भगवान शिव की तीसरी आंख (Third Eye of Lord Shiva)
शिव भक्तों के लिए पूजनीय होने के साथ-साथ अचरज का विषय भी हैं। उनकी वेषभूषा, वाहन आदि के बारे में अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। इसी प्रकार उनकी तीसरी आंख भी विशेष है। इसी वजह से इनका एक नाम त्रयंबक भी है।
उनकी कुल तीन आंखों में से दायीं आंख को सूर्य तथा बायीं आंख को चंद्र कहा जाता है। जबकि मस्तक पर बनी तीसरी आंख अग्नि का स्वरूप मानी जाती है। इनकी दो आंखें भौतिक जगत में उनकी सक्रियता का परिचायक हैं और तीसरी आंख सामान्य से परे का सूचक है। यह आध्यात्मिक ज्ञान और शक्ति का सूचक है। अग्नि की तरह ही भगवान शिव की तीसरी आंख पापियों को कहीं से भी खोज सकती है और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर सकती है। इसलिए दुष्टात्माएं इनकी तीसरी आंख से भयभीत रहती हैं। इनकी आधी खुली यह आंख यह भी बताती है कि संपूर्ण जगत की प्रक्रिया चल रही है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव की तीसरी आंख खुलती है, तो एक नए युग का सूत्रपात होता है। यह आंख इस बात का भी संकेत देती है कि सारे जगत की प्रक्रिया का न तो आदि है और न ही अंत।
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