Header Ads

ad

Durga Sahasranama



मां दुर्गा की आराधना भक्‍तों के लिए कल्‍याणमयी है। वे हर रूप में अपने भक्‍तों की रक्षा करती हैं। जग के कल्‍याण हेतु शास्‍त्रों में मां दुर्गा के कई स्‍तोत्रों की चर्चा भी की गई है, जिनको जपने से सारे कार्य सिद्ध होते हैं। दुख-बाधाएं दूर होती हैं और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये स्‍तोत्र जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सक्षम है। श्री दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्र का स्‍कंन्द पुराण वर्णन है। यह तंत्रों में सर्वोत्‍तम है, जिसका श्रवण करने से सभी प्रकार का संकट तत्काल दूर हो जाता है। 


कलियुग में दुर्गा नाम का पाठ ही अश्वमेघ यज्ञ के समान है। कहते हैं कि देव स्थान में हाथ जोड़कर जो लोग इसका श्रद्धा से पाठ करते हैं, उनके लिए स्वर्ग, मर्त्य और रसातल में कोई वस्तु दुर्लभ नहीं है। वे दीर्घायु, सुखी, विद्वान और चतुर वक्ता होते हैं। श्रद्धा-अश्रद्धा जैसे भी हो, दुर्गा नाम पाठ से अकाल मृत्यु दोष हो, तो वह अवश्य कट जाता है और ग्रह दोष भी शांत हो जाता है। देवराज इंद्र के समान प्रतापी शत्रु भी अवश्य वशीभूत हो जाता है। नदी प्रवाह में कमल पुष्प का उपहार चढ़ाकर प्रत्येक नाम से पूजन करके धन लाभ के लिए छह माह तक नित्य पाठ करना होता है। इससे छह महीने के भीतर आर्थिक स्थिति सुधरने लगती है। धन का अभाव नहीं रहता। 

बन्‍ध्या, काक बन्‍ध्या, मृत वत्सा स्त्रियों में दोष निवारण के लिए इस सहस्रनाम का जप करते हुए प्रयोग-विधान से अनुष्ठान करना होता है। इससे दोष कट जाता है। संतान की इच्छा रखने वालों को संतान की प्राप्ति होती है। इसके लिए सूर्यास्त के बाद शुद्ध घी का दीपक व सुगंधित धूप प्रज्ज्वलित कर पाठ करना होता है। इससे शीघ्र ही फल की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र के सौ बार पाठ से जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है। वैसे कलियुग में चार गुना पाठ करने का नियम है। कठिन रोग मुक्ति के लिए प्रत्येक नाम से हवन करके अग्नि के समीप पाठ करने से रोगी स्वस्थ हो जाता है। जवा, कमल, चंपक, नागकेशर, कदंब और कुसुम पुष्पों से तत्व मुद्रा से नदी के प्रवाह में पूजन करने का विधान है। पहले द्रव्य का नाम, फिर प्रणव मंत्र और नाम और अंत में नमः का उच्चारण किया जाता है। जल प्रवाह में पूजन कर पाठ करने से इच्छा सिद्धि तथा सब प्रकार की क्रिया सिद्धि, ज्ञान सिद्धि तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र के नियमित जप से जीवन में पूर्ण आनंद तथा शांति लाभ होता है। घर में सुख-समृद्धि आती है। 

स्‍कन्द पुराण में वर्णित दुर्गा सहस्‍त्रनाम स्तोत्र का जाप समस्त कष्टों से मुक्ति का सरल उपाय है। इसके जप से जीवन की सारी बाधाएं दूर होती हैं और घर में खुशियां आती हैं।

।। दुर्गासहस्रनामस्तोत्रम् ।।
।। श्रीः  श्री दुर्गायै नमः ।।  अथ श्री दुर्गासहस्रनामस्तोत्रम् ।।
नारद उवाच -
कुमार गुणगम्भीर देवसेनापते प्रभो । सर्वाभीष्टप्रदं पुंसां सर्वपापप्रणाशनम् ।। १।।
गुह्याद्गुह्यतरं स्तोत्रं भक्तिवर्धकमञ्जसा । मङ्गलं ग्रहपीडादिशान्तिदं वक्तुमर्हसि ।। २।।
स्कन्द उवाच -
शृणु नारद देवर्षे लोकानुग्रहकाम्यया । यत्पृच्छसि परं पुण्यं तत्ते वक्ष्यामि कौतुकात् ।। ३।।
माता मे लोकजननी हिमवन्नगसत्तमात् । मेनायां ब्रह्मवादिन्यां प्रादुर्भूता हरप्रिया ।। ४।।
महता तपसाऽऽराध्य शङ्करं लोकशङ्करम् । स्वमेव वल्लभं भेजे कलेव हि कलानिधिम् ।। ५।।
नगानामधिराजस्तु हिमवान् विरहातुरः । स्वसुतायाः परिक्षीणे वसिष्ठेन प्रबोधितः ।। ६।।
त्रिलोकजननी सेयं प्रसन्ना त्वयि पुण्यतः । प्रादुर्भूता सुतात्वेन तद्वियोगं शुभं त्यज ।। ७।।
बहुरूपा च दुर्गेयं बहुनाम्नी सनातनी । सनातनस्य जाया सा पुत्रीमोहं त्यजाधुना ।। ८।।
इति प्रबोधितः शैलः तां तुष्टाव परां शिवाम् । तदा प्रसन्ना सा दुर्गा पितरं प्राह नन्दिनी ।। ९।।
मत्प्रसादात्परं स्तोत्रं हृदये प्रतिभासताम् । तेन नाम्नां सहस्रेण पूजयन् काममाप्नुहि ।। १०।।
इत्युक्त्वान्तर्हितायां तु हृदये स्फुरितं तदा । नाम्नां सहस्रं दुर्गायाः पृच्छते मे यदुक्तवान् ।। ११।।
मङ्गलानां मङ्गलं तद् दुर्गानाम सहस्रकम् । सर्वाभीष्टप्रदां पुंसां ब्रवीम्यखिलकामदम् ।। १२।।
दुर्गादेवी समाख्याता हिमवानृषिरुच्यते । छन्दोनुष्टुप् जपो देव्याः प्रीतये क्रियते सदा ।। १३।। 

विनियोग हाथ मे जल लेकर कहे: 
ॐ अस्य श्रीदुर्गास्तोत्रमहामन्त्रस्य । हिमवान् ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । दुर्गाभगवती देवता । श्रीदुर्गाप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । श्री भगवत्यै दुर्गायै नमः । 
देवीध्यानम्
ॐ ह्रीं कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां,शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं,ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः।
श्री जयदुर्गायै नमः ।

ॐ शिवाऽथोमा रमा शक्तिरनन्ता निष्कलाऽमला । शान्ता माहेश्वरी नित्या शाश्वता परमा क्षमा ।। १।।
अचिन्त्या केवलानन्ता शिवात्मा परमात्मिका । अनादिरव्यया शुद्धा सर्वज्ञा सर्वगाऽचला ।। २।।
एकानेकविभागस्था मायातीता सुनिर्मला । महामाहेश्वरी सत्या महादेवी निरञ्जना ।। ३।।
काष्ठा सर्वान्तरस्थाऽपि चिच्छक्तिश्चात्रिलालिता । सर्वा सर्वात्मिका विश्वा ज्योतीरूपाऽक्षराऽमृता ।। ४।।
शान्ता प्रतिष्ठा सर्वेशा निवृत्तिरमृतप्रदा । व्योममूर्तिर्व्योमसंस्था व्योमधाराऽच्युताऽतुला ।। ५।।
अनादिनिधनाऽमोघा कारणात्मकलाकुला । ऋतुप्रथमजाऽनाभिरमृतात्मसमाश्रया ।। ६।।
प्राणेश्वरप्रिया नम्या महामहिषघातिनी । प्राणेश्वरी प्राणरूपा प्रधानपुरुषेश्वरी ।। ७।।
सर्वशक्तिकलाऽकामा महिषेष्टविनाशिनी । सर्वकार्यनियन्त्री च सर्वभूतेश्वरेश्वरी ।। ८।।
अङ्गदादिधरा चैव तथा मुकुटधारिणी । सनातनी महानन्दाऽऽकाशयोनिस्तथेच्यते ।। ९।।
चित्प्रकाशस्वरूपा च महायोगेश्वरेश्वरी । महामाया सदुष्पारा मूलप्रकृतिरीशिका ।। १०।।
संसारयोनिः सकला सर्वशक्तिसमुद्भवा । संसारपारा दुर्वारा दुर्निरीक्षा दुरासदा ।। ११।।
प्राणशक्तिश्च सेव्या च योगिनी परमाकला । महाविभूतिर्दुर्दर्शा मूलप्रकृतिसम्भवा ।। १२।।
अनाद्यनन्तविभवा परार्था पुरुषारणिः । सर्गस्थित्यन्तकृच्चैव सुदुर्वाच्या दुरत्यया ।। १३।।
शब्दगम्या शब्दमाया शब्दाख्यानन्दविग्रहा । प्रधानपुरुषातीता प्रधानपुरुषात्मिका ।। १४।।
पुराणी चिन्मया पुंसामिष्टदा पुष्टिरूपिणी । पूतान्तरस्था कूटस्था महापुरुषसंज्ञिता ।। १५।।
जन्ममृत्युजरातीता सर्वशक्तिस्वरूपिणी । वाञ्छाप्रदाऽनवच्छिन्नप्रधानानुप्रवेशिनी ।। १६।।
क्षेत्रज्ञाऽचिन्त्यशक्तिस्तु प्रोच्यतेऽव्यक्तलक्षणा । मलापवर्जिताऽऽनादिमाया त्रितयतत्त्विका ।। १७।।
प्रीतिश्च प्रकृतिश्चैव गुहावासा तथोच्यते । महामाया नगोत्पन्ना तामसी च ध्रुवा तथा ।। १८।।
व्यक्ताऽव्यक्तात्मिका कृष्णा रक्ता शुक्ला ह्यकारणा ।प्रोच्यते कार्यजननी नित्यप्रसवधर्मिणी ।। १९।।
सर्गप्रलयमुक्ता च सृष्टिस्थित्यन्तधर्मिणी । ब्रह्मगर्भा चतुर्विंशस्वरूपा पद्मवासिनी ।। २०।।
अच्युताह्लादिका विद्युद्ब्रह्मयोनिर्महालया । महालक्ष्मी समुद्भावभावितात्मामहेश्वरी ।। २१।।
महाविमानमध्यस्था महानिद्रा सकौतुका । सर्वार्थधारिणी सूक्ष्मा ह्यविद्धा परमार्थदा ।। २२।।
अनन्तरूपाऽनन्तार्था तथा पुरुषमोहिनी । अनेकानेकहस्ता च कालत्रयविवर्जिता ।। २३।।
ब्रह्मजन्मा हरप्रीता मतिर्ब्रह्मशिवात्मिका । ब्रह्मेशविष्णुसम्पूज्या ब्रह्माख्या ब्रह्मसंज्ञिता ।। २४।।
व्यक्ता प्रथमजा ब्राह्मी महारात्रीः प्रकीर्तिता । ज्ञानस्वरूपा वैराग्यरूपा ह्यैश्वर्यरूपिणी ।। २५।।
धर्मात्मिका ब्रह्ममूर्तिः प्रतिश्रुतपुमर्थिका । अपांयोनिः स्वयम्भूता मानसी तत्त्वसम्भवा ।। २६।।
ईश्वरस्य प्रिया प्रोक्ता शङ्करार्धशरीरिणी । भवानी चैव रुद्राणी महालक्ष्मीस्तथाऽम्बिका ।। २७।।
महेश्वरसमुत्पन्ना भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी । सर्वेश्वरी सर्ववन्द्या नित्यमुक्ता सुमानसा ।। २८।।
महेन्द्रोपेन्द्रनमिता शाङ्करीशानुवर्तिनी । ईश्वरार्धासनगता माहेश्वरपतिव्रता ।। २९।।
संसारशोषिणी चैव पार्वती हिमवत्सुता । परमानन्ददात्री च गुणाग्र्या योगदा तथा ।। ३०।।
ज्ञानमूर्तिश्च सावित्री लक्ष्मीः श्रीः कमला तथा । अनन्तगुणगम्भीरा ह्युरोनीलमणिप्रभा ।। ३१।।
सरोजनिलया गङ्गा योगिध्येयाऽसुरार्दिनी । सरस्वती सर्वविद्या जगज्ज्येष्ठा सुमङ्गला ।। ३२।।
वाग्देवी वरदा वर्या कीर्तिः सर्वार्थसाधिका । वागीश्वरी ब्रह्मविद्या महाविद्या सुशोभना ।। ३३।।
ग्राह्यविद्या वेदविद्या धर्मविद्याऽऽत्मभाविता । स्वाहा विश्वम्भरा सिद्धिः साध्या मेधा धृतिः कृतिः ।। ३४।।
सुनीतिः संकृतिश्चैव कीर्तिता नरवाहिनी । पूजाविभाविनी सौम्या भोग्यभाग् भोगदायिनी ।। ३५।।
शोभावती शाङ्करी च लोला मालाविभूषिता । परमेष्ठिप्रिया चैव त्रिलोकीसुन्दरी माता ।। ३६।।
नन्दा सन्ध्या कामधात्री महादेवी सुसात्त्विका । महामहिषदर्पघ्नी पद्ममालाऽघहारिणी ।। ३७।।
विचित्रमुकुटा रामा कामदाता प्रकीर्तिता । पिताम्बरधरा दिव्यविभूषण विभूषिता ।। ३८।।
दिव्याख्या सोमवदना जगत्संसृष्टिवर्जिता । निर्यन्त्रा यन्त्रवाहस्था नन्दिनी रुद्रकालिका ।। ३९।।
आदित्यवर्णा कौमारी मयूरवरवाहिनी । पद्मासनगता गौरी महाकाली सुरार्चिता ।। ४०।।
अदितिर्नियता रौद्री पद्मगर्भा विवाहना । विरूपाक्षा केशिवाहा गुहापुरनिवासिनी ।। ४१।।
महाफलाऽनवद्याङ्गी कामरूपा सरिद्वरा । भास्वद्रूपा मुक्तिदात्री प्रणतक्लेशभञ्जना ।। ४२।।
कौशिकी गोमिनी रात्रिस्त्रिदशारिविनाशिनी । बहुरूपा सुरूपा च विरूपा रूपवर्जिता ।। ४३।।
भक्तार्तिशमना भव्या भवभावविनाशिनी । सर्वज्ञानपरीताङ्गी सर्वासुरविमर्दिका ।। ४४।।
पिकस्वनी सामगीता भवाङ्कनिलया प्रिया । दीक्षा विद्याधरी दीप्ता महेन्द्राहितपातिनी ।। ४५।।
सर्वदेवमया दक्षा समुद्रान्तरवासिनी । अकलङ्का निराधारा नित्यसिद्धा निरामया ।। ४६।।
कामधेनुबृहद्गर्भा धीमती मौननाशिनी । निःसङ्कल्पा निरातङ्का विनया विनयप्रदा ।। ४७।।
ज्वालामाला सहस्राढ्या देवदेवी मनोमया । सुभगा सुविशुद्धा च वसुदेवसमुद्भवा ।। ४८।।
महेन्द्रोपेन्द्रभगिनी भक्तिगम्या परावरा । ज्ञानज्ञेया परातीता वेदान्तविषया मतिः ।। ४९।।
दक्षिणा दाहिका दह्या सर्वभूतहृदिस्थिता । योगमाया विभागज्ञा महामोहा गरीयसी ।। ५०।।
सन्ध्या सर्वसमुद्भूता ब्रह्मवृक्षाश्रियाऽदितिः । बीजाङ्कुरसमुद्भूता महाशक्तिर्महामतिः ।। ५१।।
ख्यातिः प्रज्ञावती संज्ञा महाभोगीन्द्रशायिनी । हींकृतिः शङ्करी शान्तिर्गन्धर्वगणसेविता ।। ५२।।
वैश्वानरी महाशूला देवसेना भवप्रिया । महारात्री परानन्दा शची दुःस्वप्ननाशिनी ।। ५३।।
ईड्या जया जगद्धात्री दुर्विज्ञेया सुरूपिणी । गुहाम्बिका गणोत्पन्ना महापीठा मरुत्सुता ।। ५४।।
हव्यवाहा भवानन्दा जगद्योनिः प्रकीर्तिता । जगन्माता जगन्मृत्युर्जरातीता च बुद्धिदा ।। ५५।।
सिद्धिदात्री रत्नगर्भा रत्नगर्भाश्रया परा । दैत्यहन्त्री स्वेष्टदात्री मङ्गलैकसुविग्रहा ।। ५६।।
पुरुषान्तर्गता चैव समाधिस्था तपस्विनी । दिविस्थिता त्रिणेत्रा च सर्वेन्द्रियमनाधृतिः ।। ५७।।
सर्वभूतहृदिस्था च तथा संसारतारिणी । वेद्या ब्रह्मविवेद्या च महालीला प्रकीर्तिता ।। ५८।।
ब्राह्मणिबृहती ब्राह्मी ब्रह्मभूताऽघहारिणी । हिरण्मयी महादात्री संसारपरिवर्तिका ।। ५९।।
सुमालिनी सुरूपा च भास्विनी धारिणी तथा । उन्मूलिनी सर्वसभा सर्वप्रत्ययसाक्षिणी ।। ६०।।
सुसौम्या चन्द्रवदना ताण्डवासक्तमानसा । सत्त्वशुद्धिकरी शुद्धा मलत्रयविनाशिनी ।। ६१।।
जगत्त्त्रयी जगन्मूर्तिस्त्रिमूर्तिरमृताश्रया । विमानस्था विशोका च शोकनाशिन्यनाहता ।। ६२।।
हेमकुण्डलिनी काली पद्मवासा सनातनी । सदाकीर्तिः सर्वभूतशया देवी सतांप्रिया ।। ६३।।
ब्रह्ममूर्तिकला चैव कृत्तिका कञ्जमालिनी । व्योमकेशा क्रियाशक्तिरिच्छाशक्तिः परागतिः ।। ६४।।
क्षोभिका खण्डिकाभेद्या भेदाभेदविवर्जिता । अभिन्ना भिन्नसंस्थाना वशिनी वंशधारिणी ।। ६५।।
गुह्यशक्तिर्गुह्यतत्त्वा सर्वदा सर्वतोमुखी । भगिनी च निराधारा निराहारा प्रकीर्तिता ।। ६६।।
निरङ्कुशपदोद्भूता चक्रहस्ता विशोधिका । स्रग्विणी पद्मसम्भेदकारिणी परिकीर्तिता ।। ६७।।
परावरविधानज्ञा महापुरुषपूर्वजा । परावरज्ञा विद्या च विद्युज्जिह्वा जिताश्रया ।। ६८।।
विद्यामयी सहस्राक्षी सहस्रवदनात्मजा । सहस्ररश्मिःसत्वस्था महेश्वरपदाश्रया ।। ६९।।
ज्वालिनी सन्मया व्याप्ता चिन्मया पद्मभेदिका । महाश्रया महामन्त्रा महादेवमनोरमा ।। ७०।।
व्योमलक्ष्मीः सिंहरथा चेकितानाऽमितप्रभा । विश्वेश्वरी भगवती सकला कालहारिणी ।। ७१।।
सर्ववेद्या सर्वभद्रा गुह्या दूढा गुहारणी । प्रलया योगधात्री च गङ्गा विश्वेश्वरी तथा ।। ७२।।
कामदा कनका कान्ता कञ्जगर्भप्रभा तथा । पुण्यदा कालकेशा च भोक्त्त्री पुष्करिणी तथा ।। ७३।।
सुरेश्वरी भूतिदात्री भूतिभूषा प्रकीर्तिता । पञ्चब्रह्मसमुत्पन्ना परमार्थाऽर्थविग्रहा ।। ७४।।
वर्णोदया भानुमूर्तिर्वाग्विज्ञेया मनोजवा । मनोहरा महोरस्का तामसी वेदरूपिणी ।। ७५।।
वेदशक्तिर्वेदमाता वेदविद्याप्रकाशिनी । योगेश्वरेश्वरी माया महाशक्तिर्महामयी ।। ७६।।
विश्वान्तःस्था वियन्मूर्तिर्भार्गवी सुरसुन्दरी । सुरभिर्नन्दिनी विद्या नन्दगोपतनूद्भवा ।। ७७।।
भारती परमानन्दा परावरविभेदिका । सर्वप्रहरणोपेता काम्या कामेश्वरेश्वरी ।। ७८।।
अनन्तानन्दविभवा हृल्लेखा कनकप्रभा । कूष्माण्डा धनरत्नाढ्या सुगन्धा गन्धदायिनी ।। ७९।।
त्रिविक्रमपदोद्भूता चतुरास्या शिवोदया । सुदुर्लभा धनाध्यक्षा धन्या पिङ्गललोचना ।। ८०।।
शान्ता प्रभास्वरूपा च पङ्कजायतलोचना । इन्द्राक्षी हृदयान्तःस्था शिवा माता च सत्क्रिया ।। ८१।।
गिरिजा च सुगूढा च नित्यपुष्टा निरन्तरा । दुर्गा कात्यायनी चण्डी चन्द्रिका कान्तविग्रहा ।। ८२।।
हिरण्यवर्णा जगती जगद्यन्त्रप्रवर्तिका । मन्दराद्रिनिवासा च शारदा स्वर्णमालिनी ।। ८३।।
रत्नमाला रत्नगर्भा व्युष्टिर्विश्वप्रमाथिनी । पद्मानन्दा पद्मनिभा नित्यपुष्टा कृतोद्भवा ।। ८४।।
नारायणी दुष्टशिक्षा सूर्यमाता वृषप्रिया । महेन्द्रभगिनी सत्या सत्यभाषा सुकोमला ।। ८५।।
वामा च पञ्चतपसां वरदात्री प्रकीर्तिता । वाच्यवर्णेश्वरी विद्या दुर्जया दुरतिक्रमा ।। ८६।।
कालरात्रिर्महावेगा वीरभद्रप्रिया हिता । भद्रकाली जगन्माता भक्तानां भद्रदायिनी ।। ८७।।
कराला पिङ्गलाकारा कामभेत्त्री महामनाः । यशस्विनी यशोदा च षडध्वपरिवर्तिका ।। ८८।।
शङ्खिनी पद्मिनी संख्या सांख्ययोगप्रवर्तिका । चैत्रादिर्वत्सरारूढा जगत्सम्पूरणीन्द्रजा ।। ८९।।
शुम्भघ्नी खेचराराध्या कम्बुग्रीवा बलीडिता । खगारूढा महैश्वर्या सुपद्मनिलया तथा ।। ९०।।
विरक्ता गरुडस्था च जगतीहृद्गुहाश्रया । शुम्भादिमथना भक्तहृद्गह्वरनिवासिनी ।। ९१।।
जगत्त्त्रयारणी सिद्धसङ्कल्पा कामदा तथा । सर्वविज्ञानदात्री चानल्पकल्मषहारिणी ।। ९२।।
सकलोपनिषद्गम्या दुष्टदुष्प्रेक्ष्यसत्तमा । सद्वृता लोकसंव्याप्ता तुष्टिः पुष्टिः क्रियावती ।। ९३।।
विश्वामरेश्वरी चैव भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी । शिवाधृता लोहिताक्षी सर्पमालाविभूषणा ।। ९४।।
निरानन्दा त्रिशूलासिधनुर्बाणादिधारिणी । अशेषध्येयमूर्तिश्च देवतानां च देवता ।। ९५।।
वराम्बिका गिरेः पुत्री निशुम्भविनिपातिनी । सुवर्णा स्वर्णलसिताऽनन्तवर्णा सदाधृता ।। ९६।।
शाङ्करी शान्तहृदया अहोरात्रविधायिका । विश्वगोप्त्री गूढरूपा गुणपूर्णा च गार्ग्यजा ।। ९७।।
गौरी शाकम्भरी सत्यसन्धा सन्ध्यात्रयीधृता । सर्वपापविनिर्मुक्ता सर्वबन्धविवर्जिता ।। ९८।।
सांख्ययोगसमाख्याता अप्रमेया मुनीडिता । विशुद्धसुकुलोद्भूता बिन्दुनादसमादृता ।। ९९।।
शम्भुवामाङ्कगा चैव शशितुल्यनिभानना । वनमालाविराजन्ती अनन्तशयनादृता ।। १००।।
नरनारायणोद्भूता नारसिंही प्रकीर्तिता । दैत्यप्रमाथिनी शङ्खचक्रपद्मगदाधरा ।। १०१।।
सङ्कर्षणसमुत्पन्ना अम्बिका सज्जनाश्रया । सुवृता सुन्दरी चैव धर्मकामार्थदायिनी ।। १०२।।
मोक्षदा भक्तिनिलया पुराणपुरुषादृता । महाविभूतिदाऽऽराध्या सरोजनिलयाऽसमा ।। १०३।।
अष्टादशभुजाऽनादिर्नीलोत्पलदलाक्षिणी । सर्वशक्तिसमारूढा धर्माधर्मविवर्जिता ।। १०४।।
वैराग्यज्ञाननिरता निरालोका निरिन्द्रिया । विचित्रगहनाधारा शाश्वतस्थानवासिनी ।। १०५।।
ज्ञानेश्वरी पीतचेला वेदवेदाङ्गपारगा । मनस्विनी मन्युमाता महामन्युसमुद्भवा ।। १०६।।
अमन्युरमृतास्वादा पुरन्दरपरिष्टुता । अशोच्या भिन्नविषया हिरण्यरजतप्रिया ।। १०७।।
हिरण्यजननी भीमा हेमाभरणभूषिता । विभ्राजमाना दुर्ज्ञेया ज्योतिष्टोमफलप्रदा ।। १०८।।
महानिद्रासमुत्पत्तिरनिद्रा सत्यदेवता । दीर्घा ककुद्मिनी पिङ्गजटाधारा मनोज्ञधीः ।। १०९।।
महाश्रया रमोत्पन्ना तमःपारे प्रतिष्ठिता । त्रितत्त्वमाता त्रिविधा सुसूक्ष्मा पद्मसंश्रया ।। ११०।।
शान्त्यतीतकलाऽतीतविकारा श्वेतचेलिका । चित्रमाया शिवज्ञानस्वरूपा दैत्यमाथिनी ।। १११।।
काश्यपी कालसर्पाभवेणिका शास्त्रयोनिका । त्रयीमूर्तिः क्रियामूर्तिश्चतुर्वर्गा च दर्शिनी ।। ११२।।
नारायणी नरोत्पन्ना कौमुदी कान्तिधारिणी । कौशिकी ललिता लीला परावरविभाविनी ।। ११३।।
वरेण्याऽद्भुतमहात्म्या वडवा वामलोचना । सुभद्रा चेतनाराध्या शान्तिदा शान्तिवर्धिनी ।। ११४।।
जयादिशक्तिजननी शक्तिचक्रप्रवर्तिका । त्रिशक्तिजननी जन्या षट्सूत्रपरिवर्णिता ।। ११५।।
सुधौतकर्मणाऽऽराध्या युगान्तदहनात्मिका । सङ्कर्षिणी जगद्धात्री कामयोनिः किरीटिनी ।। ११६।।
ऐन्द्री त्रैलोक्यनमिता वैष्णवी परमेश्वरी । प्रद्युम्नजननी बिम्बसमोष्ठी पद्मलोचना ।। ११७।।
मदोत्कटा हंसगतिः प्रचण्डा चण्डविक्रमा । वृषाधीशा परात्मा च विन्ध्या पर्वतवासिनी ।। ११८।।
हिमवन्मेरुनिलया कैलासपुरवासिनी । चाणूरहन्त्री नीतिज्ञा कामरूपा त्रयीतनुः ।। ११९।।
व्रतस्नाता धर्मशीला सिंहासननिवासिनी । वीरभद्रादृता वीरा महाकालसमुद्भवा ।। १२०।।
विद्याधरार्चिता सिद्धसाध्याराधितपादुका । श्रद्धात्मिका पावनी च मोहिनी अचलात्मिका ।। १२१।।
महाद्भुता वारिजाक्षी सिंहवाहनगामिनी । मनीषिणी सुधावाणी वीणावादनतत्परा ।। १२२।।
श्वेतवाहनिषेव्या च लसन्मतिररुन्धती । हिरण्याक्षी तथा चैव महानन्दप्रदायिनी ।। १२३।।
वसुप्रभा सुमाल्याप्तकन्धरा पङ्कजानना । परावरा वरारोहा सहस्रनयनार्चिता ।। १२४।।
श्रीरूपा श्रीमती श्रेष्ठा शिवनाम्नी शिवप्रिया । श्रीप्रदा श्रितकल्याणा श्रीधरार्धशरीरिणी ।। १२५।।
श्रीकलाऽनन्तदृष्टिश्च ह्यक्षुद्राऽऽरातिसूदनी । रक्तबीजनिहन्त्री च दैत्यसङ्गविमर्दिनी ।। १२६।।
सिंहारूढा सिंहिकास्या दैत्यशोणितपायिनी । सुकीर्तिसहिताच्छिन्नसंशया रसवेदिनी ।। १२७।।
गुणाभिरामा नागारिवाहना निर्जरार्चिता । नित्योदिता स्वयंज्योतिः स्वर्णकाया प्रकीर्तिता ।। १२८।।
वज्रदण्डाङ्किता चैव तथाऽमृतसञ्जीविनी । वज्रच्छन्ना देवदेवी वरवज्रस्वविग्रहा ।। १२९।।
माङ्गल्या मङ्गलात्मा च मालिनी माल्यधारिणी । गन्धर्वी तरुणी चान्द्री खड्गायुधधरा तथा ।। १३०।।
सौदामिनी प्रजानन्दा तथा प्रोक्ता भृगूद्भवा । एकानङ्गा च शास्त्रार्थकुशला धर्मचारिणी ।। १३१।।
धर्मसर्वस्ववाहा च धर्माधर्मविनिश्चया । धर्मशक्तिर्धर्ममया धार्मिकानां शिवप्रदा ।। १३२।।
विधर्मा विश्वधर्मज्ञा धर्मार्थान्तरविग्रहा । धर्मवर्ष्मा धर्मपूर्वा धर्मपारङ्गतान्तरा ।। १३३।।
धर्मोपदेष्ट्री धर्मात्मा धर्मगम्या धराधरा । कपालिनी शाकलिनी कलाकलितविग्रहा ।। १३४।।
सर्वशक्तिविमुक्ता च कर्णिकारधराऽक्षरा। कंसप्राणहरा चैव युगधर्मधरा तथा ।। १३५।।
युगप्रवर्तिका प्रोक्ता त्रिसन्ध्या ध्येयविग्रहा । स्वर्गापवर्गदात्री च तथा प्रत्यक्षदेवता ।। १३६।।
आदित्या दिव्यगन्धा च दिवाकरनिभप्रभा । पद्मासनगता प्रोक्ता खड्गबाणशरासना ।। १३७।।
शिष्टा विशिष्टा शिष्टेष्टा शिष्टश्रेष्ठप्रपूजिता । शतरूपा शतावर्ता वितता रासमोदिनी ।। १३८।।
सूर्येन्दुनेत्रा प्रद्युम्नजननी सुष्ठुमायिनी । सूर्यान्तरस्थिता चैव सत्प्रतिष्ठतविग्रहा ।। १३९।।
निवृत्ता प्रोच्यते ज्ञानपारगा पर्वतात्मजा । कात्यायनी चण्डिका च चण्डी हैमवती तथा ।। १४०।।
दाक्षायणी सती चैव भवानी सर्वमङ्गला । धूम्रलोचनहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ।। १४१।।
योगनिद्रा योगभद्रा समुद्रतनया तथा । देवप्रियङ्करी शुद्धा भक्तभक्तिप्रवर्धिनी ।। १४२।।
त्रिणेत्रा चन्द्रमुकुटा प्रमथार्चितपादुका । अर्जुनाभीष्टदात्री च पाण्डवप्रियकारिणी ।। १४३।।
कुमारलालनासक्ता हरबाहूपधानिका । विघ्नेशजननी भक्तविघ्नस्तोमप्रहारिणी ।। १४४।।
सुस्मितेन्दुमुखी नम्या जयाप्रियसखी तथा । अनादिनिधना प्रेष्ठा चित्रमाल्यानुलेपना ।। १४५।।
कोटिचन्द्रप्रतीकाशा कूटजालप्रमाथिनी । कृत्याप्रहारिणी चैव मारणोच्चाटनी तथा ।। १४६।।
सुरासुरप्रवन्द्याङ्घ्रिर्मोहघ्नी ज्ञानदायिनी । षड्वैरिनिग्रहकरी वैरिविद्राविणी तथा ।। १४७।।
भूतसेव्या भूतदात्री भूतपीडाविमर्दिका । नारदस्तुतचारित्रा वरदेशा वरप्रदा ।। १४८।।
वामदेवस्तुता चैव कामदा सोमशेखरा । दिक्पालसेविता भव्या भामिनी भावदायिनी ।। १४९।।
स्त्रीसौभाग्यप्रदात्री च भोगदा रोगनाशिनी । व्योमगा भूमिगा चैव मुनिपूज्यपदाम्बुजा ।
वनदुर्गा च दुर्बोधा महादुर्गा प्रकीर्तिता ।। १५०।।
फलश्रुतिः
इतीदं कीर्तिदं भद्र दुर्गानामसहस्रकम् । त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत् ।। १।।
ग्रहभूतपिशाचादिपीडा नश्यत्यसंशयम् । बालग्रहादिपीडायाः शान्तिर्भवति कीर्तनात् ।। २।।
मारिकादिमहारोगे पठतां सौख्यदं नृणाम् । व्यवहारे च जयदं शत्रुबाधानिवारकम् ।। ३।।
दम्पत्योः कलहे प्राप्ते मिथः प्रेमाभिवर्धकम् । आयुरारोग्यदं पुंसां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ।। ४।।
विद्याभिवर्धकं नित्यं पठतामर्थसाधकम् । शुभदं शुभकार्येषु पठतां शृणुतामपि ।। ५।।
यः पूजयति दुर्गां तां दुर्गानामसहस्रकैः । पुष्पैः कुङ्कुमसम्मिश्रैः स तु यत्काङ्क्षते हृदि ।। ६।।
तत्सर्वं समवाप्नोति नास्ति नास्त्यत्र संशयः । यन्मुखे ध्रियते नित्यं दुर्गानामसहस्रकम् ।। ७।।
किं तस्येतरमन्त्रौघैः कार्यं धन्यतमस्य हि । दुर्गानामसहस्रस्य पुस्तकं यद्गृहे भवेत् ।। ८।।
न तत्र ग्रहभूतादिबाधा स्यान्मङ्गलास्पदे । तद्गृहं पुण्यदं क्षेत्रं देवीसान्निध्यकारकम् ।। ९।।
एतस्य स्तोत्रमुख्यस्य पाठकः श्रेष्ठमन्त्रवित् । देवतायाः प्रसादेन सर्वपूज्यः सुखी भवेत् ।। १०।।
इत्येतन्नगराजेन कीर्तितं मुनिसत्तम । गुह्याद्गुह्यतरं स्तोत्रं त्वयि स्नेहात् प्रकीर्तितम् ।। ११।।
भक्ताय श्रद्धधानाय केवलं कीर्त्यतामिदम् । हृदि धारय नित्यं त्वं देव्यनुग्रहसाधकम् ।। १२।। ।।
इति श्रीस्कान्दपुराणे स्कन्दनारदसंवादे दुर्गासहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

No comments

अगर आप अपनी समस्या की शीघ्र समाधान चाहते हैं तो ईमेल ही करें!!