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Navratri Ghat Sathpana 01 Oct 2016

नवरात्रि मे देवी के नौ रुपों की पुजा करी जाती हैं जोकि क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। जगत माता की उपासना सभी के लिए लाभकारी हैं।

इस बार शरदीय नवरात्रि शनिवार, एक अक्टूबर 2016 से प्रारंभ हो रही हैं। पंचाग अनुसार (एक अक्ट्बर की प्रतिपदा विक्रम संवत 2073 को आश्विन मासे, शुक्ल पक्षे, प्रतिपदा तिथो, ब्रह्म योग, हस्त नक्षत्र, शनिवार वार मे पड रही हैं) प्रतिपदा तिथि एक अक्टूबर सुबह 05:41 बजे शुरू होगी और दो अक्टूबर को सुबह 07:45 बजे समाप्त होगी।  प्रतिपदा के दिन हस्त नक्षत्र और ब्रह्म योग होने के कारण सूर्योदय के बाद या अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करना चाहिए।  शास्त्र के अनुसार माता का पुजन द्विस्वभाव लगन मिथुन, कन्या, धनु तथा कुंभ में ही करना चाहिए। 

एक अक्टूबर 2016 को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त कन्या लग्न में सुबह 06:17 बजे से 07:29 बजे तक है। या फिर धनु लगन एवं अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 12.00 बजे से 12.34 तक का समय उत्त्म रहेगा। इसलिए इस लग्न में ही पूजा और कलश स्थापना करी जा सकती हैं।

पुजन सामग्री: मां दुर्गा की सोने, चांदी, ताम्बे या मिट्टी की बहुत ही सुन्दर मूर्ति, गंगाजल, पानी वाला नारियल या जटा वाला नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रोली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, फल, फूल माला, बिना टुटे चावल, आम के पत्ते, तांबे या मिट्टी का एक कलश, देवी की मूर्ति के अनुसार लाल कपड़े, दुध की बनी मिठाई, इत्र, लाल चुडी, सिन्दूर, कंघा, दर्पण, काजल, एवं अन्य श्रृंगार की वस्तुए, कपूर, पंचामृत (दूध, दही घी, शहद, शक्कर या चीनी), जौ और एक मिट्टी की पात्र, लोंग, जायफल, लोबान, गुगल की धुप आदि होना अनिवार्य हैं।

सबसे पहले पुजन स्थान को शुद्ध कर लें इसके उपरांत एक लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गणपति और देवी की मूर्ति की स्थापना करें। थोडे से गणपति जी को अर्पित कर दें। किसी पश्चात सबसे पहले मिट्टी के पात्र मे जौ बोए। जौ बोने के बाद इसी के उपर एक पानी से भरा लोटा या कलश स्थापित कर दें। इस कलश पर ॐ और स्वातिक आदि चिन्ह बना दे और मोली को इस कलश की गर्दन पर बान्ध दे। इसके बाद इस कलश मे दूर्वा (दुब घास), चावल, सुपारी, दक्षिणा डाल दे। इस उपर आम के पत्ते रख दे और आम के पत्ते के उपर एक लाल चुन्नी बान्ध कर एक नारियल रख दें और सभी देवता और तीर्थो का अवाहान कलश मे करें।

कलश स्थापना के बाद संकल्प लेकर पुनः गुरु, गणपति आदि देवाताओं का पुजन करके अंत मे मां दुर्गा का पुजन करना चाहिए। पुजन के पश्चात देवी मां के पाठ आदि किए जा सकते हैं और अंत में क्षमा याचना करने के पश्चात मां दुर्गा की आरती करनी चाहिए। आसन का एक कौना उठाकर तीन आचमनी जल डालकर तीन बार “ॐ विष्णवे नमः” बोलकर जल को मस्तक से लगाना चाहिए। फिर एक प्रदक्षिणा करें।

पुजा के उपरांत साधक को दुध का सेवन या फलाहार करना चाहिए। इससे माता प्रसन्न होती हैं। यदि कोई साधक इन दिनो भोजन और जल का त्याग कर दें तो माता उसे सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं इसमें कोई संशय नहीं हैं। प्राप्त हुई सिद्धियों का उपयोग जन कल्याण के लिए ही किया जा सकता हैं अन्यथा सिद्धि क्षीण होकर साधक का ही अहित करती हैं।


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