Apsara - Yakshini - Gandrav Yoni???
सौन्दर्य साधनाए क्या होती हैं?
सौन्दर्य की जब भी बात करी जाए तो अप्सराओं आदि देवियों का स्थान
सर्वोपरि हैं। यूं तो सभी देव योनियां अपने आप में अजीब सा सौन्दर्य और आकर्षण
समाहित रखती हैं एवं नाना प्रकार की शक्तियों से समपन्न रहती हैं। सौन्दर्य और
तंत्र का उचित समावेश यक्षिणीयां होती हैं। सौन्दर्य और आनन्द का उचित समावेश
अप्सरा और गन्धर्व में होता हैं। सौन्दर्य साधना आदि काल से प्रचलित हैं। यह भोग
आदि की साधनाए हैं।
अप्सरा और यक्षिणी में क्या भेद हैं?
अप्सराए सौम्य और सुन्दर होती हैं तीखे नेत्र और वाणी में मिठास होती
हैं और अपने साधक को हमेशा आनन्दित करती हैं। जिस भी व्यक्ति के जीवन में आनन्द की
कमी हैं अभिनय करना चाहता हैं। माडलिंग करता हैं। उसके लिए इससे श्रेष्ठ साधना
नहीं हैं। अप्सराए साधना से जीवन में प्रेम, आनन्द, सौन्दर्यता, उन्माद, आकर्षण,
दुसरों से अपनी बात सहज मनवा लेना, आपकी वाणी में आकर्षण शाक्ति होना, वैवाहिक
जीवन में कलेश, मनचाहा या जीवन साथी ना मिलना, कलेश और सभी प्रकार के भौतिक आनन्द
प्रादान करनें वाली देवीयां हैं। अप्सराओं के सौम्य स्वभाव के कारण यह साधक का कोई
अहित नहीं करती इसलिए इस प्रकार की साधनाए कोई भी व्यक्ति कर सकता हैं।
यक्षिणी सौन्दर्य, शक्ति और विद्या का समावेश होती हैं। यक्षिणी धन की
देवी होने के साथ साथ अन्य विद्याओं में हस्त सिद्ध होती हैं। साधक पर अत्यधिक
प्रसन्न होने पर साधक को अनेको विद्या का ज्ञान, रस, रसायन और गुटिका आदि भी प्रदान
करती हैं। भिन्न भिन्न यक्षिणी भिन्न भिन्न विद्याओं का ज्ञान रखती। उसी ही को
मध्यनजर रखते हुए और साधक की क्षमता को मध्यनजर रखते हुए यक्षिणी की सिद्धि करनी
चाहिए। अन्य तथ्य भी ध्यान में रखे जाते हैं। यक्षिणी स्वभाव में अप्सराओं के
तुलना मे थोडी से उग्र एवं हठिली होती हैं। शीघ्र धनवान बनने के लिए यक्षिणी साधना
ही श्रेष्ठ होती हैं।
यौवन अवस्था में अप्सरा/यक्षिणी साधना शीघ्र सिद्ध हो जाती हैं लेकिन बच्चों
और बढती उम्र के साथ व्यक्ति में आने वाले हरमोन परिवर्तन और वीर्य की कमी के कारण
साधना में थोड़ा सा अधिक श्रम करना पड़ता हैं।
क्या कलियुग में भी देवीयां दर्शन देती हैं?
अवश्य हर युग में देवीयों ने साधकों का कल्याण किया हैं। इस बात को
समझने के लिए एक उदाहरण की अवश्यकता हैं। आपने देखा होगा कि नवरात्रियां आने पर
सभी भक्तजन नवदुर्गा की उपासना में लग जाते हैं। क्या देवी दुर्गा के भक्त कभी ऐसा
सोचते हैं कि देवी दर्शन देगी या नही देगी? क्या देवी हमारी सहायता करेगी या नहीं?
ऐसा भक्त जन नहीं सोचते और जिसमें जितना समर्थ है सभी साधक अपनी अपनी विधियों से
देवी की साधना करने में जुट जाते हैं। कोई भुखा प्यासा रहता हैं कोई लौंग के जोडे
से व्रत करता है कोई मंत्र जप करता हैं तो कोई दुर्गा सप्तशती का पाठ करता हैं।
बिना इस बात की चिंता किए कि फल मिलेगा या नहीं। सभी जानते हैं कि फल जरुर मिलेगा।
रही बात देवी के दर्शन की तो अधिक साधना करने पर देवी दर्शन भी देती हैं।
आप सभी नें देखा होगा कि देवी दुर्गा के हाथों मे अनेकों अस्त्र
सुशोभित हैं लेकिन फिर भी किसी भी साधक के मन में डर की भावना नहीं आती है। सभी
यही सोचते हैं कि देवी मां (+ जो जगतजननी का मां का रुप में पुजन करते हैं।) इन अस्त्रों
से हमारी रक्षा करेगी। तो जैसी जिस की भावन तस फल पावे। अप्सराए यक्षिणियां आदि
योनियां तो इनकी दासी हैं। छतीस प्रमुख यक्षिणीयां देवी कालिका के सहायिका के रुप
में हर समय उनकें पास रहती हैं।
जब आप देवी मां की पुजा करते तो आपको आकर किसी यक्षिणी ने परेशान
किया? यदि किसी के जबाब हो तो बताए। हां साधको के साथ ऐसा जरुर हो सकता हैं कि जब
आप देवी कालिका का पुजन कर रहे हो तो इनमें से कुछ यक्षिणीयां भी आपकी ओर आकर्षित
होए लेकिन अहित नहीं करती। भक्ति तो प्रेम का ही रुप हैं। प्रेम ही भक्ति और भक्ति
प्रेम हैं। प्रमाण के लिए आप देवी कालिका के यंत्र को देखें यह कहीं भी उपलब्ध
हैं। इसमें देखो कि कौन कौन सी अप्सरा और यक्षिणी का पुजन देवी कालिका के पुजन से
पहले होता हैं।
किसी भी देवी के मंत्र की सिद्धि होने पर मंत्र देवी के सामान ही जो
जाता है जिसके जप करने पर कोई भी कार्य सहज होने लगता हैं। इस प्रकार की सिद्धि को
मंत्र सिद्धि कहा जाता हैं। जो साधक मंत्र सिद्धि की तरफ ध्यान ना देते हुए भी आगे
मंत्र जप के साथ अवश्यक क्रियाए करता रहता हैं तो उस सम्बन्धित देवता के दर्शन का
सौभाग्य प्राप्त होता ही हैं इसमें कोई दोराय नहीं है।
यदि किसी मंत्र से एक कार्य को पुरा करने के लिए बारह हजार मंत्र जप
की अवश्यकता हैं तो मंत्र को सिद्ध करनें के लिए सवा लाख मंत्र जप करना पड़ता हैं।
इस नियम अनुसार दस लक्ष मंत्र जपने पर देवता स्वयं आकर उसके कार्य करता हैं। यह
नियम तो महाविद्यों के लिए हैं। छोटी मोटी सिद्धियां तो बहुत पहले सिद्ध हो जाती
हैं लेकिन मंत्र गुरु से दीक्षित होना चाहिए। गुरु कृपा का बहुत महत्व हैं।
अप्सरा और यक्षिणी को जल्द ही प्रत्यक्ष करनें के लिए कई विधियां हैं
इनमें से जो भी विधि आपके गुरु को आती हैं या उचित लगती हैं वो आपको प्रदान कर
देते हैं। सौन्दर्य साधना केवल नैतिक और भौतिक कार्य के लिए ही सिद्ध करी जाती है
मोक्ष से इनका कोई लेना देना नहीं है। मोक्ष प्राप्ति के लिए आपको अन्य साधना करनी
चाहिए।
सौन्दर्य साधनाए दो तरह से सिद्ध होती हैं। अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष।
अप्रत्यक्ष रुप में
मंत्र सिद्ध हो जाता हैं और देवी सुक्ष्म रुप में साधक के साथ रहती हैं। सुक्ष्म
रुप में देवी के दर्शन नहीं हो पाते लेकिन सभी कार्य सिद्ध होते हैं। सामान्यतः इस
प्रकार की साधनाओं से होने वाले लाभ साधक को विभिन्न माध्यम से होते रहते हैं।
उदाहरणतः आपको धन की अवश्कता हैं तो आपको धन किसी ना किसी माध्यम से मिल जाएगा।
आपका कोई कार्य धन के अभाव में नहीं रुकेगा।
प्रत्यक्ष रुप में
देवी सदैव साधक के साथ सुक्ष्म रुप में रहती हैं। मंत्र जप को करने के पश्चात
सशरीर साधक के सामने आकर साधक की आज्ञानुसार नैतिक कार्य करने में सहयोग करती हैं।
दीक्षाए क्या होती हैं?
जब गुरु किसी साधक को मंत्रो की शिक्षा प्रदान करता हैं, या जब गुरु
अपने द्वारा सिद्ध किए गए मंत्र को साधक के अन्दर समावेश करा दें अथवा साधक के
अन्दर बीजारोपण कर दें। कुंड़लिनी शक्ति के माध्यम से साधक की कुंडलिनी में मंत्र
को स्थापित कर दें। मंत्रों का जागरण कर दें। गुरु साधक के लिए मंत्र जप आदि करता
हैं। अनेकों विधियां हैं दीक्षा की। हर मार्ग में साधक को दीक्षा देने के विधान
अलग अलग हैं लेकिन दीक्षा समपन्न होने पर साधक के अन्दर चेतना आ जाती हैं शरीर के
विभिन्न चक्रों में कम्पन्न होने लगते हैं।
प्राथमिक अवस्था में यह प्रयास रहता हैं कि शिष्य मंत्र जप करके मंत्र
को सिद्ध कर ले लेकिन जब कोई साधक ऐसा नहीं कर पाता तो गुरु विशेष शक्तिपात द्वारा
साधक के अन्दर मंत्रों का शक्ति का समावेश करा देता हैं। इसमें शिष्य कुछ नहीं
करता क्योंकि गुरु द्वारा जप गए बहुत से मंत्र जप को गुरु एक क्रिया द्वारा साधक
के अन्दर समावेश करा देता हैं। चक्रों से चक्रों के जागरण की क्रिया हैं।
दीक्षा को एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। मान लिजिए, आपको आम
खाने की लालसा हैं तो कितने विकल्प आपके पास हैं। सोचिए!
पहला तरीका, यह कि
आप बाजार या कहीं से आम का बीज ले लें और वृक्षारोपण कर दें। दुसरा तरीका, यह कि आप कहीं से आम का पौधा प्राप्त कर लो
और उस पौधे को सींचते रहे एक दिन फलदार वृक्ष बनकर आपको और अन्य व्यक्तियों को भी
आम मिलेगें। तीसरा और सबसे सरल तरीका, यह कि आप
बाजार या कहीं से भी आम प्राप्त कर लें और खाकर आनन्द लें।
बस यही हाल दीक्षा का हैं।
पहला तरीका, यह हैं
कि मंत्र की दीक्षा लेकर मंत्र जप करके, नियमित जप और अन्य क्रियाओं द्वारा मंत्र
को सिद्ध किया जाए। इसमें साधक को एक बीज प्राप्त हो जाता हैं। सामान्य भाषा में आपको
मंत्र का बीज मिल गया जिसे आप श्रम करके पौधा और आगे चलकर फलदार वृक्ष बना लेगें।
आपकी अभिलाषा पूर्ण करेगा।
दुसरा तरीका, यह है
कि गुरु द्वारा शिष्य के अन्दर मंत्र शक्ति इस प्रकार से डाल दी जाए कि शीघ्र
साधना के परिणाम आने लगे। सामान्य भाषा में ऐसा जाने कि आपने नर्सरी से एक पौधा ले
लिया जिसको बस सींचना मात्र हैं। अब इसका वृक्ष बनना शेष रह जाता हैं।
तीसरा तरीका, यह हैं
कि जब गुरु पुरी साधना शक्ति या साधना का एक बहुत बड़ा भाग शिष्य में समाहित कर दें।
ऐसा करने पर मंत्र तत्काल सिद्ध हो जाता हैं। सामान्य भाषा में ऐसा जानें कि पौधा
ना प्राप्त करके, एक वृक्ष पर अपना अधिकार प्राप्त कर लेना। बस थोड़ी सी मेहनत फल
को प्राप्त करने में लगती हैं लेकिन ऐसा सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता।
केवल प्राण त्याग, साधना त्याग या शिष्य के प्रति अत्याधिक स्नेह होनें पर ही कोई
गुरु ऐसा करता हैं।
आपने सारी उम्र श्रम करके धन, जमीन आदि एकात्रित करी तो आप ऐसे ही
किसी को थोड़ी दे देते हैं क्योंकि आप सभी जानते हैं कि एक बार जो दे दिया वो वापस
नहीं हो सकता।
अधिकत्तर गुरुवर उपरोक्त दो तरीके का प्रयोग करते हैं जिसमें पहला
तरीका ही अधिक प्रचलित हैं क्योंकि दुसरे तरीके में स्वयं ही साधना शक्ति का हास
होता हैं। या नई साधना शक्ति बनानी पड़्ती है जोकि सामान्य नहीं हैं। इस प्रकार की
साधना किसी के द्वारा भी कराई जा सकती हैं लेकिन उसको संकल्प आपके नाम से लेना
होता हैं।
क्या फोटो द्वारा दीक्षा सम्भव हैं?
चाहे शिष्य सामने बैठा हो, चाहे फोटो हो दोनों मे कोई अंतर नही हैं और
दीक्षा सम्भव हैं। दोनों बातों में कुछ खास अंतर नहीं हैं। ऐसा क्यों? समय के अभाव में बहुत से व्यक्ति सामने
उपस्थित होकर दीक्षा ग्रहण नहीं कर पाते या कई बार गुरुवरों का टाईम टेबल मेच नहीं
करता और जब कभी मेच करता हैं तो उस समय अच्छे योगो का ना होना दीक्षा प्रक्रिया
में बाधा का कारण बनता हैं। इसी कारण साधक के फोटो से दीक्षा करनी पड़ सकती हैं
लेकिन इस क्रिया से दीक्षा में कोई अन्तर नहीं आता। कारण मैं आपको विस्तार से
समझने का प्रयास करता हूँ।
उदाहरण के तौर पर आपको देवी दुर्गा का पुजन करना हैं तो आप यह थोड़ी
कहोगे कि मैं तो जब पुजा करुगां जब देवी दुर्गा सामने बैठी होगी! क्या ऐसा सम्भव
हैं? आप सोचिए मुझे सोचने की अवश्यकता नहीं हैं। इस अवस्था में एक ही विकल्प हैं
कि देवी दुर्गा के चित्र या मूर्ति या यंत्र को स्थापित किया जाए और पुजन किया
जाए। ठीक इसी प्रकार गुरु साधक के चित्र को स्थापित कर साधक के प्राणों का कुछ अंश
विशेष मंत्रों द्वारा उस चित्र में डाल देतें है। इस क्रिया से चित्र एक शिष्य के
समान हो जाता हैं और उसी चित्र या फोटो को दीक्षा दे दी जाती हैं। उसी चित्र को
ध्यान में रखकर मंत्रों की शक्तियां उसमें समावेश करा दी जाती हैं जिसका तत्काल
प्रभाव शिष्य स्वयं अनुभव कर रहा होता हैं। अंत में चित्र से प्राण शक्ति लोटकर
साधक मे आ जाती हैं।
अब दीक्षा फोटो द्वारा हो या सामने बैठकर दीक्षा हो, यह तो गुरु शिष्य
का तालमेल हैं। इसमें कोई क्या कर सकता हैं। ठीक ऐसे ही देवता चाहे सामने बैठा हो
या यंत्र या चित्र के माध्यम से साधक से तालमेल करें यह सब तो देवता पर ही निर्भर
हैं।
सौन्दर्य साधना में दीक्षित होने पर विभिन्न मुद्राए, न्यास, प्राण
प्रतिष्ठा एवं अन्य क्रियाओं की अवश्कता शेष नहीं रह जाती। इसके पश्चात केवल मंत्र
जप और कुछ क्रियाए करने मात्र से ही मंत्र सिद्ध प्राप्त करते हैं। दीक्षित होने
के पश्चात मंत्र जप भी कम करना पड़ता हैं। साधक सरलता से साधना कर सकता हैं।
शेष क्रमश: -----
मोबाईल: अवश्यकता होने पर प्रदान कर दिया जाएगा अन्यथा नहीं।
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