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Devi Laxmi Upasana

शक्ति तथा श्री उपासना भारतीय संस्कृति की प्राचीन परंपरा रही है। इसी उपासना के निमित्त चैत्र तथा आश्विन नवरात्र का महत्व और अधिक हो जाता है। चैत्र शुक्ल पंचमी को आद्या शक्ति महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इसे श्री पंचमी भी कहा जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार महालक्ष्मी जी का इस पृथ्वी पर आगमन सृष्टि के आदि काल में हुआ था। इनके अनुसार परब्रह्म के साथ विराजने वाली प्रथम नारी शक्ति को महालक्ष्मी की संज्ञा दी गई। जो भी साधक इनकी आराधना उपासना पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ करते हैं, उन्हें महामाया की असीम कृपा से अनंत सुख, धन, वैभव, मानसिक शांति तथा श्रेय की प्राप्ति होती है।

मां महालक्ष्मी स्वयं कहती हैं, ‘मैं ही काली हूं, लक्ष्मी हूं और मैं ही सरस्वती हूं। मैं ही जगत नियंता परब्रह्म विष्णु की पराशक्ति हूं। मेरे बिना वो किसी कार्य को संपन्न नहीं कर सकते। वेदवेत्ता मुझे मूल प्रकृति कहते हैं। मैं ही महाविष्णु के सानिध्य मात्र से इस जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करती हूं तथा अनेकों अवतारों को भी मैं ही धारण करती हूं। मैं ही बैकुंठ में महालक्ष्मी, गोलोक में राधा-लक्ष्मी, स्वर्गलोक में स्वर्ग तथा चंद्रलोक में शोभा लक्ष्मी के रूप में विद्यमान हूं।’ अतः महालक्ष्मी ही अनेकों रूपों को धारण कर देवताओं तथा पृथ्वीवासियों के कष्टों को दूर कर धन-वैभव, यश से परिपूर्ण करती हूं। परमशक्ति स्वरूप महालक्ष्मी सिद्धियों की अधीश्वरी, शरणागतों का उद्धार करने वाली बुद्धि, विद्या-विवेक, ज्ञान, क्षमा का दान करने वाली देव, दनुज, मनुज, यक्ष, गंधर्व सभी के द्वारा पूजनीय तथा वंदनीय हैं। भगवान के सभी पुरुष रूप में भी उनकी मूल शक्ति को ही अंतर्निहित किया गया है। इसीलिए भगवान विष्णु, लक्ष्मी-नारायण, भगवान राम-सीताराम, भगवान कृष्ण, राधा-वल्लभ और राधाकृष्ण के नाम से जाने जाते हैं।

व्रत एवं पूजन विधि: प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख होकर कुशासन पर बैठ जाएं। अब अपने सम्मुख एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर चावल अथवा कुंकुम से अष्टदल कमल बनाएं। इस पर महालक्ष्मी का चित्र या श्रीयंत्र की स्थापना करें। इसके बाद दीप प्रज्जवलित करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

संकल्प: मम् सकल दोष शमनार्थं सुख, शांति ऐश्वर्य आदि उत्तरोत्तर वृद्धयर्थं सकल कामना सिद्धये माता महालक्ष्म्यै प्रसन्नार्थं व्रतं अहं करिष्ये।

इसके बाद हल्दी, कुंकुम, अक्षत, इत्र, नागकेसर, गुड़, गन्ना, लौंग, इलायची, फल, फूल, नैवेद्य आदि अर्पित करते हुए पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। पूजनोपरांत श्रीसूक्त का पाठ तथा लक्ष्मी मंत्र  ॐ लक्ष्मी नारायणाय नमः मंत्रों का 108 बार जप करके कमल पुष्पों द्वारा लक्ष्मी सूक्त से हवन करने से मां प्रसन्न होकर समृद्धशाली, शक्तिसंपन्न होने का वरदान देती हैं। कमल पुष्पों के अभाव में बेल के टुकड़ों तथा कमलगट्टे द्वारा अथवा केवल घी से भी आहुति डालकर हवन संपन्न किया जा सकता है।

ध्यान मंत्र: 
रक्ष रक्ष भक्तवत्सला रक्ष त्रैलोक्य रक्षिकाः। भक्तानां भयाकर्ता त्राता भवार्णवात्।

पुष्पांजलि मंत्र
नाना सुगंधि पुष्पाणि यथा कलोद भवानी, पुष्पांजलि मर्यादत्तं ग्रहाण परमेश्वरिः।

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