वास्तु शास्त्र में पश्चिम दिशा को सुख एवं समृद्धिदायक कहा जाता है। अगर पश्चिम दिशा में घर के दरवाजे या कमरे बनाएं जाएं, तो परिवार में खुशहाली बनी रहती है।
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पश्चिम दिशा में निवास करने वाला व्यक्ति जहां बहुत संपन्न नहीं होता, वहीं वह एकदम दरिद्र भी नहीं होता। अगर भवन का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में बनवाया जाए तो परिवार के लोग सुखी, स्वस्थ और प्रसन्नचित्त होते हैं। यदि भोजन कक्ष का निर्माण पश्चिम दिशा में करवाया जाए, तो परिवार सदैव आरोग्य और खुशहाल रहता है। वास्तुविदों का कहना है कि अन्न भंडार को पश्चिम दिशा के वायव्य कोण में बनवाना लाभदायक होता है। इसी तरह पश्चिम दिशा और वायव्य के मध्य में अध्ययन कक्ष भी बनवाया जा सकता है। इससे बच्चे मेहनती, मेधवी और व्यवहार कुशल बनते हैं। पश्चिम दिशा में स्नानघर या बाथरूम बनवाना भी वास्तुशास्त्र के अनुसार मान्य है। इससे वायु तत्व का अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस दिशा और वायव्य कोण के मध्य तथा पश्चिम दिशा और नैऋत्य कोण के मध्य में शयनकक्ष बनवाया जाता है। पश्चिमी दीवार के साथ बेड को लगाकर सिरहाना पश्चिम की ओर करना चाहिए। इससे निद्रा एवं दांपत्य सुख में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती। दंपति सामान्यतः खुशहाल रहते हैं। यदि भवन के उद्यान में पीपल का पेड़ लगाना हो तो उसे पश्चिम दिशा में ही लगाना चाहिए।
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