हर घर कुछ कहता है आपकी जन्म कुंडली का:
जन्म कुण्डली में बारह भाव होते हैं और अलग-अलग भावों से मनुष्य के सुख-दुःख का निर्धारण किया जाता है। जन्मकुण्डली का नौंवा घर भाग्य स्थान कहलाता है, उसके बाद आता है दसवां घर जो कर्म स्थान कहलाता है। पैदा होने से पहले ही भाग्य सक्रिय रहता है और इसी आधार पर शिशु को जन्म से पूर्व ही माता-पिता, घर-द्वार का निर्धारण कर पृथ्वी पर भेजा जाता है।
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नवजात के कर्म प्रारम्भ करने से पहले ही भाग्य द्वारा उसकी नियति का निर्धारण हो जाता है। जन्मकुण्डली का प्रथम भाव सबल होना स्वस्थ शरीर की ओर संकेत करता है, दूसरा भाव वाणी द्वारा यश-कीर्ति प्राप्ति, तीसरा भाव उन्नति के लिए जीवन में अच्छी संगति, चौथा भाव परिवार से पूर्ण सहयोग, पांचवां भाव बुद्धि का सदुपयोग, सही समय पर बुद्धि सही कार्य करे तो पंचम भाव का पूर्ण फल मिलता है, छठा भाव अगर सही हो तो व्यक्ति को रोग-शोक, शत्रुओं से दूर रखता है, सातवां भाव सही हो, तो अच्छा जीवनसाथी मिलता है, आठवें भाव का सुख व्यक्ति की रुकावटें समाप्त कर उसे आकस्मिक चोट-चपेट से बचाता है। भाग्यवान व्यक्ति को प्रथम भाव से लेकर अष्टम भाव तक मिलने वाले अधिकांश सुख प्राप्त होते हैं। जब इन सभी भावों का शुभ प्रतिशत जीवन में अधिक हो, तो नवम भाव अर्थात् भाग्य भाव का पूर्ण फल व्यक्ति को मिलता है। यदि सभी भावों का फल ठीक प्रकार से प्राप्त हुआ हो और अष्टम भाव की कोई रूकावट न हो तब ही नवम भाव यानि भाग्योन्नति व धर्म मार्ग पर चलने में सफलता प्राप्त होती है। इसके बाद आता है दसवां भाव यानि कर्म भाव, भाग्य और कर्म मिलकर ही व्यक्ति के आय और व्यय का निर्धारण होता है। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार सूर्य 22वें, चन्द्रमा 24वें, मंगल 28वें, बुध 32वें, गुरु 16वें, शुक्र 27वें शनि 32 या 36 वें वर्ष में व्यक्ति का भाग्योदय करता है।
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