How to Read Durga Saptashati
वैसे तो मां के कई रूप हैं, पर नवरात्र में उनके नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, महामाया, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी के द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, शतभुज, अष्टभुज और सहस्रभुज आदि अनंत रूप हैं।
नवरात्र में इनकी साधना व आराधना करने से उपासक को लौकिक और पारलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। दुर्गा सप्तशती में मां भगवती स्वयं कहती हैं, ‘जो साधक इस नवरात्र काल में मेरी पूजा, उपासना तथा दुर्गा सप्तशती में वर्णित मेरे चरित्र का पाठ एवं उसके महात्म्य का श्रवण करता है, मैं उसकी सर्वविध रक्षाकर समस्त मनोरथों की पूर्ति करती हूं। साथ ही उनके सभी दु:ख, क्लेश, ग्रह पीड़ा, शत्रु बाधा, रोग, शोक तथा वाद-विवादों का शमन करती हूं तथा मेरी कृपा से उनकी उन्नति सुनिश्चित होती है। अगर छात्र मेरी उपासना करते हैं, तो उन्हें उनके लक्ष्य की प्राप्ति होती है। इसलिए दुष्प्रभावों से मुक्ति तथा पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मेरे चरित्र का पाठ करना परम कल्याणकारी है।’
पाठ विधि :
दुर्गा सप्तशती में वर्णित 13 अध्यायों के पाठ करने का विधान है। या फिर पहले मध्यम चरित्र का, तत्पश्चात प्रथम चरित्र का और इसके बाद उत्तर चरित्र का पाठ करना चाहिए। मां के इस चरित्र का पाठ साहस, ओज, सौष्ठव, पौरुष, धन-धान्य तथा समस्त मनोरथों की सिद्धि प्रदान करने वाला है।
यदि समयाभाव की वजह से आप 13 अध्यायों का पाठ करने में असमर्थ हैं, तो दुर्गा सप्तशती में वर्णित दुर्गा सप्तश्लोकी मंत्र का पाठ करने अथवा कवच, अर्गला, कीलक तथा देवीसूक्त का पाठ करने से भी दुर्गा सप्तशती के पाठ के समान ही फल की प्राप्ति होती है। अंत में एक माला नवार्ण मंत्र का जप करना भी पुण्यकारी है। यदि दुर्गा सप्तशती के पाठ में कुछ सिद्ध मंत्रों का संपुट लगाकर पाठ किया जाए, तो शीघ्र ही अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
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