The Secret of Mudras for Sadhana
हाथ और उंगलियों द्वारा बनाई गई आकृति को ‘हस्त मुद्रा’ कहा जाता है। तंत्र संबंधी ग्रंथों में कहा गया है कि ईष्ट की साधना के दौरान मुद्रा प्रदर्शन करना अत्यावश्यक है। प्रत्येक देवी-देवता के लिए अलग-अलग मुद्रा होती है। इससे तत्संबधी देवी-देवता शीघ्र प्रसन्न होते हैं तथा मनोकामना की पूर्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। ‘डामर तंत्र’ में ऐसी मुद्राओं का उल्लेख है।
दोनों हाथों की उंगलियों को परस्पर गूंथकर तथा दोनों तर्जनी उंगलियों को फैलाकर कुंडल के समान आकृति बनाने से परम दुर्लभ मुद्रा बन जाती है। यह मुद्रा भूतनाथ की साधना में उपयोगी है।
अनामिका और तर्जनी उंगली को छोड़कर शेष उंगली उठाने से जो मुद्रा बनती है, वह भैरव की पूजा में प्रयोग की जाती है।
सभी उंगलियों को उठाकर और तर्जनी उंगली को लपेटकर संकुचित करने से जो मुद्रा बनती है। यह मुद्रा विष्णु पूजा में प्रयुक्त होती है।
दोनों हाथों की मुट्ठियों को आपस में संयोजित करके तर्जनी उंगली को कनिष्ठिका उंगली से वेष्टित करने पर बनाई गई मुद्रा से शशी देवी की सिद्धि हो जाती है।
हाथों की सभी उंगलियों को उठाकर मुट्ठी बंद करें, किंतु अंगूठों को मुट्ठी के ऊपर रखें। यह आदित्य मुद्रा कहलाती है। इसे सूर्य देव की पूजा में प्रयुक्त किया जाता है।
हाथों की दोनों मुट्ठियों को बांधकर दोनों तर्जनी उंगलियों को परस्पर मिलाने से जो मुद्रा बनती है, उसे खड्ग मुद्रा कहा गया है।
पहले दाएं हाथ के अंगूठे को कनिष्ठिका उंगली के समीप ले जाएं। फिर शेष उंगलियों को फैलाकर बाहु मूल में स्थापित कर दें। दिग्बंधन नामक यह मुद्रा बहुत उपयोगी है।
दोनों हाथों को मिलाकर रखने के कारण यह मुद्रा बनती है। यह मुद्रा रंभा देवी की पूजा के समय बनाई जाती है।
दाएं हाथ की मुट्ठी बंद करके तथा बाएं हाथ की तर्जनी उंगली को सीधी करके मध्यमा को कनिष्ठिका से मिलाएं। इससे नटेश्वर मुद्रा बनती है।
दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद करके मध्यमा उंगलियों का विस्तार करने से शिव मुद्रा बनती है। इससे समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
उपर्युक्त मुद्रा में मध्यमा तथा अनामिका को फैलाकर दोनों तर्जनी उंगलियों को दृढ़तापूर्वक परस्पर बांधने से शिखा मुद्रा बन जाती है। यह तंत्र साधना में यदि गुरु कहे तो जरुरी होती है।
दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद करके दोनों अंगूठे फैला दें। यह धूप मुद्रा है। इससे धूप देनी चाहिए अथवा दोनों हाथों की मुट्ठियों को अलग-अलग बांधकर बाएं हाथ की तर्जनी उंगली को एकदम सीधी कर लें। इस मुद्रा द्वारा आवाह्न किया जाता है।
बाएं हाथ की मुट्ठी बंद करके मध्यमा एवं तर्जनी को फैलाएं। फिर तर्जनी से मध्यमा उंगली को लपेटें और कनिष्ठिका को सीधी करके बीच के पोर पर रखें। यह गौरी मुद्रा कहलाती है। इस मुद्रा द्वारा शुभ कार्य किए जाते हैं।
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