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Shattila Ekadashi Vrat (षटतिला एकादशी) 19.01.2012



Shat Tila Ekadashi Tilda Ekadashi on Thursday 19 January 2012

मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी षट्तिला एकादशी के नाम से जानी जाती है। इसके महात्म्य के संदर्भ में भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं, ‘हे! कौन्तेय यह एकादशी समस्त पापों की नाशक ईर्ष्या, द्वेष, दुराग्रह आदि को दूर करने वाली तीनों लोकों में दिव्य उत्कृष्ट गुणों को प्रदान करने वाली है। इस उत्तम एकादशी का व्रत धारण कर विधिवत श्रीहरि विष्णु का पूजन-अर्चन करने से मनुष्य के मन के सारे कलुषित विचार काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर स्वत: ही क्षीण हो जाते हैं और वह राग-द्वेष से रहित होकर सदाचारी, विनयी, सात्विक, संयमी जीवन जीने को स्वयं ही कटिबद्ध हो जाता है।’ 

षट्तिला एकादशी के विषय में वर्णित है, ‘तिलोद्वतीं तिलस्नायी तिलहोमी तिलोदकी। तिलदाता तिलभोक्ता च षट्तिला पापनाशक:।’ अर्थात् तिल से हवन, तिलयुक्त भोजन, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिलोदक का पान, तिल का उबटन और तिल का दान, ये छह कर्म समस्त पापों के नाशक कहे गए हैं। इस प्रकार छह कामों में तिल का उपयोग करने से यह एकादशी षट्तिला एकादशी कहलाती है। षट्तिला एकादशी की कथा इस प्रकार हैं। 

युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा: भगवन्! माघ मास के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसके लिए कैसी विधि है तथा उसका फल क्या है ? कृपा करके ये सब बातें हमें बताइये। 


श्री भगवान बोले: नृपश्रेष्ठ! माघ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार पौष) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी ‘षटतिला ’ के नाम से विख्यात है, जो सब पापों का नाश करनेवाली है। मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने इसकी जो पापहारिणी कथा दाल्भ्य से कही थी, उसे सुनो। 

दाल्भ्य ने पूछा: ब्रह्मन्! मृत्युलोक में आये हुए प्राणी प्राय: पापकर्म करते रहते हैं। उन्हें नरक में न जाना पड़े इसके लिए कौन सा उपाय है? बताने की कृपा करें। 

पुलस्त्यजी बोले: महाभाग! माघ मास आने पर मनुष्य को चाहिए कि वह नहा धोकर पवित्र हो इन्द्रियसंयम रखते हुए काम, क्रोध, अहंकार ,लोभ और चुगली आदि बुराइयों को त्याग दे। देवाधिदेव भगवान का स्मरण करके जल से पैर धोकर भूमि पर पड़े हुए गोबर का संग्रह करे। उसमें तिल और कपास मिलाकर एक सौ आठ पिंडिकाएँ बनाये। फिर माघ में जब आर्द्रा या मूल नक्षत्र आये, तब कृष्णपक्ष की एकादशी करने के लिए नियम ग्रहण करें । भली भाँति स्नान करके पवित्र हो शुद्ध भाव से देवाधिदेव श्रीविष्णु की पूजा करें। कोई भूल हो जाने पर श्रीकृष्ण का नामोच्चारण करें। रात को जागरण और होम करें। 

प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध, स्वच्छ पीत वस्त्र धारण कर कुशासन पर पूर्वाभिमुख बैठकर अपने सामने आम की लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर शंख, चक्र, गदा, पद्म से विभूषित भगवान विष्णु की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित कर दीप प्रज्जवलित करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। 

इसके बाद धूप-दीप, गंध, अक्षत, केसर पीले पुष्प, कपूर, चंदन, अरगजा, ऋतुफल, नैवेद्य, तुलसी दल इत्यादि यथा सामर्थ्य समर्पित कर भक्ति भाव से आत्मविभोर होकर पूर्ण मनोयोग से श्रीहरि के नाम मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करते हुए पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात तिल मिश्रित द्रव्य से यज्ञाहुति “ॐ नमो नारायणाय नम:” मंत्र से देनी चाहिए। तत्पश्चात् भगवान का स्मरण करके बारंबार श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़े, नारियल अथवा बिजौरे के फल से भगवान को विधिपूर्वक पूजकर अर्ध्य दें । अन्य सब सामग्रियों के अभाव में सौ सुपारियों के द्वारा भी पूजन और अर्ध्यदान किया जा सकता है । अर्ध्य का मंत्र इस प्रकार है। 

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव । संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ॥ 
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन । सुब्रह्मण्य नमस्तेSस्तु महापुरुष पूर्वज ॥ 
गृहाणार्ध्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते । 

‘सच्चिदानन्दस्वरुप श्रीकृष्ण! आप बड़े दयालु हैं। हम आश्रयहीन जीवों के आप आश्रयदाता होइये। हम संसार समुद्र में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न होइये। कमलनयन! विश्वभावन! सुब्रह्मण्य! महापुरुष! सबके पूर्वज! आपको नमस्कार है! जगत्पते! मेरा दिया हुआ अर्ध्य आप लक्ष्मीजी के साथ स्वीकार करें।’ 

तत्पश्चात् ब्राह्मण की पूजा करें। उसे जल का घड़ा, छाता, जूता और वस्त्र दान करें। दान करते समय ऐसा कहें: ‘इस दान के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण मुझ पर प्रसन्न हों।’ अपनी शक्ति के अनुसार श्रेष्ठ ब्राह्मण को काली गौ का दान करें। द्विजश्रेष्ठ! विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह तिल से भरा हुआ पात्र भी दान करे। उन तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएँ पैदा हो सकती हैं, उतने हजार वर्षों तक वह स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। तिल से स्नान होम करे, तिल का उबटन लगाये, तिल मिलाया हुआ जल पीये, तिल का दान करे और तिल को भोजन के काम में ले।’ 

इस प्रकार हे नृपश्रेष्ठ! छ: कामों में तिल का उपयोग करने के कारण यह एकादशी ‘षटतिला’ कहलाती है, जो सब पापों का नाश करनेवाली है।

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