NAARAD MUNI
प्रलय के अनंतर
जब-जब सृष्टि की रचना होती है,
तब-तब विभिन्न मनवंतरों में धर्म, संस्कृति, ज्ञान, भक्ति की रक्षा के
लिए तथा अपने सदाचरण से सांसारिक प्राणियों को जीवनचर्या की उत्तम शिक्षा प्रदान
करने के लिए देवर्षियों-महर्षियों का आविर्भाव होता है। नारद को देवर्षि नारद या
नारद मुनि भी कहा जाता है। उन्हें ब्रह्मा का मानस पुत्र माना जाता है, जिनकी उत्पत्ति
भगवान ब्रह्मा के मस्तिष्क से हुई थी। इसलिए इन्हें ब्रह्मा से उत्पन्न हुए दस
प्रजापतियों में भी गिना जाता है।

वे सदैव भगवान की
भक्ति और उनके महात्म्य के विस्तार के लिए अपनी वीणा की मधुर धुन पर उनकी सगुण
लीलाओं का गान करते हुए तथा नारायण-नारायण शब्द का उच्चारण करते हुए जनकल्याण तथा
सृष्टि के कल्याण के लिए संसार में यत्र-तत्र सर्वत्र विचरण करते रहते हैं। साथ ही
वह भगवान का यशोगान करने वाले भक्तों की सदा सहायता करते हैं।
उनका मानना था कि
भगवद्भक्ति से अंतःकरण शुद्ध होता है। काम क्रोधाग्नि पास नहीं आते, मन को शांति मिलती
है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। राजा अंबरीष, सनत, सनंदन ध्रुव आदि भक्तों को उन्होंने ही भक्ति
मार्ग में प्रवृत्त किया, जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र तथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी उनकी
स्तुति करते हैं।
इनके विषय में नारद
संहिता, नारद
पंचतंत्र, ऋग्वेद, नारद पुराण, नारदीय धर्मशास्त्र तथा श्रीमदभागवद् में विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।
महर्षि व्यास जी जिन्होंने महाभारत की रचना की, उन्हें भी सच्चा सुख और शांति की प्राप्ति के
लिए भगवद्भक्ति का उपदेश दिया। नारद मुनि का किरदार ऐसा है, जिन्होंने घूम-घूमकर
समस्त विश्व में जनकल्याण का संदेश फैलाया। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद श्री
विष्णु के परम भक्त माने जाते हैं।
Post a Comment