Self Interview - आत्म साक्षात्कार ही मोक्ष का मार्ग
सबसे ऊँचा पद क्या है?
सबसे ऊँचे में ऊँचा पद है आत्म पद। इस पद से बड़ा पद पूरे ब्रह्माण्ड में दूसरा कोई नहीं है। आत्मपद में स्थिति हो जाने के बाद ज्ञानी को ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पद भी तिनके के समान भासता है।
सबसे ऊँचा(बड़ा) सुख क्या है?
सबसे ऊँचा सुख है, आत्म साक्षात्कार के बाद ब्राह्मी स्थिति/आत्म पद में स्थिति का सुख। चाहे बाह्य (बाहर) जगत में प्रलय ही क्यों ना हो जाय, आत्म पद में स्तिथ ज्ञानवान को उससे शोक नहीं होता। सेठों से कई गुना सुख राजाओं को होता है, राजाओं से १०० गुना सुख चक्रवर्ती राजा को होता है, चक्रवर्ती से १०० गुना सुख गन्धर्वों को होता है, गन्धर्वों से १०० गुना सुख देवताओं को होता है, देवताओं से १०० गुना सुख देवताओं के राजा इन्द्र को होता है, ऐसा इन्द्र भी अपने आपको ब्रह्मज्ञानी के आगे छोटा मानता है।
एकान्तवासी वीतराग मुनि को जो सुख मिलता है।
वह सुख न इन्द्र को और न चक्रवर्ती राजाओं को मिलता है॥
गुरुगीता से शलोक न. 89
प्रचेताओं (राजा पृथु के प्रपौत्र प्राचीनबर्हि के १० पुत्र) की तपस्या/स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रगट हो प्रचेताओं को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तब प्रचेताओं ने कहा-भगवान हम मांगने में गलती कर सकते हैं। आप जो ठीक समझें वही दें। तब भगवान ने उनके ह्रदय में से माया को हटा दिया और उनके ह्रदय में ब्रह्मज्ञान प्रगट कर दिया। अब आप ही सोचिये अगर इससे ऊँचा भी कुछ होता तो भगवान उन्हें वो न देते? प्रत्येक मनुष्य की मांग है,ऐसा सुख जो कभी न मिटे। तो भगवान ने ऐसा कुछ बनाया भी तो होगा। वह सुख किसी पदार्थ में नहीं, आत्मज्ञान में है जो भगवान ने प्रचेताओं को कराया। एक बार आत्मज्ञान हो जाए फिर मन में कभी न मिटने वाला आनंद सदा रहता है फिर आपको सुख के लिए कुछ करना, खाना, पीना, भोगना या मेहनत नहीं करनी पड़ती। सहज में सुख ह्रदय में सदा रहता है। फिर अपमान, दुःख, चिंताएं आपको नहीं छू सकतें। जो भी होता है बाह्य जगत में होता है। आप सदा आत्म पद में निर्लेप रहते हैं। फिर कर्म अकर्म भी आप पर लागू नहीं पड़ता, क्योंकि आप साक्षी भाव में रहते है सदा। ऐसी महिमा है आत्मज्ञान की। तो फिर क्यों बापूजी से यह छोड़कर कुछ और मांगना?
आत्म साक्षात्कार किसे कहते है?
आत्म साक्षात्कार एक स्थिति है जिसमे हम अपने आपको शरीर नहीं आत्म जानते है, फिर सुख-दुःख, मान-अपमान के थपेड़े नहीं लगते, मन परम विश्रांति में रहता है बापूजी भी यही चाहते है की उनके प्यारे उस परम पद को पाके सभी दुखों से सदा के लिए पार हो जायें।
ऐसा क्या है जिसको पाने के बाद दुखों की कोई दाल नहीं गलती?
आत्म-साक्षात्कार, आत्मज्ञान, ब्राह्मी स्थिति(साक्षात्कार के बाद की स्थिति) तत्व ज्ञान, ब्रह्म-ज्ञान सभी समानार्थी है।
इश्वर प्राप्ति माने क्या और कैसे हो?
भगवान् का साकार दर्शन करना इश्वर प्राप्ति नहीं, साकार रूप में तो रावण, कंस, दुर्योदनने भी दर्शन किए फिर भी पाप करते थे और नीर-दुःख नहीं हुए अर्जुन को भी जब भगवान् ने आत्म-ज्ञान कराया तब अर्जुन का शोक नाश हुआ भगवान् को तत्व-आत्म रूप से जानना आत्म ज्ञान/साक्षात्कार होना इश्वर प्राप्ति है
दुःख का कारण और मूल क्या है?
दुःख पूर्व के पाप कर्म और अज्ञान के कारण होता है अगर आपने स्वरुप का ज्ञान हो जाय और अपने असली रुप में को जान ले के में शारीर नहीं आत्मा हूँ तो कितना भी बड़ा दुःख/अपमान आ जाय वह आपको दुखी नहीं कर पायगा क्योंकि आप अपने असल रूप में स्थित होंकर साक्षी होंगे।
इस आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए बुद्धिमानो को प्रयत्न करना चाहिए।
(गुरुगीता से शलोक न. २२)
आत्म साक्षात्कार, इससे उचा फल-लाभ पृथ्वी पर दुसरा कोई नहीं, इस की बराबरी दूसरा कोई लाभ नहीं कर सकता।
सारे सत्संगो का सार क्या है?
सभी सत्संगो का सार यही है की हम उस परम पद(आत्म पद) को पालें, उस इतने उचे पद को छोड़ कर क्यों दो कोडी के सुख के पीछे बागना, एक बार आत्म साक्षात्कार हो जाए फिर दुःख टिकेगा नहीं और सुख मिटेगा नहीं, इस्सिलिये पाने योग्य सिर्फ यही है बाकी सब धोखा ही है, बाकी जो भी मिला छुट जाएगा, इसीलिए अपनी बुधी का उपयोग करें और आत्मज्ञान के रास्ते पर चल पड़ें
कैसे हो आत्म साक्षात्कार (आत्मज्ञान, ब्रह्म ज्ञान, ब्राह्मीस्थिति, तत्व ज्ञान)?
बिना सेवा के गुरुकृपा नहीं पचेगी, मुफ्त का माल हजम नहीं होगा, और बिना गुरुकृपा के आत्म ज्ञान/साक्षात्कार नहीं हो सकता। हम में जो भी योग्यता है उसे गुरु सेवा और परमपिता में लगा देना है बस, नया कुछ नहीं करना, सीखना सेवा से ही पात्रता विकसित होगी और तभी हम अधिकारी बनेगे, बिना सेवा के किसी का विकास नहीं होता
कब होगा आत्म साक्षात्कार? तड़प जीतनी ज्यादा समय उतना ही कम! आप आत्म साक्षात्कार को ईमानदारी से उदेश्य बनाकर साक्षात्कार के रस्ते दृडता से चलें! जहां चाह वहाँ राह, आप चलिए तो सही देर-सवेर हो ही जाएगा।
दीक्षा लिए इतना समय हो गया अभी तक साक्षात्कार क्यों नहीं हुआ?
आत्म-साक्षात्कार तब होगा जब हमारा ह्रदय शुद्ध होगा, अशुद्ध ह्रदय में यह ज्ञान नहीं ठहरता और गुरुकृपा पचाने की पात्रता होगी तब पचेगा, बस ह्रदय की शुधी, पात्रता और ईमानदारी से उदेश्य होना चाहिए।
ह्रदय की शुद्धि कैसे हो? सेवा और साधना से ह्रदय शुद्ध होगा और अन्तःकरण का निर्माण होगा तभी यह ज्ञान ह्रदय में टिकेगा।
Quote from: http://Saarsatsang.Blogspot.In/
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