति हमारे स्वामी हैं, जिनकी स्तुति का मंत्र है

ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपति: श्वित्रो रक्षिता वर्षमिषव:। 
तेभ्यो नमोअधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम: एभ्यो अस्तु। 
योस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस

इन सबको नमस्कार करते हुए हम ईश्वर से प्रार्थना करते है कि जो कोई भी हमसे हमारे समाज या देश से शत्रुता अथवा जिससे हम शत्रुता रखते हों, तो उसका निर्णय आप करें।

No comments

अगर आप अपनी समस्या की शीघ्र समाधान चाहते हैं तो ईमेल ही करें!!