Bagala Mukhi Sadhana for Enemy
माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश, वाक सिद्धि, वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है। सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है इनकी उपासना से भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। यह मां बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। बगलामुखी का मंत्र साधकों की हर मनोकामनां पूर्णं करने वाला है। देवी के साधक को कभी भी धन का अभाव नहीं होता। भगवती की कृपा से वह सभी प्रकार की धन सम्पत्ति का स्वामी बन जाता है। साधना में पीत वस्त्र धारण करना चाहिए एवं पीत वस्त्र का ही आसन लेना चाहिए। आराधना में पूजा की सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए। पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है। आराधना खुले आकश के नीचे नहीं करनी चाहिए। एकांत कक्ष में पुजा पाठ करना लाभकारी रहता हैं। साधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। डरपोक लोगों को साधना नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए। वैसे तो एक लक्ष मंत्र जप करने से देवी की सिद्धि होती हैं और या दस हजार मंत्र जप से एक कार्य सिद्ध प्राप्त होती हैं लेकिन कार्य विशेष के अनुसार सवा लाख मंत्रों को 9, 11, 14, 18, 21, 27, 31, 36, 41 दिनों के अन्दर निश्चित संख्या में जप पूर्ण हो जाना चाहिए एवं मंत्र जप उपोरांत हवन, तर्पण, मार्जन, कन्या भोजन से सिद्धि प्राप्त होती हैं।
पूजन सामग्री:-
पीले अक्षत या साबुत चावल, कनेर चमपा गेन्दा आदि के पीले पुष्प, चौकी (A Piece of Wood), नैवैध (पीले रंग दुध की बनी मिठाई), पीला आसन, पीले वस्त्र या चुन्नी माता के लिए, चम्पा या पीले रंग का इत्र, जल पात्र में जल, चम्मच, अन्य पात्र, दो स्टील की थाली, धुपबत्ती या अगरबत्ती, एक साफ कपडा जरुरत पडने पर अपने हाथ पौछने के लिए, पीला या श्वेत चन्दन, कुम्कुम या रोली, कलावा या मोली, गंगाजल, पंचामृत (दुध, दही, घी, शहद और शक्कर बराबर मिलाकर), पीली सरसों या चावल, माता का श्रृंगार, धुप या अगरबत्ती, दीपक दो (तेल घी या तिल के तेल का), हल्दी, पंचमेवा, पीले लड्डू गणपति के लिए, गंगाजल, साबुत पान डंडी तोड देनी चाहिए ( इसमें इलायची, लौंग, सुपारी डालकर मोडकर फिर उपर लोंग लगा दें।), ग्यारह रुपये (10 और 1 का सिक्का), गौमुखी। पीला आसन, पीले वस्त्र साधक के लिए, बगलामुखी यंत्र, हल्दी की माला, कमरे में पीले रंग की लाईट।
विधि: पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री अपने पास रख लें।
बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से जल छिडके।
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
निम्न मंत्र पढ़ते हुए तीन बार आचमन (चम्मच से सीधे हाथ मे जल लेकर पी जाए) करें |
1. ॐ केशवाय नम:। 2. ॐ नारायणाय नम:। 3. ॐ माधवाय नम:
फिर यह मंत्र बोलते हुए दोनों हाथों को अपने लेफ्ट साईड में धो लें ॐ ऋषिकेशाय नम:
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(आसन के नीचे हल्दी से एक त्रिकोण बनाए और कुम्कुम चावल से पुजन करें)
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
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इसके बाद पीली सरसों या पानी या चावल लेकर द्स दिशा में छिडक हुए मंत्र पढे।
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमि संस्थिताः। ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञा॥
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम। सर्वेषाम विरोधेन पूजाकर्म समारभेत॥
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गंध, पुष्प, आभूषण, देवी मां के सामने रखें। दीपक देवी के दाएं ओर व धूपबत्ती बाएं ओर रखनी चाहिए। नैवेद्य (Sweets, Dry Fruits ) भी देवता के दायीं ओर ही रखें।
इसके पश्चात हल्दी बिछाकर उस पर दीपक प्रज्जवलित करें और दीपक को नमस्कार कर ले।
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संकल्प:- अब दाहिने हाथ मे जल, अक्षत, पुष्प आदि लेकर संकल्प करें।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य……(अपने गोत्र का नाम) गोत्रोत्पन्नोहं ……(नाम) मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्ट निर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ: गणेशादयानां पूजनं करिष्ये। जल और सामग्री को छोड़ दे। देवी के स्थान पर छोड दे।
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गणपति का पूजन करें।
पाशांकुशौ मोदकम एकदन्तं, करैर्दधानं कनक आसनस्थं।
हरिद्रा खण्ड-प्रतिमं त्रिनेत्रं, पीत आंशुकं रात्रि गणेश मीडे॥
साधना को निर्विघ्न करने की प्रार्थना करें और आशीर्वाद मागें।
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ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
थोडा जल सीधे हाथ मे लेकर गुरु मंत्र जप गुरु जी को समर्पित कर दिजिए
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ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतम नमः। ॐ श्री गुरुवे नमः। ॐ लक्ष्मी नारायणाभ्यां नमः।
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः। ॐ वाणी हिरण्य गर्भाभ्यां नमः। ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः। ॐ वाणी हिरण्य गर्भाभ्यां नमः। ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
ॐ मातापितृचरण कमलेभ्यो नमः। ॐ कुलदेव्य नमः। ॐ इष्ट देवताभ्यो नमः।
ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः। ॐ स्थान देवताभ्यो नमः। ॐ वास्तु देवताभ्यो नमः
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव्यभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो ऋषिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
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ऐं ह्रीं ऐं का मुख शौधन के लिए दस बार जप करें।
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अपने हाथ की सभी उंगली इकठ्ठी करके अपने चौटी पर लगाए और ॐ हूम क्ष्रौं पढे। दस बार करें।
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देवी का ध्यान करें।
मध्ये सुधाब्धि मणि मण्डप रत्न वेद्यां, सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम,
पीताम्बरा भरण माल्य विभूषिताड्गीं, देवीं भजामि धृत मुद्गर वैरिजिह्वाम,
जिह्वाग्र मादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम,
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि॥
ध्यान:- भगवती बगला सुधा-समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मण्डप में रत्नवेदी पर रत्नमय सिंहासन पर विराजती हैं। पीतवर्णा होने के कारण ये पीत रंग के ही वस्त्र, आभूषण व माला धारण किये हुए हैं। इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर है। व्यष्टि रूप में शत्रुओं का नाश करने वाली और समष्टि रूप में परम ईश्वर की सहांर इच्छा की अधिस्ठात्री शक्ति बगलामुखी है।
आवाहनम्
ॐ बगलामुखी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
आसन - ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। आसनं समर्पयामि।
(आसन के रूप में पीला पुष्प अर्पण करें)
पाद्य – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
(दो बार जल चढ़ावें)
अर्घ्य – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। अर्घ्यं समर्पयामि।
(चन्दन युक्त जल से दो बार अर्घ्य देवें)
आचमन - ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। आचमनीयं जलं समर्पयामि।
(तीन चम्मच सुगन्धित जल चढ़ावें)
गंगाजलस्नान – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। स्नानार्थं गंगोदक जलं समर्पयामि।
स्नानान्ते आचमनं समर्पयामि।
वस्त्रोपवस्त्र – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि।
(पीले वस्त्र या थोडा सा कलावा अर्पित करें)
गन्ध – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। गन्धं समर्पयामि।
(श्वेत चन्दन अर्पित करें)
अक्षत – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। अक्षतान् समर्पयामि।
(हल्दी से रंगे अक्षत अर्पित करें)
पुष्प, पुष्पमाला – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। पुष्पाणि पुष्पमालां च समर्पयामि।
(पुष्प या माला अर्पित करें)
धूप - ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। धूपम् आघ्रापयामि।
(धूप का धुआं हाथ से माता की ओर करें)
दीपक – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। दीपकम् दर्शयामि।
(दीपक को स्पर्श कर मां की ओर दिखावें)
फल – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। ऋतुफलं समर्पयामि।
(फल चढ़ावें)
नैवेद्य – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। नैवेद्यं समर्पयामि।
(मिठाई, खीर, नैवेद्य दिखाकर खाने का निवेदन करें)
ताम्बूल – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। ताम्बूल समर्पयामि।
इलायची, लौंग, सुपारी के साथ ताम्बूल (पान का पता के साथ) अर्पण करें)
इलायची, लौंग, सुपारी के साथ ताम्बूल (पान का पता के साथ) अर्पण करें)
दक्षिणा – ॐ बगलमुखी देव्यै नमः। दक्षिणां समर्पयामि।
(ग्यारह रुपये या दक्षिणा अर्पित करें)
जाने अनजाने हुए अपराधो के लिए क्षमा याचना करें ।
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यहां कवच का पाठ अनिवार्य हैं।
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ध्यान: ॐ मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्घां। सिंहासनो-परिगतां परिपीत वर्णाम॥
पीताम्बरा-भरण-माल्य-विभूषितांगी। देवीं भजामि धृत मुदगर वैरि जिह्वाम॥
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं! वामेन शत्रून परिपीडयंतीम। गदाभिघातेन चदक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि॥
मंत्रोद्धारः प्रणवं स्थिरमायां च ततश्च बगलामुखीं। तदंते सर्वदुष्टानां ततो वाचं मुखं पदं॥
स्तम्भयेति ततो जिह्वां कीलयेति पद्वयम्। बुद्धिं नाशय पश्चात्तु स्थिरमायां समालिखेत्॥
लिखेच्च पुनरोंकार स्वाहेति पदम न्ततः। षटत्रिंशद् अक्षरी सर्वसम्पतकरी मता॥
विनियोग मंत्र दाहिने हाथ में जल लेकर पढ़ें
ॐ अस्य श्री बगलामुखीं मंत्रस्य, नारद ऋषि:, त्रिष्टुप छन्द:, बगलामुखीं देव्य, ह्लीं बीजम्, स्वाहा शक्ति:, ममाभीष्ट सिध्यर्थे च देवी प्रसादेन जपे विनियोग: (जल किसी पात्र मे गिरा दें)।
न्यासादि।
नारद ऋषये नमः शिरसि। (सिर पर दाहिने हाथ से स्पर्श करे)
त्रिष्टुप छ्न्दःसे नमः मुखे। (मुंह को स्पर्श करें)
बगलामुखीं देव्य नमः ह्रदि। (दिल को स्पर्श करें)
ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये। (गुह्यांग को दुर से स्पर्श करें)
स्वाहा शक्तये नमः पादयो। (पैरो को दुर से स्पर्श करें)
करन्यास
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः। (दोनों हाथों के अंगुठो को मिलाये)
बगलामुखीं तर्जनीभ्यां स्वाहा। (दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियों को मिलाए।
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां वषट्। (दोनों हाथों की मध्यमां अंगुलियों को मिलाए।)
वाचं मुखं पदं स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः। (दोनों अनामिका अंगुलियों को मिलाए।)
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां वोषट्। (दोनों कनिष्ठिका अंगुलियों को मिलाए।)
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा। (दोनों हथेलियों को मिलाए फिर उल्टी हथेली मिलाए)
ह्रदयायादि न्यास
ॐ ह्लीं ह्रदयाय नमः। (ह्रदय को दाहिने हाथ से स्पर्श करें।)
बगलामुखीं शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें।)
सर्व दुष्टानां शिखायै वषट्। (शिखा या चोटी को स्पर्श करें।)
वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्।
(दाएं हाथ से बाएं कन्धे और बाएं हाथ से दाएं कन्धे को एक बार मे स्पर्श करें)
जिह्वां कीलय् नेत्रत्रयाय वोषट्।
(तीनों नेत्रों को दाएं हाथ की अंगुलियों से एक साथ स्पर्श करें)
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्
(सिर के पीछे से तीन बार चुटकी बजाते हुए कलोक वाईज दाए हाथ को तीन बार घुमाए फिर बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की तर्जनी और मध्यमा से तीन बार ताली बजाए)
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माला हाथ मे लेकर यह मंत्र पढे।
ॐ ह्रीं माले माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी। चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दाहिने करे। जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये॥
मूल मंत्र – जिसका जप साधना काल में किया जा सकता हैं।
ॐ ह्लीं बगलामुखीं सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा॥
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आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
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थोडा सा जल दाएं हाथ में लेकर मां के बाए हाथ मे दें समर्पित कर दिया हैं।
इसके पश्चात देवी की आरती कर सकते हैं। आसन के नीच जल डालकर आसन को छोड दे।
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साधना के बाद आराम करना। अधिक नहीं बोलना चाहिए क्योंकि साधना द्वारा प्राप्त शक्ति व्यर्थ के कार्य में लग जाती हैं। अतः आराम करना ही श्रेष्ठ हैं। अपने आसन और माला को छिपाकर रखे। दुसरे की निन्दा नहीं करनी और खुद पर अहकार नही करना। परान्न से दुर रहना हैं। तिल और चावल में दूध मिलाकर माता का हवन करने से श्री प्राप्ति होती है और दरिद्रता दूर भागती है।
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हमने अपनी प्रयास से शुद्ध साधना आपके सामने रखने का पूर्ण प्रयास किया हैं ताकि पाठको को लाभ हो सकें। इस साधना को करने से पहले गुरु अवश्य बनाना चाहिए। वैसे भी बिना गुरु के ज्ञान अधुरा ही रहता और अधुरा ज्ञान जान को भी कई बार जोखिम में डाल देता हैं। अतः इस साधना को तभी करना चाहिए जब जीवन में कोई रास्ता ना बचें। बिना गुरु के इस साधना को करने का मतलब यही हैं कि जानकारी के बिजली के तारों को छुना।
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