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MAA DHOOMAVATI VIDYA

दस महाविद्या दस प्रकार की शक्तियों का प्रतीक हैं और अलग-अलग कार्यों हेतु शिव के वरदान स्वरूप इनकी उत्पत्ति हुई है। इन दसों की अराधना करने वाले साधक को भोग और मोक्ष दोनों मिलते हैं। दस महाविद्या की उत्पत्ति माता पार्वती से ही हुई है। जब देवाधिदेव महादेव ने मां पार्वती को पिता दक्ष के यज्ञ में जाने से मना कर दिया, तब अपनी अवहेलना होते देख मां पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया। शिव जी ने जब ध्यान से देखा तो पार्वती के दसों दिशाओं में विभिन्न दैवीय रूप स्तंभित हो गए। मां पार्वती ने शिव जी को अपने दस महाविद्या स्वरूप का दर्शन कराते हुए बताया कि, ‘स्वामी! आपके समक्ष जो कृष्ण-वर्ण देवी स्थित हैं। वह ‘काली’ हैं, आपके ऊपर महाकाल स्वरूपिणी जो नील-वर्ण देवी हैं, वह ‘तारा’ हैं, आपके पश्चिम में श्याम वर्ण और कटे हुए शीश को उठाए जो देवी खड़ी हैं वह ‘छिन्नमस्तिका’ हैं, आपके बाईं तरफ देवी ‘भुवनेश्वरी’ खड़ी हैं, आपके पृष्ठ पर शत्रु मर्दन करने वाली देवी ‘बगलामुखी’ खड़ी हैं, आपके अग्निकोण में विधवा रूपिणी ‘धूमावती’ खड़ी हैं, नैऋत्य कोण में देवी ‘त्रिपुरसुंदरी’ खड़ी हैं, वायव्य कोण पर ‘मातंगी’ खड़ी हैं, ईशान कोण पर देवी ‘षोड्शी’ खड़ी हैं तथा ‘भैरवी’ रूप होकर मैं स्वयं उपस्थित हूं।’ दस महाविद्याओं में अपने विशेष स्वरूप के कारण माता धूमावती अलग ही दृष्टिगोचर होती हैं, इन्हें अलक्ष्मी कहते हैं क्योंकि ये धनहीन हैं, पति रहित होने के कारण विधवा कही जाती हैं, भयानक आकृति वाली होती हुई भी अपने भक्तों के लिये सदा तत्पर रहती हैं। सभी महाविद्याओं में धूमावती का रूप अत्यंत विद्रुप है। इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के हृदय में भय-संचार के लिए अपना रखा है। इनका अंतर यद्यपि करुणापूर्ण है, किंतु बाह्य रूप अत्यंत ही विकट है। विधवा हैं, वर्ण विवर्ण है, यह मलिन वस्त्र धारण करती हैं। केश उन्मुक्त हैं। इनके रथ के ध्वज पर काक का चिन्ह है तथा इनके स्तन शिथिल और लटके हुए हैं। इन्होंने हाथ में शूर्प/छाज् धारण कर रखा है। इनकी नाक बडी एवं फैली है तथा नेत्र कुटिल हैं। यह शत्रुओं के भक्षण एवं उनके रक्त-पान के लिए सदैव लालायित रहती हैं। नैमिषारण्य काली पीठ में स्थित माता धूमावती का प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता धूमावती के दर्शन कर उन्हें धार्मिक मान्यता के अनुरूप काले तिल की पोटली व नारियल का गोला अर्पित कर मन्नत मांगते हैं। मां धूमावती का अष्टनामात्मक स्तोत्र पढ़ने से सर्वार्थ की सिद्धि होती है। अतः भक्तों को श्रद्धा-विश्वास से धूमावती स्तोत्र का पाठ कर भगवती कृपा प्राप्त करनी चाहिए। 

वास्तव में जीव को शिव तत्व से ज्ञान प्राप्त कराकर शिव में मिला देना और सभी कुछ प्रदान कर देना यही इनकी विशेषता है। इनकी साधना बिना योग्य गुरु के कभी नही करनी चाहिए। मोह का जो नाश कर दे वही धूमावती हैं। इनकी की साधना घर मे नही करनी चाहिए। 

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