Our Society And Money
जैसा कि आप सब जानते हो पिछ्ले समय
मे मुद्राओ का चालन नही था, तब भी समाज जीवन जीने के लिए विभिन्न प्रकार की
सामग्री का उत्पादन करता था जैसा कि हम सब करते है। ईश्वर की कृपा है, कि उसने किसी
को समान नही बनाया और सभी को विभिन्न कलाओ और गुण से युक्त किया है। सभी का
उत्पादन क्षेत्र अलग अलग होता है। सभी के पास अलग अलग तरह की गुण शक्तियाँ है। यही चीजे आगे चल कर हमारी सम्पति बन जाती है और हम सब एक दूसरे पर
निर्भर करते है। समाज इन सब व्यवस्था का ही नाम है ताकि सभी को समान रुप
से जीने और अपना जीवन संवारने का मौका मिले। पुराने समय मे लोग अपनी आवश्यकता की
पूर्ति के लिए वस्तुओ का आदान प्रदान करते थे। जैसा किसी के पास सब्जी है किसी के
पास गेहू तो एक दूसरे के साथ चीजो का बदलाव कर अपने जीवन का निर्वाह करते थे। समय के चलते यह चलन बदलता गया और चीजो के स्थान मुद्राओ ने ले लिया। यह
मुद्राए कभी सोने की, कभी चाँदी और कभी अन्य धातु की हुआ करती थी। चीजो की प्राप्ति के हमे मुद्राए देनी होती थी। समाज कभी भी सामान हो ही नही सकता है इसलिए कुछ लोग, कुछ
चीजो को अपने पास जमा कर लेते थे। जिस कारण उन चीजो की कमी हो जाती थी और मांग
बढती जाती थी और लोग उन चीजो के लिए तरशने लगते थे। इन चीजो की समयनुसार मांग बढी होने
के कारण, उन चीजो के अच्छे दाम मिल जाते थे। ठीक इसी प्रकार की स्थिति “सोने
चाँदी आदि” प्रदार्थ को लेकर आज भी है। आप एक बात ध्यान से सोचे
तो ज्ञात हो कि सोना आज भी धरती पर उतना ही है जितना पहले था, तो कीमत मे वृद्धि
का कारण क्या है? जमाखोरी हो सकता है, जिस कारण अमिर और अमिर होते जाते है और गरीब और गरीब, क्योकि सभी चीजो
की आवश्यकता सभी को होती है। किसी को कम और किसी को ज्यादा।
उपरोक्त बाते मेरे विचार मात्र
है जिसका किसी खास से कोई सम्बन्ध नही है। यदि किसी को आपति हो तो हमे खेद है। वैसे
भी हमारा कानून और समाज हम सभी को अपने विचार प्रस्तुत करने की इज्जत और स्वतंत्रंता
देता ही है। या इस पर भी किसी का अधिकार है?
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