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What is Nyaas (न्यास क्यों जरुरी)


जब हम किसी साधना को शुरु करते हैं तो अक्सर न्यास का जिक्र जरुर आता हैं। आखिर क्या होते हैं न्यास? जैसा कि आप जानते हैं कि मनुष्य अशुद्धि का केन्द्र ही हैं। नाना प्रकार से हमारे शरीर के अंग गन्दे रहते हैं चाहे हम कितना भी स्नान और शुद्धि क्यों ना करे इन स्थानो की गन्दगी बिना न्यास और शुद्धिकरण के बिना सामाप्त नही हो सकती हैं। सभी महाविद्याओ अप्सरा यक्षिणी आदि सभी साधना मे न्यास और मुद्राओ को सम्पन्न करना अनिवार्य मना गया हैं। प्रत्येक पुजन की अलग अलग प्रक्रिया हैं उसी के अनुसार न्यास मे भी अंतर देखने को मिलता हैं।  न्यास करने से साधना मे आने वाले सभी विघ्नो का नाश होता हैं। हमारे शरीर में हर समय अहंकार, क्रोध, मोह-माया, द्वेष, छलकपट, बुराईयाँ रहती हैं। न्यास का अर्थ किसी बुरे विचार, वस्तु हटाकर उस स्थान के साधना से सम्बन्धित देवता या स्वामी की शक्ति का आव्हान व स्थापना करना। अर्थात हमारे शरीर एक मन्दिर की भांति होता हैं इसमे मन्दिर मे से गंदगी को निकलकर देवता की स्थापना कर इस स्थान को शुद्ध बनाना ही न्यास माना जा सकता हैं। न्यास कई प्रकार के होते हैं परंतु मुख्यतः तीन प्रकार के न्यास बहुत जरुरी बताये गये हैं। अंग न्यास से तात्पर्य है हमारा शरीर। अंग न्यास में नेत्र, सिर, नासिका, हाथ, हृदय, उदर, जांघ, पैर आदि अंगों में शक्तियां मानकर उनका आव्हान कर स्थापित किया जाता है। यह सभी शक्तियां हमारे कर्मो और विचारों को धर्म संगत कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। साथ ही हमारी सोच सकारात्मक बनती है। कर न्यास अर्थात् हमारे हाथ का न्यास। हाथ कर्मों का प्रतीक है। हमें हाथों से शुभ कर्म करने चाहिए जिनसे सभी का कल्याण हो। कर न्यास में हाथों की अंगुलियां, अंगूठे और हथेली को दैवीय शक्ति से अभिमंत्रित करते हैं। मातृका न्यास मातृका अर्थात् वाणी। हमारी वाणी में सरस्वती का निवास माना जाता है। मातृका न्यास में साधक माता सरस्वती को वेद मंत्रों की शक्ति से लीला करते हुए अनुभव करता है। हम इस न्यास से बुद्धि, मोह-ममता के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और हमारी साधना सफल होती हैं। सही मायनो मे हमे न्यास से साधना मे सुरक्षा मिलती हैं।  न्यास करने से कभी भी देवता के भंयकर रुप मे दर्शन नही होते हैं और साधना मे पूर्ण सफलता मिलेगी। 

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