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Facts of Agni Dev

अग्निदेव को महत्वपूर्ण देवों की श्रेणी में रखा गया है। इन्हें स्थलीय देवता कहा जाता है, जो इंद्र और सूर्य के साथ मिलकर त्रिमूर्ति बनाते हैं। एक मत अनुसार वह ब्रह्मा की संतान हैं, जबकि पुराणों में वह अंगिरस की संतान माने गए हैं। ये अभिमानी हैं, जिनकी शादी स्वाहा के साथ हुई है और पावक, पावामन और शुचि नाम की इनकी तीन संतानें हैं। स्वधा इनकी दूसरी पत्नी हैं। आहुति हो या अंतिम संस्कार इनकी दोनों पत्नियों का नाम सदा उच्चारित किया जाता है। उन्हें घरों में भगवान का दर्जा दिया गया है। हमारे सामने अग्नि के तीन स्वरूप हैं, सूर्य की रोशनी के रूप में, आकाश में प्रकाश के रूप में और धरती पर आग के रूप में। वह हर इंसान के अंतर्मन में मौजूद हैं। इनकी यही विशेषता इन्हें सोम के समान बनाती है, जो अमृत का प्रतीक माने जाते हैं। अग्नि लाल रंग के हैं और इनके तीन प्रज्जवलित सिर, तीन पैर और सात हाथ हैं। इनके गले में फलों की माला है और भेड़ इनकी सवारी है। इनके तीन पैर तीन अग्नियों रस्म, विवाह और त्याग का सूचक हैं। जिनसे तीनों लोकों का अहसास होता है। इनकी गर्दन और आंखें काली हैं। जबकि बालों का रंग लाल है और अंगारों की तरह चमकती हुई जीभ है। ये काले वस्त्रों से सुसज्जित हैं और इनके हाथ में जलता हुआ हथियार है। वायु को इनका मित्र माना जाता है। कई बार इनकी तुलना रुद्र या शिव से की जाती है। यह मनुष्य और भगवान के बीच एक सेतु का काम करते हैं। उनकी उपस्थिति बुराइयों और अंधकार को दूर कर देती है। साथ ही व्यक्ति के जीवन में सफलता, प्रसन्नता और प्रसिद्धि लाती है। शास्त्रों के अनुसार अग्निदेव ही स्वर्ग और पृथ्वी का नियंत्रण करते हैं, क्योंकि वह ऊर्जा के प्रतीक हैं। यज्ञ मे दी जाने वाली आहूतियाँ अग्नि देव के माध्यम से ही ईष्ट देव तक पहुचाई जा सकती है। अग्नि का वास समय के अनुसार धरती आकाश और पाताल मे होता है। यज्ञ आदि कृत्यो मे अग्नि के वास पर ध्यान देना जरुरी होता है।

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