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अपराजिता लता अनेक गुणों से युक्त है। अपराजिता लता के ऊपर सौंदर्यरूपी पुष्प खिले रहते हैं, जो घर की शोभा भी बढ़ाते हैं। गर्मी के कुछ दिनों को छोड़कर शेष पूरे वर्ष यह लता पुष्पों से भरी रहती है। इसके दो मुख्य प्रकार हैं, नीले पुष्प वाली और श्वेत पुष्प वाली। नीले पुष्प वाली लता को कृष्णकांता तथा श्वेत पुष्प वाली लता को विष्णुकांता के नाम से जाना जाता है। दोनों को ही अपराजिता कहा जाता है। इसके पत्ते वन मूंग की भांति आकार में कुछ बड़े होते हैं। प्रत्येक शाखा में निकलने वाली प्रत्येक सींक पर पांच या सात पत्ते दिखाई देते हैं। इसका पुष्प सीप की भांति आगे की तरफ गोलाकार होते हुए पीछे की तरफ संकुचित होता चला जाता है। पुष्प के मध्य में एक और पुष्प होता है। नीले पुष्प वाले फूल के भी दो भेद हैं, जो पहले वर्णित के अलावा केवल इकहर पुष्प होता है। इसकी जड़ धारण करने से भूत-प्रेत आदि की समस्या का निवारण होकर समस्त ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं। यदि किसी को बिच्छू ने काट लिया हो, तो काटे हुए स्थान पर ऊपर से नीचे की ओर श्वेत अपराजिता लता की जड़ को रगड़ें और उसी तरफ वाले हाथ में जड़ दबा दें, तो पांच मिनट में ही विष उतर जाता है। कृष्णकांता की जड़ को नीले कपड़े में लपेटकर शनिवार को रोगी के कंठ में धारण कराने से लाभ होता है। अगर श्वेत अपराजिता को सफेद बकरी के दूध में पीसकर गोली बना लें और अपने पास रखें, तो आपकी चोरों और हिंसक जानवरों से रक्षा होगी।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत आस्फोता,
गिरि, विष्णुक्रान्ता, गिरीकर्णी, अश्वखुरा
हिंदी कोयल,
अपराजिता।
मराठी गोकर्णी,
काजली, नाकर्णी, काली, पग्ली सुपली।
गुजराती चोली गरणी, काली गरणी।
तेलगू नीलंगटुना दिटेन।
अंग्रेजी मेजरीन।
दोनों प्रकार की कोयल (अपराजिता) चरपरी (तीखी), बुद्धि बढ़ाने वाली, कंठ (गले) को शुद्ध करने वाली, आंखों के लिए उपयोगी होती है। यह बुद्धि या दिमाग और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली है तथा सफेद दाग (कोढ़) मूत्रदोष (पेशाब की बीमारी), आंवयुक्त दस्त, जहर को दूर करने वाली है।
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