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देवताओं का ब्रह्म मुहूर्त आरंभ् (Sun in Makar)


प्राचीन काल से ही सूर्य का महत्व मानवों के लिए अत्यधिक रहा है। सूर्य की रश्मियों को किस तरह ग्रहण किया जाए, इसके लिए तमाम वेदों, पुराणों आदि में विधियों व प्रयोगों का वर्णन किया गया है। सूर्य में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों शक्तियों का स्वरूप समाहित है। सूर्य प्रत्येक राशि में एक माह या अधिक तक वास करते हैं। इसलिए हर माह प्रत्येक राशि के लिए संक्रांति क्रमश: आती रहती है। इनमें मकर संक्रांति का महत्व सर्वाधिक है। इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। वे मकर आदि छह तथा कर्क आदि छह राशियों का भोग करते हैं। इसलिए वह क्रमश: उत्तरायण व दक्षिणायन रहते हैं। इसी दिन से देवताओं का ब्रह्म मुहूर्त आरंभ होता है। सूर्य उत्तरायण हों, तो वे देवताओं के तथा दक्षिणायन हों, तो पितरों के अधिपति होते हैं। इस उत्सव में तिल का भी सर्वाधिक महत्व है। 

शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य, शनि के पिता हैं, लेकिन उनके परस्पर संबंध मधुर नहीं रहते। परंतु इस संक्रांति मे सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। दरअसल शनि मकर राशि के स्वामी हैं और इस तिथि को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके घर जाते हैं और इसी खुशी में मकर संक्रांति का पर्व मनाकर दान-पुण्य किया जाता है। किंवदंति यह भी है कि सूर्य भगवान अपने बेटे और मकर राशि के स्वामी शनि के घर एक माह रहे थे। पिता से मतभेद होने के बावजूद शनि ने एक माह तक पिता की खूब सेवा की थी। पुत्र और पिता बिना किसी मतभेद के एक-दूसरे से मिलते हैं, इसलिए सूर्य का मकर राशि में अत्यन्त शुभ संयोग होता है। इसके अलावा सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही अशुभ खर मास समाप्त हो जाता है और विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिए भी शुभ समय प्रारंभ हो जाता है।

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