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Shani Mantra


नवग्रह चराचर की सत्ता को चलाने वाले अधिपति शनि देव ही हैं, जो समस्त प्राणियों को उनके कर्मानुसार अच्छा या बुरा फल देते हैं। नवग्रहों में इनका काफी महत्व है। शनि की महादशा, अंतर्दशा, साढ़े साती और ढैय्या में व्यक्ति को कष्ट एवं परेशानियां उठानी पड़ती हैं। शनि पीड़ा से बचने के लिए प्रत्येक शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि पूजन करें। शनि चालीसा का पाठ करें। शनि मंत्र ॐ शं शनैश्चराय नमः या ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः मंत्र का जप करें। शनि के दुष्प्रभाव से व्यक्ति कैंसर, साइटिका, मूर्क्षा, ब्लड प्रेशर, कंपन, गठिया, उदर शूल आदि जटिल रोगों से पीड़ित हो जाता है।

शनि के पूजन में सरसों के तेल, काली उड़द दाल, तिल, काला वस्त्र, कील, गुड़, दक्षिणा आदि का विशेष स्थान है। इसके दुष्प्रभाव को रोकने के लिए नीलम रत्न या घोड़े की नाल का छल्ला मध्यमा अंगुली में धारण करना लाभप्रद माना जाता है। शनि पीड़ा से बचने के लिए हनुमान जी की साधना और शिव आराधना भी की जा सकती है। शनि यंत्र की घर मे स्थापना नही करनी चाहिए। मन्दिर मे पुजन करना ही श्रेष्ठ रहता है।

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