Header Ads

ad

Durga Puja: Even done by deity also

जगदम्बा की उपासना तो देवता भी करते है:

पुराणों में शक्तिवाद की विभिन्न प्रवृत्तियों का अत्यधिक विकसित रूप देखने को मिलता है। सौर पुराण में कहा गया है कि देवी शिव की ज्ञानमयी शक्ति हैं, जिसके द्वारा शिव सृष्टि का निर्माण और संहार करते हैं। शक्ति त्रिगुणात्मक है तथा शिव के कार्य पूर्ण करने के लिए विभिन्न अवसरों पर अनेक रूप धारण करती हैं। शिव की शक्ति से वैसा ही संबंध है, जैसा अग्नि का उसकी ज्वलन शक्ति के साथ। पौराणिक युग में शक्ति को शिव-पार्वती के रूप में उपासना की जाती थी। रामायण व महाभारत काल में देवी के दो रूप हो गए थे। सौम्य रूप में देवी उमा, गौरी, पार्वती, आदि तथा उग्र रूप में चामुंडा, चंडी, दुर्गा, काली आदि एक स्वतंत्र मत की आराध्या के रूप में उनका उग्र रूप अधिक उभरा। ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि सभी देवता शक्ति की देवी की उपासना करते है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, ‘वे शिव की ही नहीं, अपितु समस्त देवताओं की शक्ति हैं। उनका प्रमुख कार्य दानवों का संहार करना है। दुर्गा के हाथों महिषासुर वध की कथा अनेक पुराणों में दी गई है।’ विष्णु पुराण के अनुसार, ‘शुंभ-निशुंभ आदि हजारों असुरों को मारकर उन्होंने विश्व के अनेक स्थानों पर भक्तों का कल्याण किया था।’ वाराह पुराण में कहा गया है, ‘वृत्तासुर का वध करते समय उन्होंने कात्यायनी का रूप धारण किया था।’ मत्स्य पुराण के अनुसार, ‘शुष्क रेवती नामक देवी ने जो भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थीं, असुरों का संहार किया था।’ देवी भागवत पुराण में मणिद्वीप निवासीन भगवती भुवन शबरी का वर्णन किया गया है। उसे सगुण-निर्गुण रूप ब्रह्मरूपिणी तथा देवताओं की आराध्य बताया गया है। तृतीय स्कंद के प्रथम अध्याय में यह वर्णित है कि ‘भवानी संपूर्ण मनोरथ सिद्ध करने वाली महाशक्ति हैं। ये देवताओं और संपूर्ण प्राणियों की जननी हैं। इनका स्वरूप सत, रज तथा तम से परे है। ये निर्गुण होते हुए भी सगुण हैं तथा गुणों का विस्तार इन्हीं से होता है।’ देवी भागवत पुराण में देवी के बारे में विस्तृत व्याख्या की गई है। इसके अनुसार, ‘देवी का मस्तक आकाश है। चंद्र तथा सूर्य इनके नेत्र हैं, दिशाएं कान हैं, वेद वाणी है, वायु प्राण हैं तथा संसार इनका हृदय है। पृथ्वी जांघ, पाताल, नाभि, चंद्र ज्योति छाती, इहलोक ग्रीवा, जनलोक मुख, तप लोक ललाट, इंद्र प्रकृति, श्रोत अश्विन कुमार, नासिका गंध, अग्नि इंद्रिय व मुख, दिन-रात पलकें, जल तालू, रस जिह्वा तथा यमराज दाढ़ हैं। स्नेह दांत तथा माया हंसी है, अधर लज्जा तथा निचले अधर लोभी लोग हैं। देवी के केश मेघ, सागर उदर, पर्वत हड्डी, नाड़ियां नदी तथा वृक्ष रोम हैं। कौमार्य यौवन तथा वृद्धावस्था उनकी आयु है। प्रातः और सायं उनके परिधान, चंद्रमा मन, हरि, विवेकशक्ति तथा रुद्र कारण हैं।’ मत्स्य पुराण में देवी की प्रतिमाओं के निर्माण के बारे में व्याख्या की गई है, जबकि अग्नि पुराण में वर्णित है कि मंदिरों में देवी की विशाल मूर्तियों को स्थापित किया जाता था। ये मूर्तियां मिट्टी, लकड़ी, पत्थर, स्फटिक, लोहे, तांबे, पीतल, चांदी, स्वर्ण तथा अन्य रत्नों से निर्मित होती थीं। मत्स्य पुराण में देवी की आराधना की तिथि नवमी मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन देवी ने महिषासुर का वध किया था।

No comments

अगर आप अपनी समस्या की शीघ्र समाधान चाहते हैं तो ईमेल ही करें!!