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Ganga Dussehra / Dashami : 31-05-2012



अपने उद्गम से लेकर सागर में विलीन होने के बाद भी पौराणिक महत्व की गंगा नदी की पवित्रता बरकरार रहती है। इसी वजह से आधुनिक युग में भी इसमें स्नान करने एवं इसके निमित्त पूजन व दान करने की बात बताई जाती है। आज भी यह माना जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से जातकों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

मां गंगा की उत्पत्ति वैशाख शुक्ल की सप्तमी तिथि को हुई थी, जिसे गंगा जयंती या गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। गंगा नदी में कभी भी स्नान करना सदैव शुभ ही माना जाता है। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है। इसी वजह से समस्त संस्कारों में उनकी उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है, मकर संक्राति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान, दान एवं दर्शन करना महत्त्वपूर्ण माना गया है। गंगा जी पर अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्रम एवं गंगा आरती बहुत लोकप्रिय हैं।

गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो गंगा जी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक हैं। कहीं पर माना जाता है कि गंगा का जन्म विष्णु के पैर के पसीने की बूंदों से हुआ है। जबकि किसी ग्रंथ में उल्लिखित है कि गंगा का जन्म भगवान ब्रह्मा के कमंडल से हुआ है।

एक अन्य कथा अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया, तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा, जिसे ब्रह्मा जी ने उसे अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था। यह भी माना जाता है कि वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्गलोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी। इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है। गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों, मांगलिक दोष का क्षय होता है। मान्यता है कि विधि-विधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है।

अनादि काल से हमारे धार्मिक ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों, गंगा की उत्पत्ति तथा गंगा जल की महत्ता के विषय में अनेकों प्रमाण तथा विशद वर्णन प्राप्त होते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा भगीरथ के अथक प्रयास, दृढ़निश्चय और सहस्रों वर्षों के कठोर तपोबल के पुण्य प्रभाव से ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं।

इस दिन दस विशेष ज्योतिष योग विद्यमान होते हैं, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर करण, आनंद योग, कन्या राशि का चंद्र तथा वृष राशि का सूर्य। यह दस योग अपनी शक्ति से दस पापों तथा सभी कष्टों को नष्ट कर देते हैं। इसीलिए यह तिथि मां गंगा के नाम पर तथा दस योगों द्वारा पापों का हरण करने के कारण गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि संवत्सर का मुख कही जाती है। इसलिए इस दिन गंगा स्नान, गंगा पूजन, जप-तप-यज्ञ हवन करने का विशेष महत्व है। इस बार गंगा दशहरा पर्व के महत्व को साठ वर्ष बाद बने गुरु-शनि परिवर्तन चक्र के संयोग तथा एक ही राशि पर पंचग्रही योग कई गुना बढ़ा रहे हैं। जो विशेष पुण्यमयी सुख-शांति, समृद्धि प्रदान करने वाला तथा संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला होगा। इस दिन गंगा स्नान का महात्म्य काफी अधिक है। इस दिन गंगा स्नान करने से मनसा वाचा कर्मणा द्वारा उत्पन्न दस दोष तथा कायिक वाचिक मानसिक सभी प्रकार के पाप तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं। 

ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशमी हस्त संयुक्ता। हरते दश पापानि तस्माद् दशहरा स्मृता। 

पूजन विधान: प्रातःकाल ब्रह्म बेला में गंगा स्नान के बाद अभय मुद्रा में स्थित होकर निम्न मंत्र से मकर वाहिनी मां गंगा का आवाह्न ध्यान करते हुए दस प्रकार के पुष्प, दशांग धूप, दस दीपक, दस प्रकार के नैवेद्य, दस पान, सुपारी, फल, अक्षत आदि अर्पित करते हुए पूजन-अर्चन करना चाहिए। 

मंत्र 

नमामि गंगे तव पादपंकजं सुरासुरैर्वन्दित दिव्य रूपम्। 

मुक्तिं मुक्तिं च ददासि नित्यं भावानुसारेण सदा नराणाम्। 



ध्यान मंत्र 

ॐ नमः शिवायै नारायणै दशहरायै गंगायै नमः। 


इसके बाद निम्न मंत्र से पांच पुष्पांजलि मां गंगा को अर्पित कर भगवान शिव-पार्वती, ब्रह्मा, गणेश, राजा भगीरथ तथा हिमालय के निमित्त पूजा संपन्न करनी चाहिए। इस दिन भगवान शंकर का दुग्धाभिषेक करने तथा ब्राह्मणों को दस प्रकार की चीजें दान देने से सभी ग्रह प्रदत्त पीड़ाओं का शमन होता है। 


ॐ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय-पावय स्वाहा। 

भविष्य पुराण के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा में दस गोते लगाने तथा जल में खड़े होकर दस बार गंगा स्तोत्र का पाठ तथा गंगावतरण की कथा का श्रवण करने से त्रिविध ताप दूर होते हैं तथा यदि वह व्यक्ति दुःखी तथा निर्धन हो, तो समृद्धिशाली हो जाता है। उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। 

कलियगु में गंगा दर्शन से सौ जन्म के, स्पर्श करने से दौ सौ जन्म के तथा स्नान करने से सहस्रों जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। तभी तो तुलसीदास जी भी गंगा की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं। 

गंगसकल मुद मंगलमूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।

इस बार आप भी प्रयास करे, गंगा दशहरे पर गंगा स्नान करने के लिए और अपने माता पिता और सम्बन्धियो को भी यह पवित्र स्नान करा, पुण्य के भागी बने। 

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