गीता ज्ञान (Geeta and Krishana)
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इन चार गूढ़ प्रश्नों के उत्तर में श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को क्रमश: इस प्रकार एक महान वैदिक सिद्धांत समझाने का प्रयास किया। आत्मा न पैदा हुई न मरती है। यह उसी प्रकार है, जैसे परमात्मा न पैदा हुआ, न मरता है। अगर व्यक्ति आत्मा की इस मूल प्रकृति को हर वक्त स्मरण रखे, तो बेशक आज का कलियुग ही क्यों न हो, किसी प्रकार का भय व्यक्ति को सता ही नहीं सकता। यह था कर्म मार्ग, जिसमें व्यक्ति को सदैव अन्याय के विरूद्ध निडर रहकर संघर्ष की प्रेरणा मिलती है। इस संघर्ष में व्यक्ति को नि:स्वार्थ भाव से ही कार्य करना सुगम और हितकर बताया गया। नि:स्वार्थ भाव से काम करने वाले की एकाग्रता स्वार्थी व्यक्ति से अधिक होती है। स्वार्थी व्यक्ति कदम-कदम पर फल मिलने या न मिलने की चिंता करता रहता है और इस कार्य पर उसकी एकाग्रता कहीं न कहीं कम हो जाना स्वाभाविक है। आत्मा की इस अनंत यात्रा पर उसे अनेकों योनियां और शरीर प्राप्त होते हैं। 84 लाख योनियों की यात्रा करने के बाद मानव शरीर में आने पर आत्मा का मुख्य उद्देश्य परमात्मा से लगातार संपर्क बनाए रखना होना चाहिए। यह है भक्ति मार्ग।
कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग मिलकर ही एक सर्वोत्तम ज्ञान मार्ग है। वैसे कहने को श्रीमद्भागवद्गीता नि:स्वार्थ कर्म का सिद्धान्त स्थापित करती है। परन्तु विद्वानों ने इसी सिद्धांत को वेद, दर्शन और उपनिषदों का सारगर्भित सिद्धांत भी माना है। महात्मा गांधी ने तो यहां तक कहा है कि गीता सिद्धांत मनुष्य के जीवन से जुड़ी समस्त समस्याओं का निदान है। यह समस्त पंथों की भी सारगर्भित अभिव्यक्ति है। यह हर प्रकार के व्यक्ति को संबोधित करती है - चाहे वह कोई महान पुण्यात्मा हो या कोई बड़े से बड़ा पापी, स्वार्थी हो या नि:स्वार्थी। आज केवल यही एक पुस्तक है, जो सारी प्रकार की मानसिक बीमारियों का अचूक इलाज बन सकती है।
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