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ग्रहण योग


जन्मकुंडली के बारह भावों में से किसी भी भाव में जब एक से अधिक ग्रह बैठ जाते हैं या एक ग्रह की दृष्टि दूसरे ग्रह पर पड़ती है, तब उन ग्रहों के बीच एक विशिष्ट योग बनता है। ये योग अछे भी हो सकते हैं और बुरे भी। ऐसा ही एक योग है ग्रहण योग। कुंडली में जब किसी भी भाव में चंद्रमा व राहु एक साथ बैठे हों या फिर चंद्रमा पर राहु की  दृष्टि हो, तब ग्रहण योग होता है। इसमें यदि चंद्रमा बलवान हो, तब भी राहु की वजह से चंद्रमा को हानि पहुंचती है और अगर चंद्रमा पहले से ही कमजोर हो, तो चंद्रमा को बहुत यादा हानि पहुंचती है। जिस जातक की कुंडली में यह दुर्योग होता है, उसे जीवन में तमाम कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। साथ ही यह योग कुंडली के आए शुभ योगों को भी नष्ट कर देता है। यदि चांदी की अंगूठी में मोती जड़वाकर धारा किया जाए, तो चंद्रमा बलवान होता है और इस योग का शमन होता है। राहु की शांति के लिए प्रयेक बुधवार और शनिवार को काले कु को रोटी खिलानी चाहिए या 27 बुधवार या शनिवार तक बहते पानी में का कोयला बहाना चाहिए। अगर समस्या केतु की हो, तो चितकबरे कु को दूध-रोटी खिलानी चाहिए या काले-सफेद तिल मिलाकर 27 शनिवार तक बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए।

2 comments:

  1. santosh pusadkar

    आप ने जो बताया सही है. आप को धन्यवाद करता हू शुक का क्या उपाय करणा पडेगा.शुक्र की महादशा १३ ऑक्ट २००९ सुरु हो गायी है.कन्या लग्न कुंडली है. केतू दिव्तीय मै , शनी तृतीय ,गुरु पंचम बुध शुक्र.चंद्र सप्तम मै , रवी राहू अष्टम मै. मंगल नअवं मै है कुंडली के अनुसार अष्टम भाव में ग्रहण दोष है तथा बुध का केन्द्राधिपति दोष कोनसा रतन पाहणा पडेगा . कृपया मागदर्शन करे.

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  2. केन्द्राधिपति दोष का अर्थ है कि केन्द्र का स्वामी यदि शुभ ग्रह हो तो ऐआ जातक आसनी से अपना लाभ दुसरो को लेने देता है। सच मे तो यह कोई दोष नहीं है। आप ऐसा कुछ समझे जैसे कि कलियुग मे सत्ययुग का आदमी। इसके लिए कोई रत्न पहने से क्या लाभ होगा? इसमे जरुरत यह है कि किसी को भी अपना अनुचित लाभ ना लेने दिया जाये। बस सावधानी जरुरी है। जैसा आपने देखा होगा कि पैसे की जरुरत होने पर आदमी कैसे गिडगिडाता है और जब पैसा मांगने जाओ तो आँख दिखाता हैं। यह दोष होने पर जातक हजारो ठोकरे खाने के बाद भी दुसरे पर यकीन कर उसकी सहायता के लिए तत्पर हो जाता हैं।

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